ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 51/ मन्त्र 6
ऋषिः - स्वस्त्यात्रेयः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
इन्द्र॑श्च वायवेषां सु॒तानां॑ पी॒तिम॑र्हथः। ताञ्जु॑षेथामरे॒पसा॑व॒भि प्रयः॑ ॥६॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रः॑ । च॒ । वा॒यो॒ इति॑ । ए॒षा॒म् । सु॒ताना॑म् । पी॒तिम् । अ॒र्ह॒थः॒ । तान् । जु॒षे॒था॒म् । अ॒रे॒पसौ । अ॒भि । प्रयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रश्च वायवेषां सुतानां पीतिमर्हथः। ताञ्जुषेथामरेपसावभि प्रयः ॥६॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रः। च। वायो इति। एषाम्। सुतानाम्। पीतिम्। अर्हथः। तान्। जुषेथाम्। अरेपसौ। अभि। प्रयः ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 51; मन्त्र » 6
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजामात्यौ किं कुर्य्यातामित्याह ॥
अन्वयः
हे वायो ! इन्द्रश्च युवामेषां सुतानां पीतिमर्हथस्तानरेपसौ सन्तौ प्रयोऽभि जुषेथाम् ॥६॥
पदार्थः
(इन्द्रः) राजा (च) (वायो) प्रधानपुरुष (एषाम्) वर्त्तमानानाम् (सुतानाम्) निष्पालनानाम् (पीतिम्) पानम् (अर्हथः) (तान्) (जुषेथाम्) (अरेपसौ) दयालू (अभि) (प्रयः) कमनीयमन्नम् ॥६॥
भावार्थः
यत्र राजामात्या धार्मिकाः स्युस्तत्र सर्वा योग्यता जायेत ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राजा और अमात्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वायो) मुख्य पुरुष ! (इन्द्रः, च) और राजा आप दोनों (एषाम्) इन वर्त्तमान (सुतानाम्) पालना से छूटे अर्थात् सिद्ध हुए पदार्थों के (पीतिम्) पान के (अर्हथः) योग्य होते हैं (तान्) उनको और (अरेपसौ) दयालु हुए (प्रयः) सुन्दर अन्न को (अभि, जुषेथाम्) सेवन करें ॥६॥
भावार्थ
जहाँ राजा और मन्त्री धार्मिक होवें, वहाँ सम्पूर्ण योग्यता होवे ॥६॥
विषय
विद्वान् बलवान्, जनों को आमन्त्रण ।
भावार्थ
भा०-हे (वायो ) बलवन् ! विद्वन् ! आप और ( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान् पुरुष ! आप दोनों (सुतानां) उत्तम रीति से बने पदार्थों और अधीन अभिषिक्त पदाधिकारियों वा सामन्तों का ( पीतिम् ) पान, उपभोग और पालन (अर्हथः ) करने योग्य हैं। आप दोनों ( अरेपसौ) निष्पाप होकर (प्रयः अभि ) उत्तम अन्न प्राप्त कर ( तान् जुषेथां ) उन उत्तम ऐश्वर्य युक्त पदार्थों का भी सेवन करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्वस्त्यात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१ गायत्री । २, ३, ४ निचृद् गायत्री । ५, ८, ९, १० निचृदुष्णिक् । ६ उष्णिक् । ७ विराडुष्णिक् ११ निचृत्त्रिष्टुप । १२ त्रिष्टुप । १३ पंक्तिः । १४, १५ अनुष्टुप् ।।
विषय
इन्द्र और वायु
पदार्थ
[१] हे (वायो) = क्रियाशील जीव! तू (च) = और (इन्द्रः) = यह जितेन्द्रिय पुरुष (एषाम्) = इन (सुतानाम्) = उत्पन्न हुए सोमकणों के (पीतिं अर्हथ:) = पान के योग्य हो । वस्तुतः सोमपान के दो ही मुख्य साधन हैं, [क] क्रियाशीलता व [ख] जितेन्द्रियता । [२] (अरेपसौ) = क्रियाशीलता व जितेन्द्रियता से निर्दोष बने हुए तुम (तान्) = उन सोमकणों को (जुषेथाम्) = प्रीतिपूर्वक सेवन करो। और (प्रयः अभि) = आनन्द की ओर चलनेवाले होवो ।
भावार्थ
भावार्थ – क्रियाशीलता व जितेन्द्रियता से जीवन निर्दोष बनता है, तभी हम सोम का रक्षण कर पाते हैं और जीवन को आनन्दमय बना पाते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
जेथे राजा व मंत्री धार्मिक असतील तेथे सर्व प्रकारची योग्यता उत्पन्न होते. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra and Vayu, ruler of the land and commander of the defence forces, you deserve a drink of the soma of the nation’s power and culture. Come, watch the effects and delicacies of their taste and decency, and, inspired with love and holiness, enjoy the beauties of life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of a king and the Prime Minister are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king and Prime-minister, you deserve the drink of this effused juice, and take it being sinless and kind and eat the desirable good food.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Where the king and prime-minister are righteous, there is all capability to administer the State.
Foot Notes
(इन्द्रः) राजा (वायो ) प्रधानपुरुष । इदि परिमैश्वर्ये (भ्वा० ) परमैश्वर्यसम्पन्नो । राजा - इन्द्रः । वा गति गन्धनयो: (अदा० ) राज्यसंचालको दुष्ट हिंसकश्च प्रधानामात्यः । - King and Prime Minister. (अरेपसौ) दयालू । अरेपसा पापेन लिप्यमानया इति निरुक्ते यास्काचार्य: (NKT 12, 3) अरेपसा न विद्यते पापं ययोस्तौ (1, 181, 4) भाष्ये दयानन्दर्षिः । अत्न क्रूरतादि पापरहितौ अतएव दयालू ! = Kind.
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