यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 15
ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः
देवता - पूषादयो लिङ्गोक्ता देवताः
छन्दः - स्वराड् जगती
स्वरः - निषादः
129
स्वाहा॑ पू॒ष्णे शर॑से॒ स्वाहा॒ ग्राव॑भ्यः॒ स्वाहा॑ प्रतिर॒वेभ्यः॑। स्वाहा॑ पि॒तृभ्य॑ऽ ऊ॒र्ध्वब॑र्हिर्भ्यो घर्म॒पावभ्यः॒ स्वाहा॒ द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॒ स्वाहा॒ विश्वे॑भ्यो दे॒वेभ्यः॑॥१५॥
स्वर सहित पद पाठस्वाहा॑। पू॒ष्णे। शर॑से। स्वाहा॑। ग्राव॑भ्य॒ इति॒ ग्राव॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। प्र॒ति॒र॒वेभ्य॒ इति॑ प्रतिऽर॒वेभ्यः॑ ॥ स्वाहा॑। पि॒तृभ्य॒ इति॒ पि॒तृऽभ्यः॑। ऊ॒र्ध्वब॑र्हिभ्य॒ इत्यू॒र्ध्वऽब॑र्हिःऽभ्यः। घ॒र्म॒पाव॑भ्य॒ इति॑ घर्म॒ऽपाव॑भ्यः। स्वाहा॑। द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म्। स्वाहा॑। विश्वे॑भ्यः। दे॒वेभ्यः॑ ॥१५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वाहा पूष्णे शरसे स्वाहा ग्रावभ्यः स्वाहा प्रतिरवेभ्यः स्वाहा पितृभ्यऽऊर्ध्वबर्हिर्भ्या घर्मपावभ्यः स्वाहा द्यावापृथिवीभ्याँ स्वाहा विश्वेभ्यः देवेभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठ
स्वाहा। पूष्णे। शरसे। स्वाहा। ग्रावभ्य इति ग्रावऽभ्यः। स्वाहा। प्रतिरवेभ्य इति प्रतिऽरवेभ्यः॥ स्वाहा। पितृभ्य इति पितृऽभ्यः। ऊर्ध्वबर्हिभ्य इत्यूर्ध्वऽबर्हिःऽभ्यः। घर्मपावभ्य इति घर्मऽपावभ्यः। स्वाहा। द्यावापृथिवीभ्याम्। स्वाहा। विश्वेभ्यः। देवेभ्यः॥१५॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
स्त्रीपुरुषैः पूष्णे शरसे स्वाहा प्रतिरवेभ्यः स्वाहा ग्रावभ्यः स्वाहोर्द्ध्वबर्हिर्भ्यो घर्मपावभ्यः पितृभ्यः स्वाहा द्यावापृथिवीभ्यां स्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यश्च स्वाहा सदा प्रयोज्या॥१५॥
पदार्थः
(स्वाहा) सत्या क्रिया (पूष्णे) पुष्टिकारकाय (शरसे) हिंसकाय (स्वाहा) सत्या वाक् (ग्रावभ्यः) गर्जकेभ्यो मेघेभ्यः। ग्रावेति मेघनामसु पठितम्॥ (निघं॰१।१०) (स्वाहा) (प्रतिरवेभ्यः) ये रवान् प्रतिरुवन्ति शब्दायन्ते तेभ्यः (स्वाहा) (पितृभ्यः) पालकेभ्य ऋतव इव वर्त्तमानेभ्यः (ऊर्द्ध्वब|िहर्भ्यः) ऊर्द्ध्वमुत्कृष्टं बर्हिर्वर्द्धनं येभ्यस्तेभ्यः (घर्मपावभ्यः) घर्मेण यज्ञेन पवित्रीकर्त्तुभ्यः (द्यावापृथिवीभ्याम्) सूर्य्यान्तरिक्षाभ्याम् (स्वाहा) (विश्वेभ्यः) समग्रेभ्यः (देवेभ्यः) दिव्येभ्यो पृथिव्यादिभ्यो विद्वद्भ्यो वा॥१५॥
भावार्थः
स्त्रीपुरुषैः सत्येन विज्ञानेन सत्यया क्रिययेदृशः पुरुषार्थः कर्त्तव्यो येन विश्वं पुष्टमानन्दितं स्यात्॥१५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
स्त्री-पुरुष को योग्य है कि (पूष्णे) पुष्टिकारक (शरसे) हिंसक के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया अर्थात् अधर्म से बचाने का उपाय (प्रतिरवेभ्यः) शब्द के प्रति शब्द करनेहारों के लिये (स्वाहा) सत्यवाणी (ग्रावभ्यः) गर्जनेवाले मेघों के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (ऊर्द्ध्वबर्हिभ्यः) उत्तम कक्षा तक बढ़े हुए (घर्मपावभ्यः) यज्ञ से संसार को पवित्र करनेहारे (पितृभ्यः) रक्षक ऋतुओं के तुल्य वर्त्तमान सज्जनों के लिये (स्वाहा) सत्यवाणी (द्यावापृथिवीभ्याम्) सूर्य्य और आकाश के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया और (विश्वेभ्यः) समग्र (देवेभ्यः) पृथिव्यादि वा विद्वानों के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया वा सत्यवाणी का सदा प्रयोग किया करें॥१५॥
भावार्थ
स्त्री-पुरुषों को चाहिये कि सत्यविज्ञान और सत्यक्रिया से ऐसा पुरुषार्थ करें, जिससे सबको पुष्टि और आनन्द होवे॥१५॥
विषय
सार पदार्थ ग्रहण करने का उपदेश ।
भावार्थ
(पूष्णे ) अन्न और वायु के समान प्रजा को पोषण करने वाले (शरसे) और शत्रु को बाण के समान मारने वाले वीर पुरुष को (स्वाहा ) उत्तम मान, आदर प्राप्त हों । (ग्रावभ्यः स्वाहा ) मेघों के समान गर्जना करने वाले वीरों और ज्ञानोपदेष्टा गुरु जनों को उत्तम आदर प्राप्त हो । ( प्रतिरवेभ्यः स्वाहा ) गुरु के कहे वचनों को दोहराने वाले शिष्यों अथवा प्रतिस्पधियों के प्रति उत्तर देने वाले, राष्ट्र के प्रागों के समान वीर पुरुषों को उत्तम अन्न एवं मान प्राप्त हो । (ऊर्ध्व वहिभ्यः) प्राची दिशा की ओर उगे कुशादि काटने वाले, पालक यज्ञशील सोमयाजी विद्वानों के उत्कृष्ट पदों तक वृद्धि करने हारें और (धर्मपावभ्यः) यज्ञ और अपने प्रखर तेज से सबके हृदयों और देश के शासन को पवित्र करने हारे (पितृभ्यः) सबके गुरुजन, माता पिता के समान अथवा ऋतुओं के समान उत्तम विद्वानों को (स्वाहां) उत्तम अन्न, आदर पद प्राप्त हो । ( द्यावापृथिव्याम् स्वाहा ) सूर्य और अन्तरिक्ष या भूम के समान राजा रानी, राजा प्रजावर्ग और उत्तम स्त्री पुरुषों के लिये उत्तम मानसूचक वचन और अधिकार और अन्नादि पदार्थ प्राप्त हों। (विश्वेभ्य: देवेभ्यः स्वाहा ) समस्त विद्वान् दानशील, विजयेच्छु पुरुषों को उत्तम आदर प्राप्त हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पूषादयो लिङ्गोक्ताः । स्वराड् जगती । निषादः ॥
पदार्थ
(ब्रह्मचर्य) - १. पूष्णे पूषा के लिए, अर्थात् पोषण की देवता के लिए (स्वाहा) = हम अपना त्याग करते हैं। वस्तुत: स्वाद आदि का त्याग होने पर ही ठीक ढंग से पोषण होता है। [ख] (शरसे स्वाहा) = [ शृ हिंसायाम्] काम-क्रोधादि वासनाओं के विनाश के लिए (स्वाहा) = मैं त्याग करता हूँ। कामादि पर विजय के लिए विश्राम आदि की सब भावनाओं को त्यागकर तपस्वी जीवन बिताना आवश्यक है। [ग] (ग्रावभ्यः) [गृ-गृणाति उपदिशति] = ज्ञान का उपदेश देनेवाले गुरुओं के लिए (स्वाहा) = हम अपना अर्पण करते हैं। गुरु के प्रति अर्पण से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। गुरु के प्रति अत्यन्त विनीत बनने से । [घ] (प्रतिरवेभ्यः) = गुरु के उच्चारण किये हुए मन्त्रों को अनूदित करनेवाले विद्यार्थीयों के लिए (स्वाहा) = हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। वस्तुतः वे ही विद्यार्थी ठीक हैं जो गुरु के मुख से निकले प्रत्येक शब्द को ध्यान से सुनकर उसका उच्चारण करते हैं। एवं ब्रह्मचर्याश्रम की मूलभूत बातें दो हैं- प्रथम बात तो यह कि शरीर में शक्ति का पोषण करना है और इसी उद्देश्य से वासनाओं को समाप्त करना है [पूष्णे शरसे] । दूसरी बात यह कि उत्तम गुरुओं को प्राप्त करके उनके मुख से उच्चरित प्रत्येक शब्द को महत्त्व देना है, उसको प्रत्युच्चरित reproduce करना है और इस प्रकार निरन्तर ज्ञानवृद्धि के लिए प्रयत्नशील होना है। (गृहस्थ) - २ (पितृभ्यः) = उन पितरों के लिए स्वाहा उत्तम वाणी का उच्चारण करते है [ स्वाहा इति वाङ्नाम - नि० १।११] जो (ऊर्ध्वबर्हिर्भ्यः) = उत्कृष्ट प्रजाओंवाले हैं। [प्रजा वै बर्हि :- को० ५/७] जिन्होंने उत्तम सन्तानों का निर्माण किया है और इसी उद्देश्य से (घर्मपावभ्यः) = शरीर में शक्ति का पान करनेवाले बने हैं। वस्तुतः संयमी जीवन से शरीर को शक्तिशाली बनानेवाले माता-पिता ही उत्कृष्ट सन्तानों को जन्म दे पाते हैं। इस प्रकार गृहस्थ का मौलिक कर्त्तव्य यह है कि वे संयमी जीवनवाले बनकर उत्तम सन्तान का निर्माण करें। (वनस्थ) - ३. गृहस्थ के बाद वानप्रस्थ में प्रवेश करके व्यक्ति फिर से अपने मस्तिष्क को ज्ञान ज्योति से उज्ज्वल करने के लिए निरन्तर स्वाध्याय में लगता है ('स्वाध्याये नित्ययुक्तः स्यात्') यह वानप्रस्थ सब ग्राम्य आहारों [मिठाई आदि] को छोड़कर वन्य कन्द-मूल, फलों पर जीवन बिताता हुआ शरीर को पूर्ण स्वस्थ बनाता है। मस्तिष्क व शरीर दोनों को स्वस्थ बनाने के लिए (द्यावापृथिवीभ्याम्) = मस्तिष्करूप द्युलोक तथा शरीररूप पृथिवी के प्रति स्(वाहा) = मैं अपना अर्पण करता हूँ। इनकी उन्नति को ही मैं अपना ध्येय बना लेता हूँ। इनको स्वस्थ करने के बाद संन्यासी होकर मैं प्रचारकार्य को ठीक प्रकार से कर पाऊँगा । (संन्यास) - ४. अब ' द्यावापृथिवीभ्यां' का ठीक विकास करके व्यक्ति 'देव' बनता है। इसके शरीर व मस्तिष्क दोनों ही चमकते हैं। इन विश्वेभ्यः देवेभ्यः = सब देवों के लिए हम स्वाहा:- प्रशंसात्मक शब्द बोलते हैं। इन संन्यासियों का उचित आदर हमारे जीवन को सदा सन्मार्ग में चलने की प्रेरणा देनेवाला होता है।
भावार्थ
भावार्थ - प्रथमाश्रम में हम शरीर को पुष्ट बनाने के लिए वासनाओं का संहार करें, आचार्यों से ज्ञान प्राप्त करें। द्वितीय आश्रम में शक्ति की रक्षा के द्वारा, ब्रह्मचर्य पालन के द्वारा उत्तम सन्तान को जन्म दें। तृतीयाश्रम में शरीर व मस्तिष्क को पूर्ण स्वस्थ बनाएँ और चौथे आश्रम में ज्ञान की दीप्ति को औरों तक पहुँचानेवाले बनें।
मराठी (2)
भावार्थ
स्री-पुरुषांनी सत्य विज्ञान व सत्य क्रिया याद्वारे असा पुरुषार्थ करावा की, ज्यामुळे सर्वजण बलवान होऊन आनंदी बनावेत.
विषय
पुन्हा, त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - सर्व स्त्री पुरुषांसाठी हेच योग्य आहे की त्यानी (पूष्णे) पोषक वा बलवान पण (शरसे) हिंसकवृत्तीच्या मनुष्यासाठी (स्वाहा) सत्य क्रिया करावी म्हणजे अधर्म, दुष्कृत्यादीपासून दूर राहण्याचे उपाय करावेत. (प्रतिरवेभ्यः) शब्दाला प्रतिशब्द देणार्या (म्हणजे व्यर्थ वाद घालणार्या) मनुष्यासाठी (स्वाहा) सत्य वाणीचा (शांत राहण्याचा) प्रयोग करा वा (ग्रावभ्यः) गर्जना करणार्या मेघमंडळासाठी (स्वाहा) सत्य क्रिया करावी. (पाऊस पडेल, असे करावे) (ऊर्ध्वबर्हिभ्यः) यज्ञाद्वारे जगाला पावन करणार्या (पितृभ्यः) रक्षक ऋतूंप्रमाणे असलेल्या सज्जनांसाठी (स्वाहा) सत्य वाणीचा उपयोग करा वा (त्यांच्याशी आदराने वागावे) (द्यावापृथिवीभ्याम्) सूर्य आणि आकाश यांच्यासाठी (स्वाहा) सत्य क्रिया करावी आणि (विश्वेभ्यः) पृथ्वी आदीसाठी अथवा विद्वानांसाठी (स्वाहा) व स्त्री-पुरुषांनी सदा सत्यक्रिया व सत्यवाणीचाच उपयोग करावा. (हीच सर्वांची कर्त्त्यव्यें आहेत) ॥15॥
भावार्थ
भावार्थ - स्त्री-पुरुषांचे कर्त्तव्यें आहे की त्यानी सत्य ज्ञान-विज्ञान आणि सत्य कर्म वा आचरण यांद्वारे असा पुरूषार्थ करावा की ज्यायोगे सर्वांना शक्ती व आनंद मिळेल. ॥15॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Husband and wife should try to save powerful, violent persons from irreligious acts. They should respect the pupils who repeat the utterances of their preceptor. They should receive gladly the thundering clouds. They should respect the highly cultured people, who purify the world with sacrifice, and like seasons protect us. They should use respectful words for ladies and gentlemen dignified like the Sun and Earth. They should always speak the truth to all the learned people.
Meaning
Homage to gentle Pusha, sweet mother Earth, giver of nourishment and growth. Homage to the clouds and mountains. Homage to the reverberating caves and skies. Homage to the forefathers and the seniors. Homage to the higher powers of intelligence and the sustainers of pure yajna fire. Homage to heaven and earth. Homage to all divinities.
Translation
Dedication to the nourisher, the affectionate. (1) Dedication to the thundering clouds. (2) Dedication to the echoing clouds. (3) Dedication to the elders, urging the sacrifice upwards and protecting the fire. (4) Dedication to the heaven and earth. (5) Dedication to all the bounties of Nature. (6)
Notes
Śarase, दध्न उपरि स्नेह: शर:, cream that lies on the surface of curd. अत्र स्नेहमात्रवाची There it means only affection. स्नेह denotes fatty substance, cream, butter etc. as well as love and affection. Affectionate. Grāvabhyaḥ, गर्जकेभ्य; मेघेभ्य:, to the thundering clouds. Also, :, to vital breaths. Pratiravebhyah, प्राणेभ्य:, to the the vital breaths. 'प्राणा वै प्रतिरवा प्राणान् हीदᳩ सर्वं प्रतिरतम्' (Śatapatha, 14. 2. 2. 34), the vital breaths are pratiravāḥ. Also, to the echoing clouds. Ürdhvabarhibhyaḥ, those who urge the sacrifice upwards; propagators of sacrifice.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- স্ত্রী-পুরুষদের উচিত যে, (পূষ্ণে) পুষ্টিকারক (শরসে) হিংসকের জন্য (স্বাহা) সত্যক্রিয়া অর্থাৎ অধর্ম হইতে রক্ষা করিবার উপায় (প্রতিরবেভ্যঃ) শব্দের প্রতি শব্দ করে যাহারা তাহাদের জন্য (স্বাহা) সত্যবাণী (গ্রাবভ্যঃ) গর্জনকারী মেঘের জন্য (স্বাহা) সত্যক্রিয়া (ঊর্দ্ধ্ববর্হির্ভ্যঃ) উত্তম শ্রেণি পর্য্যন্ত বৃদ্ধি প্রাপ্ত (ঘর্মপাবভ্যঃ) যজ্ঞ দ্বারা সংসারকে পবিত্রকারী (পিতৃভ্যঃ) রক্ষক ঋতু গুলির তুল্য বর্ত্তমান সজ্জনদের জন্য (স্বাহা) সত্যবাণী (দ্যাবাপৃথিবীভ্যাম্) সূর্য্য ও আকাশের জন্য (স্বাহা) সত্যক্রিয়া এবং (বিশ্বেভ্যঃ) সমগ্র (দেবেভ্যঃ) পৃথিব্যাদি বা বিদ্বান্দিগের জন্য (স্বাহা) সত্যক্রিয়া বা সত্যবাণীর সর্বদা প্রয়োগ করিতে থাক ॥ ১৫ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- স্ত্রী পুরুষদের উচিত যে, সত্যবিজ্ঞান এবং সত্যক্রিয়া দ্বারা এমন পুরুষার্থ করিবে যাহাতে সকলের পুষ্টি ও আনন্দ হয় ॥ ১৫ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
স্বাহা॑ পূ॒ষ্ণে শর॑সে॒ স্বাহা॒ গ্রাব॑ভ্যঃ॒ স্বাহা॑ প্রতির॒বেভ্যঃ॑ । স্বাহা॑ পি॒তৃভ্য॑ऽ ঊ॒র্দ্ধ্বব॑র্হির্ভ্যো ঘর্ম॒পাবভ্যঃ॒ স্বাহা॒ দ্যাবা॑পৃথি॒বীভ্যা॒ᳬं স্বাহা॒ বিশ্বে॑ভ্যো দে॒বেভ্যঃ॑ ॥ ১৫ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
স্বাহা পূষ্ণ ইত্যস্য দীর্ঘতমা ঋষিঃ । পূষাদয়ো লিঙ্গোক্তা দেবতাঃ ।
স্বরাড্ জগতী ছন্দঃ । নিষাদঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal