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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 93 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 93/ मन्त्र 7
    ऋषिः - तान्वः पार्थ्यः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    उ॒त नो॑ रु॒द्रा चि॑न्मृळताम॒श्विना॒ विश्वे॑ दे॒वासो॒ रथ॒स्पति॒र्भग॑: । ऋ॒भुर्वाज॑ ऋभुक्षण॒: परि॑ज्मा विश्ववेदसः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । नः॒ । रु॒द्रा । चि॒त् । मृ॒ळ॒ता॒म् । अ॒श्विना॑ । विश्वे॑ । दे॒वासः॑ । रथः॒पतिः॑ । भगः॑ । ऋ॒भुः । वाजः॑ । ऋ॒भु॒क्ष॒णः॒ । परि॑ऽज्मा । वि॒श्व॒ऽवे॒द॒सः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत नो रुद्रा चिन्मृळतामश्विना विश्वे देवासो रथस्पतिर्भग: । ऋभुर्वाज ऋभुक्षण: परिज्मा विश्ववेदसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । नः । रुद्रा । चित् । मृळताम् । अश्विना । विश्वे । देवासः । रथःपतिः । भगः । ऋभुः । वाजः । ऋभुक्षणः । परिऽज्मा । विश्वऽवेदसः ॥ १०.९३.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 93; मन्त्र » 7
    अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (उत) तथा (रुद्रा चित्-अश्विना) वक्ता अध्यापक और उपदेशक (नः) हमें (मृळताम्) सुखी करें (विश्वेदेवासः) विद्याविषय में प्रवेश पाये हुए विद्वान् (रथस्पतिः-भगः) शरीर रथ का स्वामी वैद्य सुखभाजक-सुख पहुँचानेवाला (ऋभुः) मेधावी (वाजः) बलवान् (ऋभुक्षणः) मेधावी छात्रों को बसानेवाला (परिज्मा) परिव्राट् संन्यासी (विश्ववेदसः) सब धनवाले हमें सुखी करें ॥७॥

    भावार्थ

    अध्यापक और उपदेशक, अन्य विद्वान्, स्वस्थ रखनेवाला वैद्य, अच्छे छात्रों को वास देनेवाले संन्यासी और धनसम्पन्न जन लोगों को सुख देनेवाले हों ॥७॥

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    विषय

    नीरोगता व दिव्यभाव

    पदार्थ

    [१] (उत) = और (रुद्रा) = सब रोगों का द्रावण करनेवाले (अश्विना) = प्राणापान (नः) = हमारे लिए (चित्) = निश्चय से (मृडताम्) = सुख को देनेवाले हों। इसी प्रकार (विश्वेदेवासः) = सब दिव्यगुण हमें सुखी करनेवाले हों । 'शरीर व मन' दोनों का स्वास्थ्य हमें सुख का देनेवाला हो । शरीर में रोग न हों, मन में ईर्ष्या आदि अदिव्य भाव न हों। [२] (रथस्यतिः) = शरीररूप रथ का रक्षक, इस शरीर का अधिष्ठातृदेव हमें सुखी करे । (भगः) = सेवनीय ऐश्वर्य हमारी आवश्यकताओं को पूर्ण करके हमें सुखी करे । [३] (ऋभुः) = [ऋतेन भाति] सत्य ज्ञान से चमकनेवाला व यज्ञों से दीप्त होनेवाला ज्ञानी ब्राह्मण ज्ञान को देकर हमारे सुख की वृद्धि का कारण बने । (वाजः) = शक्ति का पुञ्ज क्षत्रिय भी रक्षण के द्वारा हमारा कल्याण करे। (ऋभुक्षणः) = [उरुक्षणः नि०] बड़े-बड़े निवास-स्थानोंवाले (परिज्मा नः) = [परिज्मानः ] चारों ओर गति करनेवाले, व्यापार के लिए इधर-उधर जानेवाले (विश्ववेदसः) = सम्पूर्ण धनों का अर्जन करनेवाले वैश्य लोग भी हमारा कल्याण करें।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणसाधना से हम शरीर में नीरोग व मन में दिव्य भावोंवाले बनें। शरीर का ध्यान करें, इसके लिए आवश्यक धन का अर्जन करें। राष्ट्र में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य सब उत्तम हों । सूचना-'ऋभुक्षणः' के साथ 'परिज्मा' शब्द सम्भवतः 'चारों ओर गति करनेवाले' शूद्र के लिए हो। वैश्य और शूद्र मिलकर ही धनार्जन करते हैं। ठीक-ठीक तो यह है कि वैश्याधिष्ठित शूद्र धनार्जन करता है [laboxr= लभ्]।

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    विषय

    प्रजा को सुख देने वाले जन।

    भावार्थ

    (उत) और (नः) हमें (रुद्रा चित् अश्विना) उत्तम उपदेश देने वाले, स्त्री पुरुष (मृडताम्) सुखी करें। (विश्वे देवासः) समस्त विद्वान् सुखी करें। (रथः पतिः भगः) रथों का पालक, स्वामी ऐश्वर्यवान् हमें सुखी करे। (ऋभुः) सत्य ज्ञान से चमकने वाला (वाजः) बलवान्, ज्ञानी, ये (ऋभुक्षणः) सब महान और (विश्व-वेदसः) समस्त ज्ञानों और धनों के स्वामी और (परि-ज्मा) सर्वत्रगामी वायु ये सब हमें सुखी करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिस्तान्वः पार्थ्यः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:- १ विराट् पक्तिः। ४ पादनिचृत् पङ्क्तिः। ५ आर्चीभुरिक् पङ्क्तिः। ६, ७, १०, १४ निचृत् पङ्क्तिः। ८ आस्तारपङ्क्तिः। ९ अक्षरैः पङ्क्तिः। १२ आर्ची पङ्क्तिः। २, १३ आर्चीभुरिगनुष्टुप्। ३ पादनिचृदनुष्टुप्। ११ न्यङ्कुसारिणी बृहती। १५ पादनिचृद् बृहती। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (उत) अपि खलु (रुद्रा चित्-अश्विना) वक्तारावपि अध्यापकोपदेशकौ (नः) अस्मभ्यं (मृळताम्) सुखयतां (विश्वेदेवासः) विद्याविषये प्राप्तप्रवेशाः-विद्वांसः (रथस्पतिः भगः) शरीररथस्य स्वामी चिकित्सकः सुखभाजकः (ऋभुः) मेधावी “ऋभुः-मेधाविनाम” [निरु० ३।१५] (वाजः) बलवान् “वाजः बलनाम” [निघ० २।९] ‘अकारो मत्वर्थीयश्छान्दसः’ (ऋभुक्षणः) मेधाविनां छात्राणां निवासयिता (परिज्मा) परितः सर्वत्र गन्ता परिव्राट् (विश्ववेदसः) सर्वधनवन्तोऽस्मान् सुखयन्तु ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And may the health giving Rudra pranas, the Ashvins, prana and apana energies, all brilliant holy men of the world, Bhaga, spirit of honour, power and prosperity of life, the presiding power of the chariot of human life for the individual and society, Rbhu, the wise sage of creative expertise, Vaja, commander of strength and progressive advancement, Rbhuksha, skilful technician, all moving wind energy, and managers of the world’s wealth be kind and good for our welfare.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    अध्यापक व उपदेशक, विद्वानांना स्वस्थ ठेवणारे वैद्य, चांगल्या विद्यार्थ्यांना वसविणारे संन्यासी व धनसंपन्न लोक लोकांना सुख देणारे असावेत. ॥७॥

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