ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 51/ मन्त्र 10
ऋषिः - स्वस्त्यात्रेयः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृदुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
स॒जूरा॑दि॒त्यैर्वसु॑भिः स॒जूरिन्द्रे॑ण वा॒युना॑। आ या॑ह्यग्ने अत्रि॒वत्सु॒ते र॑ण ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठस॒ऽजूः । आ॒दि॒त्यैः । वसु॑ऽभिः । स॒ऽजूः । इन्द्रे॑ण । वा॒युना॑ । आ । या॒हि॒ । अ॒ग्ने॒ । अ॒त्रि॒ऽवत् । सु॒ते । रण॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सजूरादित्यैर्वसुभिः सजूरिन्द्रेण वायुना। आ याह्यग्ने अत्रिवत्सुते रण ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठसऽजूः। आदित्यैः। वसुऽभिः। सऽजूः। इन्द्रेण। वायुना। आ। याहि। अग्ने। अत्रिऽवत्। सुते। रण ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 51; मन्त्र » 10
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्याह ॥
अन्वयः
हे अग्ने विद्वन्नादित्यैर्वसुभिस्सह सजूर्वायुनेन्द्रेण सजूः सुतेऽत्रिवद् वर्त्तते तद्विज्ञापनायाऽऽयाहि रण च ॥१०॥
पदार्थः
(सजूः) (आदित्यैः) मासैः (वसुभिः) पृथिव्यादिभिः (सजूः) (इन्द्रेण) जीवेन (वायुना) बलवता (आ, याहि) (अग्ने) पावकवद्विद्वन् (अत्रिवत्) (सुते) (रण) उपदिश ॥१०॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यो मानसो विद्युदग्निराकाशस्थो वर्त्तते तं विज्ञाय कार्य्येषूपयुङ्ध्वम् ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्नि) अग्नि के समान विद्वन् ! जो (आदित्यैः) महीनों और (वसुभिः) पृथिवी आदिकों के साथ (सजूः) संयुक्त और (वायुना) बलवान् (इन्द्रेण) जीव के साथ (सजूः) संयुक्त (सुते) उत्पन्न हुए जगत् में (अत्रिवत्) व्यापक के सदृश वर्त्तमान है, उसके जनाने के लिये (आ, याहि) प्राप्त हूजिये और (रण) उपदेश करिये ॥१०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो मन सम्बन्धी बिजुलीरूप अग्नि आकाश में स्थित हुआ वर्त्तमान है, उसको जान कर कार्य्यों में उपयोग करिये ॥१०॥
विषय
राजा प्रजा का गुरु शिष्यवत् कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०-(आदित्यैः वसुभिः सजू ) सूर्यवत् तेजस्वी पुरुषों और २५ वर्ष तक गुरु के अधीन रहकर ब्रह्मचर्य पालन करने वाले विद्वानों के साथ और ( इन्द्रेण वायुना ) ऐश्वर्यवान्, पुरुषों के साथ प्रीति युक्त होकर ( आयाहि ) हमें प्राप्त हो ( अत्रि वत्सुते रण ) उत्तम ऐश्वर्य भोक्ता के तुल्य प्रभुवत् हम को ऐश्वर्य के निमित्त उपदेश कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्वस्त्यात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१ गायत्री । २, ३, ४ निचृद् गायत्री । ५, ८, ९, १० निचृदुष्णिक् । ६ उष्णिक् । ७ विराडुष्णिक् ११ निचृत्त्रिष्टुप । १२ त्रिष्टुप । १३ पंक्तिः । १४, १५ अनुष्टुप् ।।
विषय
'आदित्य वसु इन्द्र व वायु' बनना
पदार्थ
[१] (आदित्यैः) = सब स्थानों से अच्छाई का आदान करनेवाले (वसुभिः) = उत्तम निवासवाले पुरुषों से (सजूः) = संगत हुआ-हुआ तथा (इन्द्रेण) = जितेन्द्रियता तथा (वायुना) = क्रियाशीलता से संगत हुआ-हुआ आप (हि) = तू (समन्तात्) = गतिवाला हो । [२] इस प्रकार 'आदित्य, वसु, इन्द्र और वायु ' के गुणों से युक्त होकर, हे (अग्ने) = प्रगतिशील जीव! तू (अत्रिवत्) = काम-क्रोध-लोभ से ऊपर उठे हुए पुरुष के समान (सुते) = उत्पन्न - उत्पन्न हुए हुए सोम में (रण) = आनन्द का अनुभव कर ।
भावार्थ
भावार्थ– 'आदित्य, वसु, इन्द्र व वायु' का आराधन हमें सोमरक्षण में समर्थ करता है। अच्छाइयों का आदान-निवास को उत्तम बनाना, जितेन्द्रिय बनना व क्रियाशील होना ही सोमरक्षण के लिये आवश्यक है ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जो मनासंबंधी विद्युतरूपी अग्नी आकाशात स्थित असतो त्याला जाणून कार्यामध्ये उपयोग करा. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, giver of health and knowledge, come together with the light of the sun as in the changing months and seasons, come with the generosity of the abodes of life such as earth, come with the breath of life and glow of health, come with the force and freshness of the winds, come to the world of joint human yajna like one free from threefold ailments of body, mind and spirit, rejoice and proclaim your message of health and energy loud and bold.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How one becomes learned is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person ! you purifier like the fire. United with the (months) with Vasus (earth, water etc.), and united with the mighty soul come to tell us about what is pervading in the world, and give us good teaching.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men ! the electricity that is in the Akasha (ether) connected with the wind, know that and utilise it in various works.
Foot Notes
(आदित्यैः ) मासैः । कतमे आदित्या इति । द्वादशमासाः संक्तसर । इति हो वाच एते आदित्याः एते हीदं सर्वं आददामयान्ति तस्मादादित्या इति (Stph. 11, 6, 3, 8) (जैमिनीयोपनिषद् ब्राह्मणे 2, 77 ) = With . months. (वसुभि:) पृथिव्यादिभि: । कतमे वसव इति अग्निश्च पृथिवी च वायुश्चान्तरिक्षं चादित्यश्व द्यौश्चंद्र माश्यानक्षत्राणि च एते वसवः । एते हीदं सर्व वासयन्ते तस्माद् वसव इति (Stph 11, 6, 3, 6, जैमि० 2, 77 ) = With earth and other objects. (इन्द्रेण) जीवेन | = With the soul. 8 Vasus are fire, earth, air, firmament, sun, sky, moon and planets.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal