ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 79/ मन्त्र 2
अ॒भ्यू॑र्णोति॒ यन्न॒ग्नं भि॒षक्ति॒ विश्वं॒ यत्तु॒रम् । प्रेम॒न्धः ख्य॒न्निः श्रो॒णो भू॑त् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । ऊ॒र्णो॒ति॒ । यत् । न॒ग्नम् । भि॒षक्ति॑ । विश्व॑म् । यत् । तु॒रम् । प्र । ई॒म् । अ॒न्धः । ख्य॒त् । निः । श्रो॒णः । भू॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभ्यूर्णोति यन्नग्नं भिषक्ति विश्वं यत्तुरम् । प्रेमन्धः ख्यन्निः श्रोणो भूत् ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । ऊर्णोति । यत् । नग्नम् । भिषक्ति । विश्वम् । यत् । तुरम् । प्र । ईम् । अन्धः । ख्यत् । निः । श्रोणः । भूत् ॥ ८.७९.२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 79; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 33; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 33; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma that clothes the naked, cures all the sick and suffering of the world, gives eyes to the blind to see and legs to the lame to walk.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराची शक्ती अचिन्त्य आहे. त्यामुळे विपरीत गोष्टीही घडतात यात आश्चर्य नाही. ॥२॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
अयं परेशः यन्नग्नं तद् अभ्यूर्णोति=वस्त्रेण आच्छादयति । यत्=विश्वं=सर्वम् । तुरम्=रोगग्रस्तमस्ति । तद् भिषक्ति । तस्य कृपया । अन्धः=नेत्रविकलः । प्र+ख्यत्=पश्यति । श्रोणः=पङ्गुरपि । निर्भूत्=निर्भवति=निर्गच्छति ॥२ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(यन्नग्नं) जो नग्न है, उसको वह परमात्मा (अभ्यूर्णोति) वस्त्र से ढाँकता है (यत्+विश्वम्+तुरम्) जो सब रोगग्रस्त है, उसकी (भिषक्ति) चिकित्सा करता है, (अन्धः) नेत्रहीन (प्र+ख्यत्+ईम्) अच्छी तरह से देखता है । (श्रोणः) पङ्गु (निः+भूत्) चलने लगता है ॥२ ॥
भावार्थ
परमात्मा की अचिन्त्य शक्ति है, इस कारण विपरीत बातें भी होती हैं, इसमें आश्चर्य्य करना नहीं चाहिये ॥२ ॥
विषय
उन के अद्भुत कर्म।
भावार्थ
( यत् ) जो वह पूर्वोक्त सोम, ऐश्वर्यवान् ( नग्नं अभि ऊर्णोति ) नग्न, वस्त्ररहित को वस्त्रादि से आच्छादित करता है। ( यत ) जो ( तुरं विश्वम् ) सत्र रोगी जन को ओषधि रसवत् ( भिषक्ति ) रोग से रहित करता है वह ( अन्धः ईम् प्रख्यत् ) सब के प्राण-जीवन का पोषण कारक होकर इस विश्व को अच्छी प्रकार देखता और उपदेश करता है,। श्रोणः ( निः भूत् ) सर्वश्रोता होकर सर्वत्र समर्थ रहता है। अथवा ( अन्धः प्र ख्यत्, श्रोणः निर्भूत् ) अन्ध अर्थात् अचक्षु रह कर भी देखता, और पद आदि से पंगु होकर भी सर्वत्र जाता है। यह योजना ईश्वर पक्ष में ठीक है ‘अपाणिपादो जवनो गृहीतः पश्यत्यचक्षुः स शृणोत्यकर्णः॥ उपनिषत्॥ अथवा वह नंगे को वस्त्र पहनाता, रोगी को चंगा करता है, इसी कारण ( अन्ध: प्रख्यत् ) यह दृष्टि-चेतनादि से रहित देह भी देखने में समर्थ होता है और यह प्राकृतिक जड़ जगत् वा देह ( श्रोणः ) पंगु अर्थात् शक्ति रहित होकर भी सर्वत्र जाने में समर्थ होता है। यह ईश्वर सोम या चेतन जीव की महिमा है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कृत्नुर्भार्गव ऋषिः। सोमो देवता॥ छन्दः—१, २, ६ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ४, ५, ७, ८ गायत्री। ९ निचृदनुष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥
विषय
'नग्न- तुर - अन्ध व श्रोण' प्रभुकृपा से कृपा बन जाते हैं ?
पदार्थ
[१] गतमन्त्र में वर्णित सोम शरीर में सुरक्षित होकर हमें उस महान् सोम [प्रभु] की कृपा का पात्र बनाता है (यत्) = जो ब्रह्म (नग्नं अभ्यर्णोति) = नग्न को वस्त्रों से आच्छादित करता है, (यत्) = जो (विश्वम्) = सब (तुरम्) = रोगहिंसित पुरुष को (भिषक्ति) = चिकित्सित करता है। [२] उस प्रभु के अनुग्रह से शरीर में सोम के पूर्णरूप से सुरक्षित होने पर (अन्धः) = अन्धा भी (इम्) = निश्चय से (प्र ख्यत्) = देखता है और (श्रोणः) = पंगु भी (निः भूत्) = घर से बाहर जानेवाला बनता है, अर्थात् प्रभु के अनुग्रह से सुरक्षित सोम दृष्टिशक्ति व चलने की शक्ति प्राप्त कराता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु का अनुग्रह नग्न को वस्त्रों से आच्छादित करता है, रोगी को नीरोग बनाता है, अन्धे को देखनेवाला और लंगड़े को खूब चलनेवाला बनाता है।
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