ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 20/ मन्त्र 9
ए॒ष स्तोमो॑ अचिक्रद॒द्वृषा॑ त उ॒त स्ता॒मुर्म॑घवन्नक्रपिष्ट। रा॒यस्कामो॑ जरि॒तारं॑ त॒ आग॒न्त्वम॒ङ्ग श॑क्र॒ वस्व॒ आ श॑को नः ॥९॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । स्तोमः॑ । अ॒चि॒क्र॒द॒त् । वृषा॑ । ते॒ । उ॒त । स्ता॒मुः । म॒घ॒ऽव॒न् । अ॒क्र॒पि॒ष्ट॒ । रा॒यः । कामः॑ । ज॒रि॒तार॑म् । ते॒ । आ । अ॒ग॒न् । त्वम् । अ॒ङ्ग । श॒क्र॒ । वस्वः॑ । आ । श॒कः॒ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष स्तोमो अचिक्रदद्वृषा त उत स्तामुर्मघवन्नक्रपिष्ट। रायस्कामो जरितारं त आगन्त्वमङ्ग शक्र वस्व आ शको नः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठएषः। स्तोमः। अचिक्रदत्। वृषा। ते। उत। स्तामुः। मघऽवन्। अक्रपिष्ट। रायः। कामः। जरितारम्। ते। आ। अगन्। त्वम्। अङ्ग। शक्र। वस्वः। आ। शकः। नः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 20; मन्त्र » 9
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः किं कृत्वा किं प्राप्नुयुरित्याह ॥
अन्वयः
हे शक्राऽङ्ग पुरुषार्थि राजन् ! य एष ते स्तोम उत वृषाऽचिक्रदत्। हे मघवँस्तामुरक्रपिष्ट ते यो रायस्कामो जरितारं त्वामागन् स त्वं नो वस्व आशकः ॥९॥
पदार्थः
(एषः) (स्तोमः) प्रशंसनीयः (अचिक्रदत्) आह्वयेत् (वृषा) बलिष्ठः (ते) तव (उत) (स्तामुः) स्तावकः (मघवन्) बहुधनयुक्त (अक्रपिष्ट) कल्पते (रायः) श्रियः (कामः) कामनामभिलाषां कुर्व्वाणः (जरितारम्) स्तोतारम् (ते) तुभ्यम् (आ) (अगन्) समन्तात्प्राप्नोतु (त्वम्) (अङ्ग) सखे (शक्र) शक्तिमन् (वस्वः) धनानि (आ) (शकः) समन्ताच्छक्नुहि (नः) अस्मान् ॥९॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यूयं यदि शक्तिं वर्धयित्वा धर्म्येण कर्मेणैश्वर्यादिप्राप्तेरभिलाषां वर्धयेयुस्तर्हि युष्मान् पुष्कलमैश्वर्यं प्राप्नुयात् ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य क्या करके किसको प्राप्त हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (शक्र) शक्तिमान् (अङ्ग) मित्र पुरुषार्थी राजन् ! जो (एषः) यह (ते) आपका (स्तोमः) प्रशंसा करने योग्य (उत) और (वृषा) बलिष्ठ जन (अचिक्रदत्) बुलावे वा हे (मघवन्) बहुत धनयुक्त ! (स्तामुः) स्तुति करनेवाला जन (अक्रपिष्ट) समर्थ होता है वा (ते) तुम्हारे लिये जो (रायः) धन की (कामः) कामना करनेवाला (जरितारम्) स्तुति करनेवाले आपको (आ, अगन्) सब ओर से प्राप्त हो वह (त्वम्) आप (नः) हमारे (वस्वः) धनों को (आ, शकः) सब ओर से सह सको ॥९॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! तुम जो शक्ति को बढ़ा कर धर्म कर्म से ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति की अभिलाषा बढ़ाओ तो तुमको पुष्कल ऐश्वर्य प्राप्त हो ॥९॥
विषय
प्रजा के अधिकार ।
भावार्थ
हे प्रजाजन ! ( एषः ) यः ( स्तोमः ) स्तुत्य, प्रशंसायोग्य (वृषा) बलवान् राजा ( ते अचिक्रदत् ) तुझे आदर से बुलावे (उत) और हे ( मघवन् ) ऐश्वर्यवन् ! विना किसी प्रकार का कृष्ट पाये ( अक्रपिष्ट ) सब सामर्थ्य प्राप्त करे। ( ते रायः कामः ) तेरे लिये ऐश्वर्य की कामना करने वाला पुरुष ( जरितारं ) सत्य ज्ञान के उपदेष्टा रूप तुझ को ( आगन् ) प्राप्त हो और ( अंग शक्र ) हे शक्तिशालिन् ! तू ( नः वस्वः ) हमारे धन पर ( आ शकः ) सब प्रकार से शक्ति या अधिकार प्राप्त कर। अर्थात् प्रजा धनाभिलाषी होकर राजा को प्राप्त करे। राजा के ऐश्वर्य का उपभोग करे और राजा प्रजा के धन पर अपना स्वत्व समझे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः। इन्द्रो देवता।। छन्दः— १ स्वराट् पंक्ति:। ७ भुरिक् पंक्तिः। २, ४, १० निचृत्त्रिष्टुप्। ३, ५ विराट् त्रिष्टुप्। ६, ८, ९ त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्।।
विषय
स्तवन से 'शक्ति व धन' की प्राप्ति
पदार्थ
[१] (एषः) = यह (ते) = आपका (स्तोमः) = स्तुति समूह (अचिक्रदद्) = ऊँचे से उच्चारित होता है। (वृषा) = यह स्तोम सब सुखों का वर्षण करनेवाला है, (उत) = और हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! यह (स्तामुः) = स्तोता (अक्रपिष्ट) = खूब सामर्थ्यवान् होता है, आपके बल से यह बलवान् बनता है। [२] हे प्रभो ! (ते जरितारम्) = तेरे स्तोता को (रायस्कायः) = धन की अभिलाषा (आगन्) = प्राप्त हुई है। सो हे (शक्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो ! (त्वम्) = आप (अंग) = शीघ्र ही (नः) = हमारे लिये (वस्वः) = धन को (आशक:) = [धेहि ] धारण करिये।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु के स्तोम का उच्चारण करते हैं, प्रभु हमें शक्तिशाली बनाते हैं। स्तोता को धन की कामना होती है, तो प्रभु उसे शीघ्र ही धन को प्राप्त कराते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! तुम्ही शक्ती वाढवून धर्म कर्माने ऐश्वर्य प्राप्ती इत्यादीची अभिलाषा वाढवा. त्यामुळे तुम्हाला पुष्कळ ऐश्वर्य प्राप्त होईल. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of wealth, honour, power and excellence, this song of adoration vibrates with prayer for your attention and the celebrant prays for your grace. May your gift of wealth and fulfilment flow to the celebrant. O lord of power dear as breath of life, make it possible for us to win all wealth, honour and excellence we pray for.
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