ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 20/ मन्त्र 3
यु॒ध्मो अ॑न॒र्वा ख॑ज॒कृत्स॒मद्वा॒ शूरः॑ सत्रा॒षाड्ज॒नुषे॒मषा॑ळ्हः। व्या॑स॒ इन्द्रः॒ पृत॑नाः॒ स्वोजा॒ अधा॒ विश्वं॑ शत्रू॒यन्तं॑ जघान ॥३॥
स्वर सहित पद पाठयु॒ध्मः । अ॒न॒र्वा । ख॒ज॒ऽकृत् । स॒मत्ऽवा॑ । शूरः॑ । स॒त्रा॒षाट् । ज॒नुषा॑ । ई॒म् । अषा॑ळ्हः । वि । आ॒से॒ । इन्द्रः॑ । पृत॑नाः । सु॒ऽओजाः॑ । अध॑ । विश्व॑म् । श॒त्रु॒ऽयन्त॑म् । ज॒घा॒न॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
युध्मो अनर्वा खजकृत्समद्वा शूरः सत्राषाड्जनुषेमषाळ्हः। व्यास इन्द्रः पृतनाः स्वोजा अधा विश्वं शत्रूयन्तं जघान ॥३॥
स्वर रहित पद पाठयुध्मः। अनर्वा। खजऽकृत्। समत्ऽवा। शूरः। सत्राषाट्। जनुषा। ईम्। अषाळ्हः। वि। आसे। इन्द्रः। पृतनाः। सुऽओजाः। अध। विश्वम्। शत्रुऽयन्तम्। जघान ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 20; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृशो भूत्वा किं कुर्यादित्याह ॥
अन्वयः
यो राजेन्द्रो जनुषा स्वोजा युध्मोऽनर्वाऽषाळ्हः खजकृत्समद्वा शूरः सत्राषाडषाळ्हः पृतनाः स्वसेनाः पालयेदध व्यासे विश्वं शत्रूयन्तमीं जघान स एव शत्रून् विजेतुं शक्नुयात् ॥३॥
पदार्थः
(युध्मः) योद्धा (अनर्वा) अविद्यमाना अश्वा यस्य सः (खजकृत्) यः स्वजं सङ्ग्रामं करोति सः। खज इति सङ्ग्रामनाम। (निघं०२.१७)। (समद्वा) यो मदेन सह वर्त्तमानान् वनति सम्भजति सः (शूरः) शत्रूणां हिंसकः (सत्राषाट्) यः सत्राणि बहून् यज्ञान् कर्त्तुं सहते (जनुषा) जन्मना (ईम्) सर्वतः (अषाळ्हः) यः शत्रुभिः सोढुमशक्यः (वि) (आसे) मुखे (इन्द्रः) विद्युदिव (पृतनाः) सेनामनुष्यान् वा (स्वोजाः) शोभनमोजः पराक्रमोऽन्नं वा यस्य सः (अध) अथ (विश्वम्) सर्वम् (शत्रूयन्तम्) शत्रून् कामयमानम् (जघान) हन्यात् ॥३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यो वरराजगुणसहितो दीर्घेण ब्रह्मचर्येण द्वितीयजन्मनः कर्ता पूर्णबलपराक्रमो धार्मिकः स्यात् स सूर्य्यवद्दुष्टाञ्छत्रूनन्यायान्धकारं निवारयेत्स एव सर्वेषामानन्दप्रदो भवेत् ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह कैसा होकर क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जो राजा (इन्द्रः) बिजुली के समान (जनुषा) जन्म से (स्वोजाः) शुभ अन्न वा पराक्रम जिसके विद्यमान (युध्मः) जो युद्ध करनेवाला (अनर्वा) जिसके घोड़े विद्यमान नहीं जो (अषाळ्हः) शत्रुओं से न सहने योग्य (खजकृत्) सङ्ग्राम करनेवाला (समद्वा) जो मत्त प्रमत्त मनुष्यों को सेवता (शूरः) शत्रुओं को मारता (सत्राषाट्) जो यज्ञों के करने को सहता और (पृतनाः) अपनी सेनाओं को पाले (अध) इसके अनन्तर (वि, आसे) विशेषता से मुख के सम्मुख (विश्वम्) सब (शत्रूयन्तम्) शत्रुओं की कामना करनेवाले को (ईम्) सब ओर से (जघान) मारे वही शत्रुओं को जीत सके ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! श्रेष्ठ राजगुणों सहित, दीर्घ ब्रह्मचर्य्य से द्वितीय जन्म अर्थात् विद्या जन्म का कर्त्ता, पूर्ण बल पराक्रमयुक्त, धार्मिक हो वह सूर्य के समान दुष्ट शत्रुओं को अन्यायरूपी अन्धकार को निवारे, वही सब का आनन्द देनेवाला हो ॥३॥
विषय
उसके महान् कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान् राजा, ( युध्मः ) उत्तम योद्धा, ( अनर्वा ) अहिंसक वा जिसके समान दूसरा कोई सवार न हो, (खजकृत् ) संग्राम करने में कुशल, ( समद्धा ) मद अर्थात् उत्तेजना वा हर्ष से युक्त पुरुषों को प्राप्त करने वाला, ( सत्राषाड् ) बहुत से यज्ञों, का कर्त्ता वा सत्य व्यवहार से विजय करने वाला, ( ईम् जनुषा अषाढ: ) और सब प्रकार से, स्वभाव से किसी से पराजित न होने वाला हो । वह ( सु-ओजाः ) उत्तम बल-पराक्रमशील होकर ( आसे ) स्वयं मुखवत् प्रमुख स्थान पर विराजकर (पृतनाः वि जधान) सब मनुष्यों को प्राप्त करे ( अध ) और ( पृतनाः ) शत्रु सेनाओं तथा ( विश्वम् शत्रूयन्तं ) शत्रुता का व्यवहार करने वाले सब का ( वि जघान ) विविध उपायों से नाश करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः। इन्द्रो देवता।। छन्दः— १ स्वराट् पंक्ति:। ७ भुरिक् पंक्तिः। २, ४, १० निचृत्त्रिष्टुप्। ३, ५ विराट् त्रिष्टुप्। ६, ८, ९ त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्।।
विषय
जितेन्द्रिय योद्धा
पदार्थ
[१] (इन्द्रः) = एक जितेन्द्रिय पुरुष (युध्मः) = युद्ध करनेवाला होता है, काम-क्रोध आदि के साथ युद्ध करके उन्हें पराजित करता है। (अनर्वा) = युद्धों में पराङ्मुख नहीं होता, भाग नहीं खड़ा होता । (खजकृत्) = संग्राम को करनेवाला, (समद्वा) = सदा उल्लास से युक्त होता है [स मद्] | (शूरः) = शत्रुओं को शीर्ण करनेवाला, (सत्राषाट्) = बहुतों का अभिभव करनेवाला और (ईम्) = निश्चय से (जनुषा) = स्वभावतः ही (अषाढ:) = शत्रुओं से अनभिभूत होता है। [२] (स्वोजा:) = उत्तम ओजस्वी यह इन्द्र (पृतना:) = शत्रुसैन्यों को (वि आसे) = सुदूर विक्षिप्त करता है। (अधः) = और (विश्वम्) = सब (शत्रूयन्तम्) = शत्रुओं की तरह आधरण करते हुए को (जघान) = यह नष्ट करता है।
भावार्थ
भावार्थ- एक जितेन्द्रिय पुरुष योद्धा होता है। यह काम-क्रोध आदि से युद्ध करता हुआ कभी भाग नहीं खड़ा होता, उल्लासपूर्वक युद्ध में प्रवृत्त हुआ हुआ यह सदा इन शत्रुओं को अपने से दूर फेंकता है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जो श्रेष्ठ राजगुणांनी युक्त (राजा) दीर्घ ब्रह्मचर्य पालन करून द्वितीय विद्या जन्माचा कर्ता, पूर्ण बल पराक्रमयुक्त धार्मिक असतो तो सूर्याप्रमाणे दुष्ट शत्रूंचे अन्यायरूपी अंधकाराचे निवारण करतो तोच सर्वांना आनंद देणारा असतो. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Veteran warrior, relentless campaigner, passionate fighter, magnanimous hero, always victorious, Indra is unconquerable by nature. In the face of tumultuous conflicts he blazes with holy splendour and destroys all hostility from the earth.
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