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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 51/ मन्त्र 7
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेयः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    सु॒ता इन्द्रा॑य वा॒यवे॒ सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः। नि॒म्नं न य॑न्ति॒ सिन्ध॑वो॒ऽभि प्रयः॑ ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ताः । इन्द्रा॑य । वा॒यवे॑ । सोमा॑सः । दधि॑ऽआशिरः । नि॒म्नम् । न । य॒न्ति॒ । सिन्ध॑वः । अ॒भि । प्रयः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुता इन्द्राय वायवे सोमासो दध्याशिरः। निम्नं न यन्ति सिन्धवोऽभि प्रयः ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुताः। इन्द्राय। वायवे। सोमासः। दधिऽआशिरः। निम्नम्। न। यन्ति। सिन्धवः। अभि। प्रयः ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 51; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः ! सिन्धवो निम्नं देशं न दध्याशिरः सुतास्सोमासो वायव इन्द्राय प्रयोऽभि यन्ति ॥७॥

    पदार्थः

    (सुताः) निष्पन्नाः (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (वायवे) वायुवद्बलाय (सोमासः) ऐश्वर्य्ययुक्ताः पदार्थाः (दध्याशिरः) ये धातुमशितुं योग्याः (निम्नम्) [निम्नं] देशम् (न) इव (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (सिन्धवः) नद्यः (अभि) (प्रयः) अतीव प्रियम् ॥७॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । यथा नद्यः समुद्रं गच्छन्ति तथैव महौषधिसेविनः सुखं यान्ति ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (सिन्धवः) नदियाँ (निम्नम्) अर्थात् नीचे स्थल को (न) जैसे वैसे (दध्याशिरः) धारण करने और खाने योग्य (सुताः) उत्पन्न हुए (सोमासः) ऐश्वर्य्य से युक्त पदार्थ (वायवे) वायु के सदृश बलयुक्त (इन्द्राय) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाले के लिये (प्रयः) अत्यन्त प्रिय को (अभि) सब ओर से (यन्ति) प्राप्त होते हैं ॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे नदियाँ समुद्र को प्राप्त होती हैं, वैसे ही बड़ी ओषधियों के सेवन करनेवाले सुख को प्राप्त होते हैं ॥७॥

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    विषय

    शासकों, शिष्यों के कर्त्तव्य । अन्न के गुण ।

    भावार्थ

    भा०- ( सुताः ) उत्पन्न हुए पुत्रवत् पालित और अभिषेक द्वारा सत्कृत, ( दध्याशिरः ) पद को धारण करने के विशेष सामर्थ्य, बल पराक्रम से युक्त, ( सोमासः ) सौम्य शासक जन ( इन्द्राय वायवे ) ऐश्वर्य वान्, बलवान् नायक के ( प्रयः अभि ) अति प्रिय कार्य को लक्ष्य करके ( निम्नं सिन्धवः न ) बहते जल जैसे नीचे को जाते हैं वैसे ही वेग से ( यन्ति ) जावें, (२) सोम और शिष्य पुत्र गण, इन्द्र, पिता और वायु गुरु दोनों के प्रिय कार्य के निमित्त दौड़ कर जावें और करें ( ३ ) दधि आदि खाद्य पदार्थों से युक्त सुसंस्कृत अन्न आदि पदार्थ ऐश्वर्यवान् और विद्वान् पुरुषों के प्रिय तृप्ति वेग से करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्वस्त्यात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१ गायत्री । २, ३, ४ निचृद् गायत्री । ५, ८, ९, १० निचृदुष्णिक् । ६ उष्णिक् । ७ विराडुष्णिक् ११ निचृत्त्रिष्टुप । १२ त्रिष्टुप । १३ पंक्तिः । १४, १५ अनुष्टुप् ।।

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    विषय

    निम्नं न यन्ति सिन्धवः

    पदार्थ

    [१] (सुताः) = उत्पन्न हुए हुए (सोमासः) = सोमकण (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये तथा (वायवे) = क्रियाशील पुरुष के लिये (दध्याशिरः) = धारण करनेवाले [दधि] व चारों ओर बुराई को शीर्ण करनेवाले हैं। सुरक्षित सोम रोगकृमियों को नष्ट करके हमारा धारण करते हैं और वासनाओं को शीर्ण करके हमें पवित्र बनाते हैं। [२] ये सोमकण (निम्नम्) = नम्रतायुक्त पुरुष को (यन्ति) = प्राप्त होते हैं, (न) = जैसे कि (सिन्धवः) = बहनेवाले जल निम्न प्रदेश की ओर गतिवाले होते हैं। ये सोमरक्षक पुरुष (अभि प्रयः) = आनन्द की ओर गतिवाले होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- जितेन्द्रिय व क्रियाशील पुरुष में सुरक्षित हुए हुए सोमकण बल का धारण करनेवाले व वासनाओं को शीर्ण करनेवाले होते हैं। ये नम्रतायुक्त पुरुष को प्राप्त होते हैं और उसके जीवन को आनन्दित करते हैं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशा नद्या समुद्राला मिळतात. तसेच महौषधी घेणारे सुख प्राप्त करतात. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Just as rivers flow downwards to the seas, so the sweetness and decency of the soma of human values and culture distilled with effort and cooperative action flow to Indra and Vayu, the strong and the progressive.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men do is told further.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! as rivers flow downwards, the good articles are purchased by spending much wealth. Prepared well those articles go to please a wealthy man and a man powerful like the wind.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As rivers go to the sed, in the same manner, those who use invigorating drugs enjoy happiness, and become healthy.

    Foot Notes

    (दध्याशिरः ) ये धातुमशितुं योग्या: । (डुधाम्- धारणपोषाणयोः (जु० ) अश - भोजने (कया:) । = Things which are worth- upholding and eating. (प्रय:) अतीवप्रियम् । = Very dear.

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