ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 71/ मन्त्र 9
ऋषिः - ऋषभो वैश्वामित्रः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
उ॒क्षेव॑ यू॒था प॑रि॒यन्न॑रावी॒दधि॒ त्विषी॑रधित॒ सूर्य॑स्य । दि॒व्यः सु॑प॒र्णोऽव॑ चक्षत॒ क्षां सोम॒: परि॒ क्रतु॑ना पश्यते॒ जाः ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒क्षाऽइ॑व । यू॒था । प॒रि॒ऽयन् । अ॒रा॒वी॒त् । अधि॑ । त्विषीः॑ । अ॒धि॒त॒ । सूर्य॑स्य । दि॒व्यः । सु॒ऽप॒र्णः । अव॑ । च॒क्ष॒त॒ । क्षाम् । सोमः॑ । परि॑ । क्रतु॑ना । प॒श्य॒ते॒ । जाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
उक्षेव यूथा परियन्नरावीदधि त्विषीरधित सूर्यस्य । दिव्यः सुपर्णोऽव चक्षत क्षां सोम: परि क्रतुना पश्यते जाः ॥
स्वर रहित पद पाठउक्षाऽइव । यूथा । परिऽयन् । अरावीत् । अधि । त्विषीः । अधित । सूर्यस्य । दिव्यः । सुऽपर्णः । अव । चक्षत । क्षाम् । सोमः । परि । क्रतुना । पश्यते । जाः ॥ ९.७१.९
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 71; मन्त्र » 9
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(उक्षेव) विद्युदिव (यूथा) गणान् (परियन्) सम्प्राप्य (अरावीत्) शब्दायते (सूर्य्यस्य) सर्वात्मनः (त्विषीः) दीप्तीः (अध्यधित) अधिदधाति स पूर्वोक्तः (दिव्यः) (सुपर्णः) चिद्रूपः परमात्मा (क्षाम्) पृथिवीं (अव चक्षत) व्याकरोति (सोमः) परमात्मा (क्रतुना) ज्ञानदृष्ट्या (जाः) प्रजाः (परि पश्यते) पश्यति ॥९॥ इत्येकसप्ततितमं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(उक्षेव) विद्युत् के समान (यूथा) गणों को (परियन्) प्राप्त होकर (अरावीत्) शब्दायमान होता है (सूर्य्यस्य) सूर्य की (त्विषीः) दीप्ति को (अधि अधित) धारण कराता है। (दिव्यः) दिव्य गुणवाला (सुपर्णः) चेतन (सोमः) परमात्मा (क्षां) पृथिवी का (अव चक्षत) निर्माण करनेवाला है। वह परमात्मा (जाः) प्रजा को (क्रतुना) ज्ञानदृष्टि से (परि पश्यते) देखता है ॥९॥
भावार्थ
परमात्मा अपनी ज्ञानदृष्टि से सम्पूर्ण पदार्थों को देखता है और सूर्यादि लोक-लोकान्तरों का प्रकाशक है ॥९॥ यह ७१ वाँ सूक्त और २६ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
राजा वा सेनापति का प्रबल और दयापूर्ण शासन।
भावार्थ
(यूथा परियन्) गो-यूथों को प्राप्त होता हुआ जिस प्रकार (उक्षा इव) बिजार सांड हर्ष ध्वनि करता है उसी प्रकार (यूथा परियन्) सैन्यसमूहों वा प्रजासमूहों को प्राप्त होकर वह भी (रावीत्) बल पूर्वक आज्ञा, उपदेश आदि प्रसन्नतापूर्वक प्रदान करता है। और (यूथा अधि) उन सैन्य व प्रजासमूहों पर अध्यक्ष होकर (सूर्यस्य त्विषीः) सूर्य की कान्तियों को (अधित) धारण करता है। वह (दिव्यः) ज्ञान और तेज से सम्पन्न होकर (सुपर्णः) उत्तम शुभ ज्ञान और पालन, बल तथा यान-साधनों से सम्पन्न होकर (क्षाम् अव चक्षते) भूमि पर कृपासहित देखता और उनको अनुशासन करता है। वह (सोमः) विद्वान् शासक (क्रतुना) क्रिया-सामर्थ्य और ज्ञान से (जाः परि पश्यते) सब प्रजाओं को देखता है। इति षड्विंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषभो वैश्वामित्र ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ७ विराड् जगती। २ जगती। ३, ५, ८ निचृज्जगती। ६ पादनिचृज्जगती। ९ विराट् त्रिष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥
विषय
'दिव्यः सुपर्णः'
पदार्थ
[१] (सोमः) = वीर्यशक्ति उक्षा इव सेक्ता की तरह बनी हुई, शरीर के अंग-प्रत्यंग को सिक्त करती हुई, (यूथा) = प्राणों व इन्द्रियों के गणों के (परियन्) = चारों ओर गति करती हुई, अर्थात् इनका रक्षण करती हुई, (अरावीत्) = उस प्रभु का स्तवन करती है । अर्थात् सोमरक्षण से हमारे शरीरस्थ सभी इन्द्रियादि के गण ठीक बने रहते हैं और हमारा अन्त:करण स्तुति-प्रवण होता है, हमारे मुखों से प्रभु के पवित्र स्तोत्र उच्चरित होते हैं। यह सोमरक्षक पुरुष (सूर्यस्य) ज्ञान - सूर्य की (त्विषी:) = दीप्तियों को (अधि अधित) = आधिक्येन धारण करता है। खूब ज्ञानी बनता है। [२] (दिव्यः) = सदा ज्ञान के प्रकाश में रहनेवाला, (सुपर्ण:) = मन का उत्तमता से पालन करनेवाला (क्षां अवचक्षत) = इस पृथिवीरूप शरीर को सम्यक् देखता है। शरीर का भी पूरा ध्यान करता है । (सोमः) = यह शरीरस्थ सोम [वीर्यशक्ति] (क्रतुना) = ज्ञान व दृष्टिकोणों से ध्यान करती है। में पूर्ण स्वस्थ बनाती है । शक्ति के द्वारा (जा:) = उत्पन्न होनेवाले इनको (परिपश्यते) = सब यह सोमशक्ति इन्हें मस्तिष्क में 'दिव्य', मन में 'सुपर्ण' व शरीर
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण हमें मस्तिष्क में सूर्य के समान ज्ञानदीप्त बनायेगा । हृदय में हम इस सोमरक्षण से पवित्र बनेंगे तथा शरीर में यह सोम ही हमें नीरोग बनायेगा । शरीर में सोम का रक्षण करनेवाले 'हरिमन्तः ' ही अगले सूक्त के ऋषि हैं। ये सोम-स्तवन करते हुए कहते हैं-
इंग्लिश (1)
Meaning
Just as cosmic energy comprehends and controls all systems of the universe and with its thunderous dynamics vests the sun with light, so does Soma, supreme spirit of creativity, peace and joy, the light of life and cosmic intelligence, watches the earth and nature and, with its holy creativity, controls and enlightens all systems and species it has created.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा आपल्या ज्ञानदृष्टीने संपूर्ण पदार्थांना पाहतो व सूर्य इत्यादी लोक लोकांतराचा प्रकाशक आहे. ॥९॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal