ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 51/ मन्त्र 12
ऋषिः - स्वस्त्यात्रेयः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृदुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
स्व॒स्तये॑ वा॒युमुप॑ ब्रवामहै॒ सोमं॑ स्व॒स्ति भुव॑नस्य॒ यस्पतिः॑। बृह॒स्पतिं॒ सर्व॑गणं स्व॒स्तये॑ स्व॒स्तय॑ आदि॒त्यासो॑ भवन्तु नः ॥१२॥
स्वर सहित पद पाठस्व॒स्तये॑ । व॒युम् । उप॑ । ब्र॒वा॒म॒है॒ । सोम॑म् । स्व॒स्ति । भुव॑नस्य । यः । पतिः॑ । बृह॒स्पति॑म् । सर्व॑ऽगणम् । स्व॒स्तये॑ । स्व॒स्तये॑ । आ॒दि॒त्यासः॑ । भ॒व॒न्तु॒ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः। बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः ॥१२॥
स्वर रहित पद पाठस्वस्तये। वायुम्। उप। ब्रवामहै। सोमम्। स्वस्ति। भुवनस्य। यः। पतिः। बृहस्पतिम्। सर्वऽगणम्। स्वस्तये। स्वस्तये। आदित्यासः। भवन्तु। नः ॥१२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 51; मन्त्र » 12
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः कथं विद्यावृद्धिं कुर्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यथा वयं स्वस्तये वायुं सोममुप ब्रवामहै तथा श्रुत्वा यूयमन्यान् प्रत्युप ब्रुवत। यो भुवनस्य पतिः सः स्वस्तये सर्वगणं बृहस्पतिं नः स्वस्ति च दधातु यथाऽऽदित्यासो नः स्वस्तये भवन्तु तथा युष्मभ्यमपि सन्तु ॥१२॥
पदार्थः
(स्वस्तये) सुखाय (वायुम्) वायुविद्याम् (उप) (ब्रवामहै) उपदिशेम (सोमम्) ऐश्वर्य्यम् (स्वस्ति) (भुवनस्य) लोकस्य (यः) (पतिः) पालकः (बृहस्पतिम्) बृहतीनां स्वामिनम् (सर्वगणम्) सर्वे गणाः समूहा यस्मिन् (स्वस्तये) निरुपद्रवाय (स्वस्तये) परमसुखाय (आदित्यासः) अष्टचत्वारिंशद्वर्षपरिमितेन ब्रह्मचर्येण कृतविद्या मासा इव व्याप्ताखिलविद्या वा (भवन्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥१२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । मनुष्याः परस्परं पदार्थविद्यां श्रुत्वाऽभ्यस्य च विद्वांसो भवन्तु ॥१२॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर मनुष्य कैसे विद्यावृद्धि करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (स्वस्तये) सुख के लिये (वायुम्) वायुविद्या और (सोमम्) ऐश्वर्य्य का (उप, ब्रवामहै) उपदेश देवें, वैसे सुनकर आप लोग अन्यों के प्रति उपदेश दीजिये और (यः) जो (भुवनस्य) लोक का (पतिः) स्वामी है वह (स्वस्तये) उपद्रव दूर होने के लिये (सर्वगणम्) सम्पूर्ण समूह जिसमें उस (बृहस्पतिम्) बड़ी वेदवाणियों के स्वामी को और (नः) हम लोगों के लिये (स्वस्ति) सुख को धारण करे और जैसे (आदित्यासः) अड़तालीस वर्ष परिमित ब्रह्मचर्य्य से किया विद्याभ्यास जिन्होंने तथा जो मास के सदृश सम्पूर्ण विद्याओं में व्याप्त वे हम लोगों के अर्थ (स्वस्तये) अत्यन्त सुख के लिये (भवन्तु) होवें, वैसे आप लोगों के लिये भी हों ॥१२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । मनुष्य परस्पर पदार्थविद्या को सुन और अभ्यास करके विद्वान् होवें ॥१२॥
पदार्थ
पदार्थ = ( वायुम् ) = अनन्त बलवान् परमेश्वर का ( स्वस्तये ) = कल्याण के लिए ( उपब्रवामहै ) = हम विशेष रूप से कथन करें ( सोमम् ) = सकल जगत् के उत्पादक और सत्कर्मों में प्रेरक प्रभु का ( स्वस्ति ) = आनन्द के लिए कथन कर ( यः ) = जो ( भुवनस्य पतिः ) = जगत् का पालक है ( बृहस्पतिम् ) = बड़े-बड़े सूर्यादि लोकों का वा वेदवाणी का रक्षक ( सर्वगणम् ) = सब की गणना करनेवाले जगदीश्वर का ( स्वस्तये ) = कल्याण की प्राप्ति के लिए कथन करें ( आदित्यासः ) = अविनाशी परमेश्वर के भक्त ( नः स्वस्तये ) = हमारे आनन्द के लिए ( भवन्तु ) = सदा वर्त्तमान रहें ।
भावार्थ
भावार्थ = हे अनन्त बलवान् परमैश्वर्ययुक्त, सत्कर्मों में प्रेरक ब्रह्माण्डों के और वेदवाणी के रक्षक, सब की गिनती करनेवाले सर्वशक्तिमान् जगत्पिता परमात्मन् ! आपकी हम जिज्ञासु लोग, बारम्बार स्तुति और प्रार्थना करते हैं, कृपा करके हमारा इस लोक और परलोक में सदा कल्याण करें । भगवन्! आपके भक्त जो वेदविद्या के ज्ञाता और सबका कल्याण चाहनेवाले शान्तात्मा महात्मा हैं, वे भी हमें ब्रह्मविद्या का उपदेश देकर, हमारा कल्याण करनेवाले हों।
विषय
विद्वानों शिल्पियों, तथा भौतिक शक्तियों से भी कल्याण-याचना ।
भावार्थ
भा०-हम लोग (स्वस्तये ) सुख प्राप्त करने और सौभाग्य, कल्याण की वृद्धि के लिये ( वायुम् ) वायु के समान बलवान् वीर पुरुष ज्ञान के अभिलाषुक, (सोमं ) अभिषेक योग्य राजा, शिष्य और ज्ञानवान् पुरुष के ( उप ब्रवामहै ) समीप जाकर अपना प्रार्थनावचन, प्रवचन और स्तुतिवचन कहें। ( यः भुवनस्य पतिः ) जो समस्त विश्व का पालक है वह भी हमारा ( स्वस्ति ) कल्याण करे। हम सर्वप्रेरक और सर्वोत्पादक सर्वेश्वर्यवान् उसकी स्तुति करते हैं । ( सर्वगणं ) सब गणों के स्वामी बृहस्पति ( स्वस्तये ) बड़े भारी राष्ट्र और वेदवाणी के पालक विद्वान् की हम कल्याण के लिये स्तुति करें। ( आदित्यासः ) आदित्य के समान तेजस्वी, ४८ वर्ष के ब्रह्मचारी तथा १२ मास भी (नः) हमारे ( स्वस्तये भवन्तु ) कल्याण के लिये हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्वस्त्यात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१ गायत्री । २, ३, ४ निचृद् गायत्री । ५, ८, ९, १० निचृदुष्णिक् । ६ उष्णिक् । ७ विराडुष्णिक् ११ निचृत्त्रिष्टुप । १२ त्रिष्टुप । १३ पंक्तिः । १४, १५ अनुष्टुप् ।।
विषय
कैसे आचार्य ?
पदार्थ
[१] हम (स्वस्तये) = कल्याण के लिये (वायुम्) = वायुवत् क्रियाशील आचार्य को (उपब्रवामहै) = पुकारते हैं। (सोमम्) = सोम स्वभाववाले को अथवा 'स उमा' ब्रह्मविद्या से युक्त आचार्य को । यह आचार्य (स्वस्ति) = हमारे कल्याण के लिये हो, (य:) = जो (भुवनस्य पतिः) = ब्रह्माण्ड की सब विद्याओं का पति [master] है। [२] (बृहस्पतिम्) = इस वेदज्ञान के पति 'ब्रह्मणस्पति', (सर्वगणम्) = पूर्ण स्वस्थ गणोंवाले [whole स्वस्थ-सर्व] जिसके पञ्चभूत, पञ्चप्राण, पञ्च कर्मेन्द्रियाँ, पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ व 'मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार और हृदय' का पञ्चक सब स्वस्थ हैं, उस आचार्य को (स्वस्तये) = कल्याण के लिये पुकारते हैं। (आदित्यासः) = 'प्रकृति, जीव व परमात्मा' के ज्ञान का आदान करनेवाले आदित्य (विद्वान् नः) = हमारे स्वस्तये कल्याण के लिये (भवन्तु) = हों । , सर्वगण व आदित्य' हों। ऐसे ही आचार्य
भावार्थ
भावार्थ- आचार्य 'वायु, सोम, भुवनपति, बृहस्पतिराष्ट्र का कल्याण करते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी परस्पर पदार्थविद्या ऐकून व अभ्यास करून विद्वान बनावे. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Let us study and describe Vayu, wind, energy, and pursue programmes of peace and joy for our social good and well-being. May the lord ruler who controls and sustains the world be good and kind to us. Let us pray to the Lord of the expansive universe and honour the head of all the world communities for our peace and progress. May the scholars of the highest order and the cycle of the solar phases of time and seasons be good and kind to us for our well-being.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The way to increase their knowledge is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men we tell you about the properties of the air and wealth (prosperity). You should also therefore listen attentively and tell it to others. May God, who is the Lord and Protector of the world shower welfare on the master of the Vedie speech and of band of men and all of us. As highly learned persons well-versed in all sciences after having observed Brahmacharya upto the age of 48 years, may bestow upon us great happiness, so they would do to you also.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Let men become great scholars and scientists by study physics and chemistry and by the practical application of these sciences.
Foot Notes
(सोमम् ) ऐश्वर्यंम्) । = Wealth or prosperity. (बृहस्पतिम् ) बृहतीनां स्वामिनम् । वाग्वै बृहती तस्या एष पति: (Stph 14, 4, 1, 12) वृद्धा एते खलु वादित्या यद् ब्राह्मणा: (Taittriy a 1, 1, 9, 8)। = Master of the great Vedic speeches. (आदित्यासः) अष्ट चत्वारिंशद्वर्षपरिमितेन ब्रह्मचर्येण कृतविद्या:। मा सा इव व्याप्ताखिलविद्या वा । अथ यान्यष्टचत्वारिंशद् वर्षाणि तत् तृतीये सवनम् । अष्टचत्वारिंशदक्षरा जगती जागतं तृतीयसेवनं तदस्यादित्या अन्वायत्ताः प्राणा वा आदित्या एतेहीदं सर्व आददते । = Those who have observed Brahmacharya (continence) up to the age of 48 years and have mastered all sciences.
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