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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 69 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 69/ मन्त्र 8
    ऋषिः - हिरण्यस्तूपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    आ न॑: पवस्व॒ वसु॑म॒द्धिर॑ण्यव॒दश्वा॑व॒द्गोम॒द्यव॑मत्सु॒वीर्य॑म् । यू॒यं हि सो॑म पि॒तरो॒ मम॒ स्थन॑ दि॒वो मू॒र्धान॒: प्रस्थि॑ता वय॒स्कृत॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नः॒ । प॒व॒स्व॒ । वसु॑ऽमत् । हिर॑ण्यऽवत् । अश्व॑ऽवत् । गोऽम॑त् । यव॑ऽमत् । सु॒ऽवीर्य॑म् । यू॒यम् । हि । सो॒म॒ । पि॒तरः॑ । मम॑ । स्थन॑ । दि॒वः । मू॒र्धानः॑ । प्रऽस्थि॑ताः । व॒यः॒ऽकृतः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ न: पवस्व वसुमद्धिरण्यवदश्वावद्गोमद्यवमत्सुवीर्यम् । यूयं हि सोम पितरो मम स्थन दिवो मूर्धान: प्रस्थिता वयस्कृत: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नः । पवस्व । वसुऽमत् । हिरण्यऽवत् । अश्वऽवत् । गोऽमत् । यवऽमत् । सुऽवीर्यम् । यूयम् । हि । सोम । पितरः । मम । स्थन । दिवः । मूर्धानः । प्रऽस्थिताः । वयःऽकृतः ॥ ९.६९.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 69; मन्त्र » 8
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे जगदीश ! (वसुमत्) ऐश्वर्यसम्पन्नः (हिरण्यवत्) स्वर्णादिधनस्वामी (गोमत्) गवाद्यैश्वर्यवान् (अश्ववत्) विद्युदादिशक्तेरीश्वरः (यवमत्) अन्नधनाद्यैश्वर्ययुक्तस्त्वं (सुवीर्यम्) सुपराक्रमं (नः) अस्मभ्यं (आ पवस्व) परितो देहि। (यूयम्) भवान् (हि) खलु (मम पितरः स्थन) अस्मत्पालनकर्ता भवतु। अथ च (वयस्कृतः) ऐश्वर्यदायको भवान् (दिवः) द्युलोकस्य (मूर्धानः) मुखरूपः (प्रस्थिताः) विराजमानोऽस्ति ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! (वसुमत्) ऐश्वर्यसंपन्न (हिरण्यवत्) स्वर्णादि धन के स्वामी (गोमत्) गवाद्यैश्वर्यवाले (अश्ववत्) विद्युदादि शक्तियों के स्वामी (यवमत्) अन्नधनाद्यैश्वर्ययुक्त आप (सुवीर्यं) सुन्दर पराक्रम को (नः) हम लोगों को (आ पवस्व) सब ओर से दें। (यूयम्) आप (हि) निश्चय करके (मम) मेरे (पितरः स्थन) पालन करनेवाले हैं और (वयस्कृतः) ऐश्वर्य के देनेवाले आप (दिवः) द्युलोक के (मूर्धानः) मुखरूप (प्रस्थिताः) विराजमान हैं ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा से ऐश्वर्य की प्रार्थना की गई है ॥८॥

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    विषय

    'वसुमत्-हिरण्यवत्-अश्वावत्-गोमत्-यवमत्'

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = सोम! तू (नः) = हमारे लिये (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति को आपवस्व प्राप्त करा । जो शक्ति (वसुमत्) = उत्तम वसुओंवाली है, निवास को उत्तम बनानेवाले सब आवश्यक तत्त्वों से युक्त है, (हिरण्यवत्) = ज्योति व वीर्यवाली हैं, हमारे ज्ञान को बढ़ानेवाली है [वीर्य ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है], (अश्वावत्) = उत्तम कर्मेन्द्रियोंवाली है, (गोमत्) = उत्तम ज्ञानेन्द्रियोंवाली है तथा (यवमत्) = 'बुराइयों को दूर करनेवाली व अच्छाइयों को हमारे साथ जोड़नेवाली' है [यु मिश्रणा - मिश्रणयोः] । [२] हे सोम ! (यूयम्) = तुम (हि) = ही (मम) = मेरे (पितरः) = रक्षक स्थन हो । (दिवः मूर्धान:) = तुम मेरे लिये प्रकाश के शिखर हो, मुझे ऊँचे से ऊँचे ज्ञान को प्राप्त करानेवाले हो । (प्रस्थिताः) = शरीर में प्रकर्षेण स्थित हुए हुए तुम (वयस्कृतः) = उत्तम आयुष्य को करनेवाले हो। हमारे जीवन को ये सोमकण ही दीर्घ व प्रशस्त बनाते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - ये सोम हमारा रक्षण करते हुए, प्रकाश को बढ़ाते हुए, हमारे जीवनों को उत्तम बनाते हैं ।

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    विषय

    ईश्वर से ऐश्वर्य की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! सर्व जगदुत्पादक प्रभो ! तू (नः) हमें (वसुमत्) बसने योग्य भूमियों और बसे प्रजाजनों तथा नाना ऐश्वर्यादि से युक्त, (हिरण्यवत्) सुवर्णादि हित, रमणीय पदार्थों से सम्पन्न (अश्ववत्) अश्वों से सम्पन्न, (गोमत्) गवादि से युक्त, (यवमत्) यवादि अन्नों से समृद्ध, (सुवीर्यम्) उत्तम वीर्यवत् सम्पदा (आपवस्व) सब ओर से प्राप्त करा। हे (सोम) हे उक्त शासक ! हे (पितरः) पालक सेनापतियो ! (यूयं) आप लोग ही (मम) मेरे पालक और (दिवः मूर्धानः स्थन) आकाश के मूर्धावत् चमकते सूर्य के तुल्य सबके पालक एवं (दिवः मूर्धानः) इस भूमि के मूर्धा तुल्य शिरोवत् अग्रगण्य और (प्रस्थिताः) उत्तम पद पर स्थित और (वयः-कृतः स्थन) बल, अन्न, दीर्घायु, ज्ञान रक्षादि करने वाले होकर रहो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    हिरण्यस्तूप ऋषिः ॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, ५ पादनिचृज्जगती। २—४, ६ जगती। ७, ८ निचृज्जगती। ९ निचृत्त्रिष्टुप्। १० त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, lord of peace, progress and joy, bring us, purify and let flow, the wealth of peace and honour replete and overflowing with settlement and security, golden glory, progressive achievement, lands, cows and culture graces, food and good health, and noble courage, strength and forbearance. You alone are our father and mother, you alone would stay so constant, light of heaven, top of excellence, stable as earth, and giver of food, health and sustenance for a long full age.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमात्म्याला ऐश्वर्याची प्रार्थना केलेली आहे. ॥८॥

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