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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 70 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 70/ मन्त्र 11
    ऋषिः - पुरुहन्मा देवता - इन्द्र: छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः

    अ॒न्यव्र॑त॒ममा॑नुष॒मय॑ज्वान॒मदे॑वयुम् । अव॒ स्वः सखा॑ दुधुवीत॒ पर्व॑तः सु॒घ्नाय॒ दस्युं॒ पर्व॑तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न्यऽव्र॑तम् । अमा॑नुषम् । अय॑ज्वानम् । अदे॑वऽयुम् । अव॑ । स्वः । सखा॑ । दु॒धु॒वी॒त॒ । पर्व॑तः । सु॒ऽघ्नाय॑ । दस्यु॑म् । पर्व॑तः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्यव्रतममानुषमयज्वानमदेवयुम् । अव स्वः सखा दुधुवीत पर्वतः सुघ्नाय दस्युं पर्वतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अन्यऽव्रतम् । अमानुषम् । अयज्वानम् । अदेवऽयुम् । अव । स्वः । सखा । दुधुवीत । पर्वतः । सुऽघ्नाय । दस्युम् । पर्वतः ॥ ८.७०.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 70; मन्त्र » 11
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Friendly, generous but adamantine ruler, punish the person committed to destructive values, anti-human organisation, anticreative and antisocial actions and antinature and impious plans and programmes, punish him with deprivation of comfort, self-satisfaction and social privileges and assign him to sure elimination or total change. The strong uncompromising ruler should punish the violent, the terrorist and the killer to an equal and opposite fate.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    लोकांनी केवळ ईश्वराची उपासना करावी. समाजात, देशात, गावात राक्षसी काम करू नये. स्त्रीलंपटता, बालहत्या इत्यादी पातकात प्रवृत्त होता कामा नये. राजाने आपल्या प्रबंधाने समाजाला सुधारावे. ॥११॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! अन्यव्रतम्=अन्यजडादुपासकम् । अमानुषम्=अमानुषकर्माणम् । अयज्वानम् । अदेवयुमदेवकर्माणम् । पुरुषम् । सखा । पर्वतः=पर्ववान् न्यायी राजा । सर्वस्मात् सुखात् । अव+दुधुवीत=दुस्तरं प्रक्षिपेत । तं दस्युम् । सुघ्नाय=मृत्यवे । पर्वतः । दधात् ॥११ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    हे इन्द्र ! (सखा) जो जगत् का हितेच्छु (पर्वतः) दण्डधारी न्यायी राजा है, वह उस पुरुष को (स्वः) समस्त सुखों से (अव+दुधुवीत) दूर फेंक दे । केवल उसको दूर ही न करे, किन्तु (दस्युम्) उस दुष्ट मनुष्यविनाशक को (सुघ्नाय) मृत्यु के मुख में (पर्वतः) न्यायी राजा फेंक दे, जो (अन्यव्रतम्) परमात्मा को छोड़ किसी नर देवता की उपासना पूजादि करता हो, (अमानुषम्) मनुष्य से भिन्न राक्षसादिवत् जिसकी चेष्टा हो, (अयज्वानम्) जो शुभकर्म यज्ञादिकों से हरण कर्ता हो, (अदेवयुम्) जिसका स्वभाव महादुष्ट और जगद्धानिकारक हो, ऐसे समाजहानिकारी दुष्टों को राजा सदा दण्ड दिया करे ॥११ ॥

    भावार्थ

    लोगों को उचित है कि वे केवल ईश्वर की उपासना करें । समाजों में, देशों में या ग्रामों में राक्षसी काम न करें । स्त्रीलम्पटता, बालहत्यादि पातक में प्रवृत्त न हों । राजा अपने प्रबन्ध से समाज को सुधारा करे ॥११ ॥

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    विषय

    दुष्ट दमनकारी वा राजा।

    भावार्थ

    ( सखा ) प्रजा का मित्र ( पर्वतः ) पालनकारक साधनों से सम्पन्न होकर, ( पर्वतः ) मेघवत् शस्त्रवर्षी और पर्वत के समान अचल होकर, ( सु-घ्नाय ) अच्छी प्रकार दण्ड देने के लिये ( दस्युं ) दुष्ट पुरुष को ( स्वः ) सुख से ( अव दुधुवीत ) कंपा कर गिरा दे। इसी प्रकार वह ( अन्य-व्रतम् ) शत्रु के समान कर्म करने वाले ( अमानुषम् ) मनुष्यों से भिन्न, उनके शत्रु, पशुवत् दुराचारी और निर्दय, ( अयज्वानं ) अदानशील, ( अदेवयुम् ) दाता, विद्वानों वा उत्तम गुणों को न चाहने वाले को भी ( अव दुधुवीत ) कंपा कर नीचे गिरा दे, उसे दण्डित करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पुरुहन्मा ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१ पादनिचृद् बृहती। ५, ७ विराड् बृहती। ३ निचृद् बृहती। ८, १० आर्ची स्वराड् बृहती। १२ आर्ची बृहती। ९, ११ बृहती। २, ६ निचृत् पंक्तिः। ४ पंक्ति:। १३ उष्णिक्। १५ निचृदुष्णिक्। १४ भुरिगनुष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'अन्यव्रत- अमानुष - अयज्वा अदेवयु' का स्वर्गभ्रंश

    पदार्थ

    [१] वह (सखा) = यज्ञशील पुरुषों का मित्र (पर्वतः) = हमारा पूरण करनेवाला प्रभु (अन्यव्रतम्) = वेदोपदिष्ट कर्मों से भिन्न कर्मों को करनेवाले को, (अमानुषम्) = निर्दय को (अयज्वानम्) = अयज्ञशील को (अदेवयुम्) = दिव्यगुणों को प्राप्त करने की कामना न करनेवाले का (स्वः) = स्वर्ग से (अवदुधुवीत) = कम्पित करके दूर कर देता है। 'अन्यव्रत, अमानुष, अयज्वा, अदेवयु' को सुख प्राप्त नहीं होता । [२] (पर्वतः) = वह पूरण करनेवाला प्रभु (दस्युं) = उपक्षय करनेवाले को (सुघ्नाय) = सम्यक् हनन के लिए प्रेरित कर इस दस्यु का आप विनाश करिये।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु 'अन्यव्रत, अमानुष, अयज्वा, अदेवयु' पुरुष को सुखों से पृथक् करते हैं। दस्यु का प्रभु विनाश करते हैं।

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