ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 93/ मन्त्र 9
ऋषिः - तान्वः पार्थ्यः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - अक्षरपङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
कृ॒धी नो॒ अह्र॑यो देव सवित॒: स च॑ स्तुषे म॒घोना॑म् । स॒हो न॒ इन्द्रो॒ वह्नि॑भि॒र्न्ये॑षां चर्षणी॒नां च॒क्रं र॒श्मिं न यो॑युवे ॥
स्वर सहित पद पाठकृ॒धि । नः॒ । अह्र॑यः । दे॒व॒ । स॒वि॒त॒रिति॑ । सः । च॒ । स्तु॒षे॒ । म॒घोना॑म् । स॒हः । नः॒ । इन्द्रः॑ । वह्नि॑ऽभिः । नि । ए॒षा॒म् । च॒र्ष॒णी॒नाम् । च॒क्रम् । र॒श्मिम् । न । यो॒यु॒वे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कृधी नो अह्रयो देव सवित: स च स्तुषे मघोनाम् । सहो न इन्द्रो वह्निभिर्न्येषां चर्षणीनां चक्रं रश्मिं न योयुवे ॥
स्वर रहित पद पाठकृधि । नः । अह्रयः । देव । सवितरिति । सः । च । स्तुषे । मघोनाम् । सहः । नः । इन्द्रः । वह्निऽभिः । नि । एषाम् । चर्षणीनाम् । चक्रम् । रश्मिम् । न । योयुवे ॥ १०.९३.९
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 93; मन्त्र » 9
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(देव सवितः) हे उत्पादक प्रेरक देव परमात्मा ! (नः-अह्रयः कृधि) हमें सर्व विद्याओं में व्याप्त कर (मघोनाम्) ऐश्वर्यवालों में (सः-च स्तुषे) वह तू स्तुति में लाया जाता है (नः सहः) हमें बलवान् (इन्द्रः-वह्निभिः) परमात्मा निर्वाहक गुणों से (एषां-चर्षणीनाम्) इन मनुष्यों के मध्य में (चक्रं रश्मिं न) रथ में चक्र प्रग्रह-लगाम की भाँति (न योयुवे) निरन्तर मिला ॥९॥
भावार्थ
उत्पादक परमात्मा सर्वविद्याओं में व्याप्त तथा विद्वान् मनुष्यों के मध्य में सङ्गत कर देता है, उनकी श्रेणी में नियुक्त कर देता है रथ में चक्र और प्रग्रह-लगाम की भाँति, वह ऐसा परमात्मा स्तुति करने योग्य है ॥९॥
विषय
न लज्जित होने योग्य जीवन
पदार्थ
[१] हे (सवितः) = देव प्रेरक प्रकाशमय प्रभो ! (नः) = हमें (अह्रयः) = लज्जा से न झुके हुए मुखवाला करिये। आपकी प्रेरणा से प्रकाश को प्राप्त करके सदा मार्ग पर ही चलते हुए हमें अशुभ कर्मों के कारण लज्जित न होना पड़े। हे प्रभो! आप ही मघोनां स्तुषे ऐश्वर्यशालियों में स्तुत होते हैं। सर्वमहान् ऐश्वर्य आपका ही है। वस्तुतः आपसे ही सब ऐश्वर्य को प्राप्त करते हैं । [२] (इन्द्रः) = यह परमैश्वर्यशाली प्रभु ही (वह्निभिः) = शरीर के सब कार्यों के वाहक इन मरुतों के द्वारा (एषां चर्षणीनां नः) = इन श्रमशील हम मनुष्यों के साथ (सहः) = शत्रुधर्षक बल को (नियोयुवे) = निश्चय से मिश्रित करता है । उसी प्रकार मिश्रित करता है, (न) = जैसे कि (चक्रम्) = इस शरीरचक्र को तथा (रश्मिम्) = मनरूप लगाम को, प्रभु शरीररूप रथ को देते हैं। इस रथ में इन्द्रियाश्वों के नियमन के लिए मनरूप लगाम को देते हैं। इस मनरूप लगाम के द्वारा ही बुद्धि रूप सारथि इन्द्रियाश्वों को नियंत्रित करता है । इस नियन्त्रण के अनुपात में ही हमारे अन्दर 'सहस्' का विकास होता है। इस सहस् से कामादि शत्रुओं का पराभव करके हम शुभ मार्ग का ही आक्रमण करते हैं, हमें अपने कार्यों के कारण कभी लज्जित नहीं होना पड़ता ।
भावार्थ
भावार्थ- हे प्रभो ! हम आपकी प्रेरणा में चलते हुए ऐसा जीवन बिताएँ जो हमारी यशोवृद्धि का कारण हो ।
विषय
प्रभु से प्रार्थना, हम पापों से लज्जालु न हों। हम पर प्रभु का सत् नियन्त्रण हो।
भावार्थ
हे (देव सवितः) समस्त सुखों और बलों को देने वाले ! हे जगत् के उत्पन्न करने और चलाने वाले ! (नः अह्रयः कृधि) हमें ऐसा उत्साहो और निष्पाप कर कि हमें कभी लज्जा से मुंह झुकाना न पड़े। (सः च) वह तू (मघोनाम्) ऐश्वर्यवानों में (स्तुषे) सब से अधिक स्तुति किया जाता है। (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् प्रभु ही (एषाम् चर्षणीनाम्) इन समस्त लोकों के (सहः) वशकारी बल को (रश्मिम् चक्रं न) अश्वों के वशकारी रासों और रथ को चलाने वाले चक्र के तुल्य ही (नि यो युवे) नियन्त्रित करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिस्तान्वः पार्थ्यः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:- १ विराट् पक्तिः। ४ पादनिचृत् पङ्क्तिः। ५ आर्चीभुरिक् पङ्क्तिः। ६, ७, १०, १४ निचृत् पङ्क्तिः। ८ आस्तारपङ्क्तिः। ९ अक्षरैः पङ्क्तिः। १२ आर्ची पङ्क्तिः। २, १३ आर्चीभुरिगनुष्टुप्। ३ पादनिचृदनुष्टुप्। ११ न्यङ्कुसारिणी बृहती। १५ पादनिचृद् बृहती। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(देव सवितः) हे उत्पादक प्रेरक देव परमात्मन् ! (नः-अह्रयः कृधि) अह्रीन् ‘विभक्तिव्यत्ययेन द्वितीयास्थाने प्रथमा’ अस्मान् सर्वविद्याव्याप्तान् प्राप्नुवन्ति सर्वा विद्या ये ते विद्वांसः “अह व्याप्तौ तस्मात् बाहुलकादौणादिकः क्रिः प्रत्ययः” [यजु० ३।३६। दयानन्दः] कुरु (मघोनां सः-च स्तुषे) ऐश्वर्यवतां मध्ये स च त्वं स्तूयसे (नः सहः-इन्द्रः-वह्निभिः) अस्मान् बलवान् परमात्मा निर्वाहकैर्गुणैः (एषां-चर्षणीनाम्) एतेषां मनुष्याणां मध्ये (चक्रं रश्मिं न नि योयुवे) चक्रं प्रग्रहमिव निमिश्रय-नियोजय निरन्तरं संयोजय ॥९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Savita, O lord of light and life’s creativity, admired and exalted by the strong and powerful, pray make us bold and self-confident, let us never be subjected to shame and ignominy. Indra, lord of power, controls and directs the power and wisdom of these people of the earth with psychic currents of pranic energies as a driver controls and directs the movement of the chariot by reins and the wheels.
मराठी (1)
भावार्थ
निर्माणकर्ता परमात्मा सर्व विद्यांमध्ये व्याप्त असतो, तसेच रथात चक्र व लगामाप्रमाणे विद्वान व सामान्य माणसाचा मेळ घालतो व त्यांना त्यांच्या श्रेणीत नियुक्त करतो. असा परमात्मा स्तुती करण्यायोग्य आहे. ॥९॥
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