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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 83 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 83/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कुसीदी काण्वः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    दे॒वाना॒मिदवो॑ म॒हत्तदा वृ॑णीमहे व॒यम् । वृष्णा॑म॒स्मभ्य॑मू॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वाना॑म् । इत् । अवः॑ । म॒हत् । तत् । आ । वृ॒णी॒म॒हे॒ । व॒यम् । वृष्णा॑म् । अ॒स्मभ्य॑म् । ऊ॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवानामिदवो महत्तदा वृणीमहे वयम् । वृष्णामस्मभ्यमूतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवानाम् । इत् । अवः । महत् । तत् । आ । वृणीमहे । वयम् । वृष्णाम् । अस्मभ्यम् । ऊतये ॥ ८.८३.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 83; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    We choose for ourselves the grand patronage and protection of the generous brilliancies of nature and humanity for our safety, security and advancement.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रभूच्या सृष्टीत अनेक जड, चेतन, मूर्त, अमूर्त दिव्यगुणी पदार्थ आहेत. ते आम्हाला सुख देतात; परंतु मोबदल्यात आम्ही सावधान होऊन त्यांचे देणे स्वीकारावे. ॥१॥

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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (वयम्) हम (अस्मभ्यम् ऊतये) अपने लिये संरक्षण, सहायता आदि के प्रयोजन से (वृष्णाम्) सुख आदि देने वाले (देवानाम्) मूर्त एवं अमूर्त, जड़ तथा चेतन दिव्यगुणी पदार्थों का (इत्) ही (महत्) महत्त्वपूर्ण हो (अवः) संरक्षण, सहायता आदि है (तत्) उसे (आ वृणीमहे) स्वीकार करें॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा की सृष्टि में अनेक जड़, चेतन, मूर्त, अमूर्त दिव्यगुणी पदार्थ हैं; वे हमें सुख देते हैं, किन्तु हमें सावधान होकर उनकी देन को स्वीकार करना चाहिये॥१॥

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