ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 14/ मन्त्र 9
अध्व॑र्यवः॒ कर्त॑ना श्रु॒ष्टिम॑स्मै॒ वने॒ निपू॑तं॒ वन॒ उन्न॑यध्वम्। जु॒षा॒णो हस्त्य॑म॒भि वा॑वशे व॒ इन्द्रा॑य॒ सोमं॑ मदि॒रं जु॑होत॥
स्वर सहित पद पाठअध्व॑र्यवः । कर्त॑न । श्रु॒ष्टिम् । अ॒स्मै॒ । वने॑ । निऽपू॑तम् । वने॑ । उत् । न॒य॒ध्व॒म् । जु॒षा॒णः । हस्त्य॑म् । अ॒भि । वा॒व॒शे॒ । वः॒ । इन्द्रा॑य॒ । सोम॑म् । मदि॒रम् । जु॒हो॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अध्वर्यवः कर्तना श्रुष्टिमस्मै वने निपूतं वन उन्नयध्वम्। जुषाणो हस्त्यमभि वावशे व इन्द्राय सोमं मदिरं जुहोत॥
स्वर रहित पद पाठअध्वर्यवः। कर्तन। श्रुष्टिम्। अस्मै। वने। निऽपूतम्। वने। उत्। नयध्वम्। जुषाणः। हस्त्यम्। अभि। वावशे। वः। इन्द्राय। सोमम्। मदिरम्। जुहोत॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 14; मन्त्र » 9
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ क्रियाकौशलविषयमाह।
अन्वयः
हे अध्वर्ययो यूयमस्मै वने श्रुष्टिं निपूतं कर्त्तन वन उन्नयध्वं यो हस्त्यं जुषाणो मदिरं सोममभि वावशे तस्मै वो युष्मभ्यमिन्द्राय चैतज्जुहोत ॥९॥
पदार्थः
(अध्वर्यवः) पुरुषार्थिनः (कर्त्तन) कुरुत। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (श्रुष्टिम्) शीघ्रम् (अस्मै) सभेशाय (वने) किरणेषु (निपूतम्) नितरां पवित्रं दुर्गन्धप्रमादत्वगुणरहितम् (वने) किरणेषु (उत्) (नयध्वम्) उत्कर्षत (जुषाणः) प्रीतः सेवमानो वा (हस्त्यम्) हस्तेषु साधुम् (अभि) आभिमुख्ये (वावशे) भृशं कामयते (वः) युष्माकम् (इन्द्राय) (सोमम्) सोमलतादिरसम् (मदिरम्) आनन्दप्रदम् (जुहोत) दत्त ॥९॥
भावार्थः
ये वैद्याः सूर्यकिरणैर्निष्पन्नमोषधिरसं क्रिययोत्कृष्टं कृत्वा स्वयं सेवन्तेऽन्येभ्यः प्रयच्छन्ति च ते सद्यः स्वकार्यं साद्धुं शक्नुवन्ति ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
अब क्रियाकौशल विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (अध्वर्यवः) पुरुषार्थी जनो तुम (अस्मै) इस सभापति के लिये (वने) किरणों में (श्रुष्टिम्) शीघ्र (निपूतम्) निरन्तर पवित्र और दुर्गन्ध वा प्रमादपन से रहित पदार्थ (कर्त्तन) करो (वने) और किरणों में (उन्नयध्वम्) उत्कर्ष देओ जो (हस्त्यम्) हस्तों में उत्तम हुए पदार्थ को (जुषाणः) प्रीति करता वा सेवन करता हुआ (मदिरम्) आनन्द देनेवाले (सोमम्) सोमलतादि रस को (अभि, वावशे) प्रत्यक्ष चाहता (तस्मै) उस सभापति के लिये और (वः) तुम लोगों को (इन्द्राय) ऐश्वर्यवान् जन के लिये उक्त पदार्थ को (जुहोत) देओ ॥९॥
भावार्थ
जो वैद्य जन सूर्य किरणों से निष्पन्न हुए ओषधि रस को क्रिया से उत्कृष्ट करके आप सेवते तथा औरों के लिये देते हैं, वे शीघ्र अपने कार्य को सिद्ध कर सकते हैं ॥९॥
विषय
सोमरक्षण से कार्यकुशलता
पदार्थ
१. (अध्वर्यवः) = हे हिंसारहित यज्ञात्मक कर्मों के करनेवाले लोगो ! (अस्मै) = इस प्रभुप्राप्ति के लिए (श्रुष्टिम्) = सुख देनेवाले सोम को (कर्तन) = सम्पादित करो। सोमरक्षण से ही तुम प्रभु को पानेवाले बनोगे । २. (वने) = ज्ञानरश्मियों में (निपूतम्) = निश्चय से पवित्र किये हुए इस सोम को वने इस शरीर रूप गृह में (उन्नयध्वम्)= ऊर्ध्वगतिवाला करो। इस सोम को शरीर में ही व्याप्त करने का प्रयत्न करो। ३. (जुषाणः) = प्रीतिपूर्वक सेवन किया जाता हुआ यह सोम (वः) = तुम्हारे (हस्त्यम्) = हस्तकौशल को (अभिवावशे) = नितरां चाहता है, अर्थात् जब तुम सोम को शरीर में सुरक्षित करते हो तो यह सोम तुम्हें कर्मों में कुशल बनाता है। ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता हुआ यह हमारे ज्ञान को बढ़ाता है और ज्ञानी बनकर हम इस प्रकार कुशलता से कर्म करते हैं कि वे कर्म हमारे बन्धन का कारण नहीं बनते। इस प्रकार हम प्रभु को पानेवाले होते हैं । (इन्द्राय) = उस प्रभुप्राप्ति के लिए (मदिरम्) = हर्ष के जनक (सोमम्) = सोम को (जुहोत) = अपने में आहुत करो।
भावार्थ
भावार्थ – सोमरक्षण से ज्ञानवृद्धि होकर कर्मों को हम इस प्रकार कुशलता से करते हैं कि वे कर्म हमें बाँधते नहीं और हम प्रभु को प्राप्त करते हैं।
विषय
शत्रु दमन, प्रजाजनों और राजपुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( अध्वर्यवः ) पूर्वोक्त प्रकार के विद्वान् पुरुषो ! आप लोग ( अस्मै ) उसके लिये ( श्रुष्टिम् कर्त्तन ) शीघ्र कार्य करो, ( श्रुष्टिम् कर्त्तन ) पक्के अन्न और सुखकारी समृद्धि उत्पन्न करो । ( वने ) वन ( निपूतं ) अच्छी प्रकार पवित्र, स्वच्छ किये पदार्थ के समान ( वने निपूतम् ) सैन्य दल के आधार पर प्राप्त ऐश्वर्य ( वने ) सेवन करने के निमित्त ( उत् न यध्वम्) उत्तम रीति से लाभो । वह ( जुषाणः ) प्रेम से सेवन करता हुआ ( वः हस्त्यम् ) तुम्हारे हाथों से तैयार किये ( सोमम् ) ऐश्वर्य और अभिषेक आदि कार्य को (अभिवावशे) सब प्रकार से चाहता है । इसलिये ( इन्द्राय ) शक्त, इन्द्र पद पर स्थित सभापति, सेनापति के लिये ( मदिरं सोमं ) अति हर्ष जनक ओषधि रस के समान पुष्टि प्रद एवं स्वच्छ पवित्र ऐश्वर्य ( जुहोत ) प्रदान करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः–१, ३, ४, ९, १०, १२ त्रिष्टुप् । २, ६,८ निचृत् त्रिष्टुप् । ७ विराट् त्रिष्टुप् । ५ निचृत्पङ्क्तिः । ११ भुरिक् पङ्क्तिः ॥ द्वादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे वैद्य लोक सूर्यकिरणांनी निष्पन्न झालेली रसक्रिया उत्कृष्ट करून स्वतः घेतात व इतरांनाही देतात ते आपले कार्य सिद्ध करू शकतात. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Leaders and participants of the yajnic developments of humanity, do your best willingly and spontaneously for this mighty and brilliant Indra. Do that and let it be sanctified and consecrated in the light and purity of the sun and raise the social order in the holy light. Join Indra and do his will, whatever he loves and desires of your art and industry. And when you have accomplished that with the expertise of your hand and imagination, then invoke, invite and honour him and celebrate the exciting pleasure and ecstasy of the soma of success.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Here the efficiency in Statecraft is underlined.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O persons ! you are industrious and therefore you should dispose of the assignments quickly and without delay, with all the resources at your disposal. This you should do for the Ruler or Head of the State-and not for selfish ends. When your Head of the State desires the promotion of handicrafts or is inclined to take the juice of SOMA and other herbals plants to give delight to all, you should provide it for him.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those physicians who administer to their patients juice of the ripe herbal plants, as well as take themselves, they can very well accomplish their targets.
Foot Notes
(अध्वर्यवः) पुरुषार्थिन:= Industrious persons. (कर्त्तन ) कुरुत | अनाऽन्येषामपीति दीर्घः । = Performers. (निप्पूतम् ) नितरां पवित्रं दुर्गन्धप्रमादत्वगुणा रहितम् = Honest and fully pure. (जुषाण:) प्रीतः सेवमानो वा = Delighted on having a drink. (हस्त्यम् ) हस्तेषु साधुम् । = Articles prepared with hand, i.e. handicrafts. (वावशे) भृशं कामयते। = To have strong desires.
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