ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 20/ मन्त्र 5
वृषा॑ जजान॒ वृष॑णं॒ रणा॑य॒ तमु॑ चि॒न्नारी॒ नर्यं॑ सुसूव। प्र यः से॑ना॒नीरध॒ नृभ्यो॒ अस्ती॒नः सत्वा॑ ग॒वेष॑णः॒ स धृ॒ष्णुः ॥५॥
स्वर सहित पद पाठवृषा॑ । ज॒जा॒न॒ । वृष॑णम् । रणा॑य । तम् । ऊँ॒ इति॑ । चि॒त् । नारी॑ । नर्य॑म् । स॒सू॒व॒ । प्र । यः । से॒ना॒ऽनीः । अध॑ । नृऽभ्यः॑ । अस्ति॑ । इ॒नः । सत्वा॑ । गो॒ऽएष॑णः । सः । धृ॒ष्णुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
वृषा जजान वृषणं रणाय तमु चिन्नारी नर्यं सुसूव। प्र यः सेनानीरध नृभ्यो अस्तीनः सत्वा गवेषणः स धृष्णुः ॥५॥
स्वर रहित पद पाठवृषा। जजान। वृषणम्। रणाय। तम्। ऊँ इति। चित्। नारी। नर्यम्। सुसूव। प्र। यः। सेनाऽनीः। अध। नृऽभ्यः। अस्ति। इनः। सत्वा। गोऽएषणः। सः। धृष्णुः ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 20; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
उत्पन्नो मनुष्यः कीदृशो भृत्वा शक्तिमाञ्जायत इत्याह ॥
अन्वयः
यो वृषा सेनानीः सत्वा गवेषणो नृभ्यो धृष्णुर्जजान स इन इव रणाय प्रताप्यस्ति अध यमु नर्यं वृषणं वृषा नारी च प्र सुसूव तं चिज्जना न्यायकारिणं मन्यन्ते ॥५॥
पदार्थः
(वृषा) वर्षकः (जजान) जनयेत् (वृषणम्) बलिष्ठं योद्धारम् (रणाय) सङ्ग्रामाय (तम्) (उ) (चित्) (नारी) नरस्य स्त्री (नर्यम्) नृषु बलिष्ठम् (सुसूव) जनयति (प्र) (यः) (सेनानीः) यः सेनां नयति सः (अध) अनन्तरम् (नृभ्यः) सेनानायकेभ्यः (अस्ति) (इनः) ईश्वर इव (सत्वा) बलवान् (गवेषणः) उत्तमवाग्विद्यान्वेषी (सः) (धृष्णुः) धृष्टः प्रगल्भः ॥५॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यं स्त्रीपुरुषौ दीर्घं ब्रह्मचर्यं संसेव्य जनयतः स पुरुषो जगदीश्वरवत्सर्वान् न्यायेन पालयितुं शक्तो भूत्वा सेनाऽधिपः शत्रून्विजेतुं सदा प्रभुर्भवति ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
उत्पन्न हुआ मनुष्य कैसा होकर सामर्थ्यवान् होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
(यः) जो (वृषा) वर्षा करने (सेनानीः) सेना को पहुँचाने (सत्वा) बलवान् (गवेषणः) और उत्तम वाणी विद्या का ढूँढनेवाला (नृभ्यः) सेना नायकों से (धृष्णुः) धृष्ट प्रगल्भ (जजान) उत्पन्न हो (सः) वह (इनः) ईश्वर के समान (रणाय) संग्राम के लिये प्रतापी (अस्ति) है (अध) इसके अनन्तर जिस (उ) ही (नर्यम्) मनुष्यों में (वृषणम्) बलिष्ठ योद्धा पुत्र को वर्षा करनेवाला पुरुष और (नारी) स्त्री (प्र, सुसूव) उत्पन्न करते हैं (तम्, चित्) उसी को जन न्यायकारी मानते हैं ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जिसको स्त्रीपुरुष दीर्घ ब्रह्मचर्य्य का सेवन कर उत्पन्न करते हैं, वह पुरुष जगदीश्वरवत् सब को न्याय से पालने को समर्थ होकर सेनाधिप हुआ शत्रुओं के जीतने को सदा समर्थ होता है ॥५॥
विषय
सेना नायक के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( यः ) जो (सेनानी: ) सेना का नायक ( गवेषणः ) भूमि राज्य का अभिलाषी, ( सत्वा) बलवान् ( नृभ्यः इनः अस्ति ) मनुष्यों का स्वामी राजा है ( सः धृष्णुः ) वह शत्रुओं को पराजय करने वाला होता है। ( तम् वृषणम् ) उस बलवान् पुरुष को ( रणाय ) रणादि शूरवीरता के कार्य के लिये ( वृषा ) वीर्य सेचन में समर्थ बलवान् पुरुष ही ( जजान ) उत्पन्न करता है और ( चित् ) उसी प्रकार ( नर्यं ) मनुष्यों से श्रेष्ठ उस पुरुष को ( नारी ) उत्तम स्त्री ही (सुसूव) कोख से जनती है। स्त्री पुरुष ऐसे ही नररत्न को सदा उत्पन्न करें जो सेनानायक बलवान् शत्रु पराजयकारी, संग्रामविजयी हों । इति प्रथमो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः। इन्द्रो देवता।। छन्दः— १ स्वराट् पंक्ति:। ७ भुरिक् पंक्तिः। २, ४, १० निचृत्त्रिष्टुप्। ३, ५ विराट् त्रिष्टुप्। ६, ८, ९ त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्।।
विषय
'वृषा नर्य-इन-सत्वा'
पदार्थ
[१] (वृषा) = वह शक्तिशाली परमात्मा (वृषणम्) = इस शक्तिशाली जीव को (रणाय) = संग्राम के लिये, (जजान) = जन्म देता है। प्रभु यह मानवजन्म इसलिए देते हैं मनुष्य जीवन में आक्रमण करनेवाले इन काम-क्रोध-लोभ आदि शत्रुओं से संग्राम करके इन्हें जीतने का प्रयत्न करे । (तं उचित्) = और उसको ही (नारी) = यह जीवन में आगे ले चलनेवाली वेदवाणी रूप स्त्री (नर्यम्) = नरहितकारी मनुष्य को (ससूव) = उत्पन्न करती है। वेदाध्ययन मनुष्य को सदा हितकर कार्यों में व्याप्त किये रहता है। [२] 'वृषा' प्रभु व 'नारी' वेदवाणी उस पुरुष को जन्म देते हैं (यः) = जो (नृभ्यः) = मनुष्यों के लिये (प्र सेनानीः) = प्रकृष्ट सेनापति अस्ति होता है। (इनः) = अपना स्वामी बनता है। (सत्वा) = शत्रुओं का [सादयिता] विनाशक होता है। (गवेषणः) = ज्ञान की वाणियों की कामनावाला (सः) = वह सेनानी (धृष्णुः) = शत्रुओं का धर्षक होता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु के उपासक बनें, वेदवाणी का अध्ययन करें। ये हमें 'शक्तिशालीनरहितकारी-स्वामी- शत्रुविनाशक व ज्ञान की वाणियों की कामनावाला' बनायेंगे।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे स्त्री-पुरुष दीर्घ ब्रह्मचर्य पालन करून ज्या पुरुषाला उत्पन्न करतात तो जगदीश्वराप्रमाणे सर्वांचे न्यायाने पालन करण्यास समर्थ होतो व सेनापती बनून शत्रूंना जिंकण्यास सदैव समर्थ असतो. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Him the omnipotent generous father begets, and him the supreme creative mother nature bears and nurtures as the mighty, virile and generous leader for the battle of humanity for a full joyous life on earth, the mighty ruler Indra who then rises as the commander of armies and glorious protector promoter of the world community: brave and true, seeker of truth and the divine Word of nature, the ruler irresistible for the people.
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