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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 79/ मन्त्र 3
    ऋषिः - कृत्नुर्भार्गवः देवता - सोमः छन्दः - विराट्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वं सो॑म तनू॒कृद्भ्यो॒ द्वेषो॑भ्यो॒ऽन्यकृ॑तेभ्यः । उ॒रु य॒न्तासि॒ वरू॑थम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । सो॒म॒ । त॒नू॒कृत्ऽभ्यः॑ । द्वेषः॑ऽभ्यः । अ॒न्यऽकृ॑तेभ्यः । उ॒रु । य॒न्ता । अ॒सि॒ । वरू॑थम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं सोम तनूकृद्भ्यो द्वेषोभ्योऽन्यकृतेभ्यः । उरु यन्तासि वरूथम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । सोम । तनूकृत्ऽभ्यः । द्वेषःऽभ्यः । अन्यऽकृतेभ्यः । उरु । यन्ता । असि । वरूथम् ॥ ८.७९.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 79; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 33; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    You, Soma, lead the good to extensive freedom and protection against waste and exploitation, jealousy and enmity, and the evil and suffering caused by others.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे परमेश्वराच्या आज्ञेनुसार चालतात ते ईर्ष्या, द्वेष इत्यादींनी रहित असतात. त्यामुळे त्यांची कोणी निंदा करत नाहीत. याप्रमाणे परमेश्वर सज्जनांना दुष्टतेपासून वाचवितो. ॥३॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे सोम=हे सर्वप्रिय जगदीश ! त्वं=साधून् । तनूकृद्भ्यः=तनूनां विच्छेदकेभ्यः । अन्यकृतेभ्यः । द्वेषोभ्यः=द्वेषेभ्यः । वरूथम्=वरणीयम् । उरु=विस्तीर्णं= रक्षणम् । यन्तासि=ददासि ॥३ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (सोम) हे सर्वप्रिय देव ! (त्वं) तू साधुओं को (अन्यकृतेभ्यः+द्वेषोभ्यः) अन्य दुष्ट पुरुषों की दुष्टता और अपकार आदि से बचाकर (उरु) बहुत (वरूथं) श्रेष्ठ रक्षण (यन्तासि) देता है । (तनूकृद्भ्यः) जो शरीर और मन को दुर्बल बनाते हैं, उनसे आप रक्षा करते हैं ॥३ ॥

    भावार्थ

    जो परमात्मा की आज्ञा पर चलते हैं, वे ईर्ष्या, द्वेष आदियों से स्वयं रहित हो जाते हैं, इसलिये उनकी भी कोई निन्दा नहीं करता । इस प्रकार परमात्मा सज्जनों को दुष्टता से बचाते रहते हैं ॥३ ॥

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    विषय

    विशाल गृह के तुल्य राजा की स्थिरता।

    भावार्थ

    हे (सोम ) सर्वप्रेरक ! सन्मार्ग में संञ्चालक ! ऐश्वर्यवन् ! ( वं ) तू ( तनू-कृद्भ्यः ) राष्ट्र को क्षीण करने वाले और ( अन्यकृतेभ्यः द्वेषोभ्यः ) अन्य, शत्रुओं से किये, उन से प्रेरित द्वेषों से भी ( वरूथं ) बचाने वाले महान् बल का ( उरु यन्तासि ) विशाल गृहवत् नियन्ता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कृत्नुर्भार्गव ऋषिः। सोमो देवता॥ छन्दः—१, २, ६ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ४, ५, ७, ८ गायत्री। ९ निचृदनुष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    क्षीण करनेवाला द्वेष

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = सम्पूर्ण संसार को जन्म देनेवाले प्रभो ! (त्वम्) = आप (अन्यकृतेभ्यः) = दूसरों से हमारे अन्दर उत्पन्न किये गये (तनूकृद्भ्यः) = हमें क्षीण करनेवाले (द्वेषोभ्यः) = द्वेष के भावों से (उरु) = विशाल-महान् (वरूथम्) = रक्षक बल को (यन्तासि) = देनेवाले हैं। [२] प्रभु का स्मरण हमें द्वेष के भावों से दूर करता है। द्वेष हमें क्षीण करनेवाला है। प्रभु ही हमें इस द्वेष से अनाक्रान्त होने का सामर्थ्य प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - इस शरीर में सोम का रक्षण करें और प्रभु का स्मरण करें तो द्वेष से ऊपर उठ पाते हैं।

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