ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 93/ मन्त्र 4
ऋषिः - तान्वः पार्थ्यः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - पादनिचृत्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
ते घा॒ राजा॑नो अ॒मृत॑स्य म॒न्द्रा अ॑र्य॒मा मि॒त्रो वरु॑ण॒: परि॑ज्मा । कद्रु॒द्रो नृ॒णां स्तु॒तो म॒रुत॑: पू॒षणो॒ भग॑: ॥
स्वर सहित पद पाठते । घ॒ । राजा॑नः । अ॒मृत॑स्य । म॒न्द्राः । अ॒र्य॒मा । मि॒त्रः । वरु॑णः । परि॑ऽज्मा । कत् । रु॒द्रः । नृ॒णाम् । स्तु॒तः । म॒रुतः॑ । पू॒षणः॑ । भगः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ते घा राजानो अमृतस्य मन्द्रा अर्यमा मित्रो वरुण: परिज्मा । कद्रुद्रो नृणां स्तुतो मरुत: पूषणो भग: ॥
स्वर रहित पद पाठते । घ । राजानः । अमृतस्य । मन्द्राः । अर्यमा । मित्रः । वरुणः । परिऽज्मा । कत् । रुद्रः । नृणाम् । स्तुतः । मरुतः । पूषणः । भगः ॥ १०.९३.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 93; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ते घ मन्द्राः) वे स्तुति करनेवाले (अमृतस्य राजानः) अनश्वर सुख ज्ञान के स्वामी होते हैं, कौन? सो कहते हैं-(अर्यमा) ज्ञानदाता (मित्रः) सत्कर्म में प्रेरक (वरुणः) दुःखनिवारक (परिज्मा) परिव्राट् संन्यासी (नृणां कत् स्तुतः रुद्रः) मनुष्यों में प्रशंसित कोई वक्ता (पूषणः) पोषण करनेवाले (मरुतः) विद्वान् जन (भगः) सौभाग्यवान् ॥४॥
भावार्थ
संसार में जो ज्ञानदाता प्रेरक दुःखनिवारक संन्यासी, वक्ता, पोषक, विद्वान्, सौभाग्यवान् जन परमात्मा की स्तुति कर अनश्वर सुखज्ञान के स्वामी बनते हैं, वे धन्य हैं ॥४॥
विषय
अमृत के राजा
पदार्थ
[१] गत मन्त्र के विषय को ही प्रस्तुत मन्त्र में पूर्ण करते हुए कहते हैं कि (घा) = निश्चय से (ते) = वे देव (अमृतस्य) = अमरता के, रोगों द्वारा मृत्यु का ग्रास न होने के (राजान:) = [to be the feist, at the head] प्रथम अधिपति होते हैं। ये कभी रोगों का शिकार नहीं होते, 'अमरा निर्जरा देवाः 'ये देव जीर्ण नहीं होते और अतएव असमय की मृत्यु के शिकार नहीं होते । (मन्द्राः) = सदा प्रसन्न रहते हैं [cheerful] [२] (अर्यमा) = [ अरीन् यच्छति] काम-क्रोधादि शत्रुओं को वश में करते हैं। (मित्रः) = [मित्र स्नेह ने] सबके साथ स्नेह से वर्तते हैं । (वरुणः) = द्वेष का निवारण करते हैं। (परिज्मा) = वायु की तरह अपने कर्त्तव्यों में सदा गतिशील बने रहते हैं । (कद्रुद्रः) = [कु= कत्] कुत्सित भावों को प्रभु नाम-स्मरण से दूर भगाते हैं [रोरूयमाणः द्रावयति ] । कुत्सित भावों को रुलानेवाले होते हैं [रोदयति] उन्हें अपने हृदय से निर्वासित करके बेघर कर देते हैं और इस प्रकार उन भावों के भाग्य में रोना ही रह जाता है। [३] इस प्रकार बनने के कारण ये लोग (नृणां स्तुतः) = मनुष्यों से स्तुति किये जाते हैं, लोगों में ये यशस्वी होते हैं । (मरुतः) = ऐसा बनने के लिए ये प्राणसाधना करनेवाले होते हैं । (पूषण:) = पोषण करनेवाले व (भगः) = ऐश्वर्यशाली होते हैं । वस्तुतः ये ऐश्वर्य के द्वारा भोगों में न फँसकर औरों का पोषण ही करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ-हम देव बनकर अमृतत्व के अधिपति हैं और सदा प्रसन्नता का अनुभव करें।
विषय
स्तुति और अमर यश के पात्र जन।
भावार्थ
(अर्यमा) न्यायकारी, शत्रुओं और दुष्ट जनों का नियन्त्रण करने वाला (मित्रः) सब का स्नेही, (वरुणः) सर्वश्रेष्ठ (परि-ज्मा) सर्वत्र व्यापक और (नृणां स्तुतः) मनुष्यों में प्रशंसित (रुद्रः) दुष्टों को रुलाने वाला, रोगों, दुःखों को दूर करने वाला, (पूषणः मरुतः) सब के पोषक, दुष्टों के मारने वाले, वायुवत् तीव्र, वा स्थान २ पर जाने वाले मरूद् अर्थात् वैश्यगण, वीरगण और वर्षा जनक वायुगण और (भगः) ऐश्वर्य, वा स्वामी ये सब जन (मन्द्राः) स्तुत्य हैं (ते घ) वे सब जन (अमृतस्य राजानः) अमृत, कभी न नाश होने वाले अन्न, और ज्ञान, अमर आत्मा वा नित्य सुख के (राजानः) राजा हैं, वे उससे चमकने वाले हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिस्तान्वः पार्थ्यः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:- १ विराट् पक्तिः। ४ पादनिचृत् पङ्क्तिः। ५ आर्चीभुरिक् पङ्क्तिः। ६, ७, १०, १४ निचृत् पङ्क्तिः। ८ आस्तारपङ्क्तिः। ९ अक्षरैः पङ्क्तिः। १२ आर्ची पङ्क्तिः। २, १३ आर्चीभुरिगनुष्टुप्। ३ पादनिचृदनुष्टुप्। ११ न्यङ्कुसारिणी बृहती। १५ पादनिचृद् बृहती। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ते घ मन्द्राः) ते खलु स्तोतारः (अमृतस्य राजानः) अनश्वरसुखज्ञानस्य स्वामिनो भवन्ति, के ते-इत्युच्यते (अर्यमा) ज्ञानदाता (मित्रः) सत्कर्मणि प्रेरकः (वरुणः) दुःखनिवारकः (परिज्मा) परिव्राट् (नृणां कत्-स्तुतः-रुद्रः) मनुष्याणां मध्ये प्रशंसितः कश्चित् वक्ता (पूषणः-मरुतः-भगः) पोषयितारो विद्वांसो भगवन्तः “भजतीति भग् क्विपि बहुवचने भगः” ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
They are lights of immortality, happy and joyous, harbingers of well being to humanity: Aryama, spirit of justice and rectitude in conduct, Mitra, divine love, friendship and unity, Varuna, spirit of judgement and choice, Parijma, all moving air, Rudra, destroyer of suffering, Maruts, cosmic currents of energy, Pushana, energy and nourishment for growth, Bhaga, spirit of divine glory and human power and prosperity. Everyone of them is valued, loved and respected by humanity.
मराठी (1)
भावार्थ
जगात जे ज्ञानदाते, प्रेरक, दु:खनिवारक, संन्यासी, वक्ता, पोषक, विद्वान, सौभाग्यवान लोक परमात्म्याची स्तुती करून अविनाशी सुखज्ञानाचे स्वामी बनतात, ते धन्य होत. ॥४॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal