ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 71/ मन्त्र 3
ऋषिः - ऋषभो वैश्वामित्रः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
अद्रि॑भिः सु॒तः प॑वते॒ गभ॑स्त्योर्वृषा॒यते॒ नभ॑सा॒ वेप॑ते म॒ती । स मो॑दते॒ नस॑ते॒ साध॑ते गि॒रा ने॑नि॒क्ते अ॒प्सु यज॑ते॒ परी॑मणि ॥
स्वर सहित पद पाठअद्रि॑ऽभिः । सु॒तः । पा॒व॒ते॒ । गभ॑स्त्योः । वृ॒षा॒यते॑ । नभ॑सा । वेप॑ते । म॒ती । सः । मो॒द॒ते॒ । नस॑ते । साध॑ते । गि॒रा । ने॒नि॒क्ते । अ॒प्ऽसु । यज॑ते । परी॑मणि ॥
स्वर रहित मन्त्र
अद्रिभिः सुतः पवते गभस्त्योर्वृषायते नभसा वेपते मती । स मोदते नसते साधते गिरा नेनिक्ते अप्सु यजते परीमणि ॥
स्वर रहित पद पाठअद्रिऽभिः । सुतः । पावते । गभस्त्योः । वृषायते । नभसा । वेपते । मती । सः । मोदते । नसते । साधते । गिरा । नेनिक्ते । अप्ऽसु । यजते । परीमणि ॥ ९.७१.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 71; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुतः) स्वयंसिद्धः परमेश्वरः (अद्रिभिः) चित्तवृत्तिभिः साक्षात्कृतः सन् (पवते) पवित्रयति। अथ च (गभस्त्योः) अस्य जीवात्मनो ज्ञानरूपदीप्तीः (वृषायते) बलयुताः करोति। तथा (मती) ज्ञानस्वरूपो जगदीश्वरः (नभसा वेपते) व्याप्तो भवति। (सः) असौ परमेश्वरः (मोदते) आनन्दरूपेण विराजते तथा (नसते) सर्वैः सङ्गतो विराजमानोऽस्ति। (गिरा) वेदवाणिभिरुपासितः (साधते) सिद्धिदायकोऽस्ति (अप्सु) सत्कर्मणि प्रविश्य (नेनिक्ते) मनुष्यं पवित्रयति (परीमणि) रक्षायज्ञेषु (यजते) सर्वत्र परिपूजितोऽस्ति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुतः) स्वयंसिद्ध स्वयम्भू परमात्मा (अद्रिभिः) चित्तवृत्तियों द्वारा साक्षात् किया हुआ (पवते) पवित्र करता है और (गभस्त्योः) इस जीवात्मा की ज्ञानरूपी दीप्तियों को (वृषायते) बलयुक्त तथा (मती) वह ज्ञानस्वरूप परमात्मा (नभसा वेपते) व्याप्त हो रहा है। (सः) वह (मोदते) आनन्दरूप से विराजमान है और (नसते) सबका अङ्गी-सङ्गी होकर विराजमान है। (गिरा) वेदरूपी वाणियों द्वारा उपासना किया हुआ (साधते) सिद्धि का देनेवाला है और (अप्सु) सत्कर्मों में प्रवेश करके (नेनिक्ते) मनुष्य को शुद्ध करनेवाला है तथा (परीमणि) रक्षाप्रधान यज्ञों में (यजते) सर्वत्र परिपूजित है ॥३॥
भावार्थ
जो परमात्मा के पात्र होते हैं, वे प्रथम स्वयं उद्योगी बनते हैं फिर परमात्मा उनके उद्योग द्वारा उनको शुद्ध करके परमानन्द का भागी बनाता है ॥३॥
विषय
स्नातक का माननीय आदरयोग्य पद।
भावार्थ
वह (अद्रिभिः सुतः) मेघ के तुल्य दयालु, आदर योग्य गुरुजनों से (सुतः) उत्पादित और विद्या-व्रत आदि में स्नात होकर (गभस्त्योः) बाहुओं के बल से (पवते) राष्ट्र को शुद्ध-पवित्र करता है और (मती वेपते) बुद्धि के बल से शत्रुओं को कंपाता है। (सः मोदते) वह प्रसन्न होता, अन्यों को प्रसन्न करता है, (नसते) सर्वप्रिय हो जाता है। (गिरा साधते) वाणीमात्र से कार्य को सिद्ध करता है। (गिरा नेनिक्ते) सम्यक् शील व्यक्ति को वाणी द्वारा पवित्र करता है, और (अप्सु परीमणि यजते) प्रजाओं के बीच, वा प्राणों के बीच, सर्वश्रेष्ठ पद पर पूजित होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषभो वैश्वामित्र ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ७ विराड् जगती। २ जगती। ३, ५, ८ निचृज्जगती। ६ पादनिचृज्जगती। ९ विराट् त्रिष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥
विषय
मोदते नसते - साधते
पदार्थ
[१] (अद्रिभिः) = उपासकों द्वारा [adore] (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (गभस्त्योः) = भुजाओं में (पवते) = गतिवाला होता है। उपासना के द्वारा ये उपासक, वासनाओं से बचकर सोम को शरीर में ही सुरक्षित कर पाते हैं। यह सुरक्षित सोम भुजाओं में शक्ति का स्थापन करनेवाला होता है । (वृषायते) = यह सोम शक्तिशाली की तरह आचरण करता है। नभसा मस्तिष्करूप द्युलोक के द्वारा तथा मती मननपूर्वक की गयी स्तुति के द्वारा वेपते सर्व शरीर में गतिवाला होता है [सर्वत्र गच्छति सा० ] सोम को शरीर में सुरक्षित करने के प्रमुख साधन 'स्वाध्याय और स्तुति' ही हैं। [२] (सः) = यह सोमरक्षक पुरुष (मोदते) = प्रसन्नता का अनुभव करता है, (नसते) = लक्ष्य - स्थान की ओर बढ़नेवाला होता है [ go toward] साधते कार्यों को सिद्ध करता है। (गिरा नेनिक्ते) = ज्ञान की वाणियों के द्वारा जीवन का शोधन करता है तथा (परीमणि) = पालन व पूरण के निमित्त (अप्सु यजते) = सदा कर्मों में संगवाला होता है। यह क्रियाशीलता ही इसे शरीर में नीरोग व मन में वासनाशून्य बनाये रखती है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम शक्ति देता है, प्रसन्नता प्राप्त कराता है, हमें क्रियाशील बनाता है। ज्ञानाग्नि को दीप्त करके जीवन का शोधन करता है, उत्कृष्ट कर्मों में व्यापृत रखके यह हमारा पालन व पूरण करता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
The soma spirit of life vibrates and sanctifies, distilled and condensed by clouds, realised by sages, shining in sun-rays and reflecting in meditative minds of the yogis. Virile and generous, it waxes in strength, showers with the cloud and inspires all with intelligence. It rejoices, reaches all, makes everything possible, and with the divine voice joins humanity, cleanses and sanctifies, and blesses all in yajna and in their yajnic actions.
मराठी (1)
भावार्थ
जे परमेश्वराचे ज्ञान प्राप्त करतात, ज्ञानाचे पात्र बनतात ते प्रथम उद्योगी बनतात पुन्हा परमात्मा त्यांच्या उद्योगाद्वारे त्यांना शुद्ध करून परमानंदाचा भागी बनवितो. ॥३॥
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