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यजुर्वेद अध्याय - 38

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  • यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 16
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - रुद्रादयो देवताः छन्दः - भुरिगतिधृतिः स्वरः - षड्जः
    142

    स्वाहा॑ रु॒द्राय॑ रु॒द्रहू॑तये॒ स्वाहा॒ सं ज्योति॑षा॒ ज्योतिः॑।अहः॑ के॒तुना॑ जुषता सु॒ज्योति॒र्ज्योति॑षा॒ स्वाहा॑।रात्रिः॑ के॒तुना जुषता सु॒ज्योति॒र्ज्योति॑षा॒ स्वाहा॑।मधु॑ हु॒तमिन्द्र॑तमेऽअ॒ग्नाव॒श्याम॑ ते देव घर्म॒ नम॑स्तेऽअस्तु॒ मा मा॑ हिꣳसीः॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वाहा॑। रु॒द्राय॑। रु॒दाय॑। रु॒द्रहू॑तये॒ इति॑ रुद्र॒ऽहू॑तये। स्वाहा॑। सम्। ज्योति॑षा। ज्योतिः॑। अह॒रित्यहः॑। के॒तुना॑। जु॒ष॒ता॒म्। सु॒ज्योति॒रिति॑ सु॒ऽज्योतिः॑। ज्योति॑षा। स्वाहा॑। रात्रिः॑। के॒तुना॑। जु॒ष॒ता॒म्। सु॒ज्योति॒रिति॑ सु॒ऽज्योतिः॑। ज्योति॑षा। स्वाहा॑। रात्रिः॑। के॒तुना॑। जु॒ष॒ता॒म्। सु॒ज्योति॒रिति॑। सु॒ऽज्योतिः॑। ज्योति॑षा। स्वाहा॑ ॥ मधु॑। हु॒तम्। इन्द्र॑तम॒ इतीन्द्र॑ऽतमे। अ॒ग्नौ। अ॒श्याम॑। ते॒। दे॒व॒। घ॒र्म॒। नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। मा। मा॒। हि॒ꣳसीः॒ ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वाहा रुद्राय रुद्रहूतये । स्वाहा सञ्ज्योतिषा ज्योतिः अहः केतुना जुषताँ सुज्योतिर्ज्यातिषा स्वाहा । रात्रिः केतुना जुषताँ सुज्योतिर्ज्यातिषा स्वाहा । मधु हुतमिन्द्रतमेऽअग्नावश्याम ते देव घर्म नमस्तेऽअस्तु मा मा हिँसीः॥


    स्वर रहित पद पाठ

    स्वाहा। रुद्राय। रुदाय। रुद्रहूतये इति रुद्रऽहूतये। स्वाहा। सम्। ज्योतिषा। ज्योतिः। अहरित्यहः। केतुना। जुषताम्। सुज्योतिरिति सुऽज्योतिः। ज्योतिषा। स्वाहा। रात्रिः। केतुना। जुषताम्। सुज्योतिरिति सुऽज्योतिः। ज्योतिषा। स्वाहा। रात्रिः। केतुना। जुषताम्। सुज्योतिरिति। सुऽज्योतिः। ज्योतिषा। स्वाहा॥ मधु। हुतम्। इन्द्रतम इतीन्द्रऽतमे। अग्नौ। अश्याम। ते। देव। घर्म। नमः। ते। अस्तु। मा। मा। हिꣳसीः॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 38; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे स्त्रि पुरुष वा! भवति भवन्वा केतुना रुद्राय रुद्रहूतये स्वाहा ज्योतिषा ज्योतिः स्वाहा ज्योतिषा सु्ज्योतिरहः स्वाहा संजुषताम्। केतुना ज्योतिषा सुज्योतिः रात्री रात्रिं स्वाहा जुषताम्। हे देव घर्म! येन त इन्द्रतमेऽग्नौ मधु हुतमश्याम ते नमोऽस्तु, त्वं मा मा हिंसीः॥१६॥

    पदार्थः

    (स्वाहा) (रुद्राय) जीवाय (रुद्रहूतये) रुद्राः प्राणा जीवा वा हूयन्ते स्तूयन्ते येन तस्मै (स्वाहा) (सम्) (ज्योतिषा) प्रकाशेन (ज्योतिः) प्रकाशम् (अहः) दिनम् (केतुना) प्रज्ञया। केतुरिति प्रज्ञानामसु पठितम्॥ (निघं॰३।९) (जुषताम्) सेवताम् (सुज्योतिः) शोभनं विद्यादिसद्गुणप्रकाशम् (ज्योतिषा) सत्यविद्योपदेशरूपप्रकाशेन (स्वाहा) (रात्रिः) रात्रिम्। अत्र विभक्तिव्यत्ययः। (केतुना) संकेतरूपचिह्नेन (जुषताम्) (सुज्योतिः) धर्मादिसद्गुणप्रकाशम् (ज्योतिषा) मननादिरूपप्रकाशेन (स्वाहा) (मधु) मधुरादिगुणयुक्तं घृतादि (हुतम्) वह्नौ प्रक्षिप्तम् (इन्द्रतमे) अतिशयेनैश्वर्य्यकारके विद्युद्रूपे (अग्नौ) पावके (अश्याम) प्राप्नुयाम (ते) तुभ्यम् (देव) विद्वन् (घर्म) प्रकाशमान (नमः) (ते) (अस्तु) (मा) निषेधे (मा) माम् (हिंसीः) हिंस्याः॥१६॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः प्राणानां जीवनस्य समाजस्य च रक्षणाय विज्ञानेन कर्माण्यहोरात्रश्च युक्त्या सेवनीयः, प्रतिदिनं प्रातः सायं कस्तूर्यादिसुगन्धियुक्तं घृतं वह्नौ हुत्वा वाय्वादिशुद्धिद्वारा नित्यं मोदनीयम्॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे स्त्रि वा पुरुष! आप (केतुना) बुद्धि से (रुद्रहूतये) प्राण वा जीवों की स्तुति करनेवाले (रुद्राय) जीव के लिये (स्वाहा) सत्यवाणी से (ज्योतिषा) प्रकाश के साथ (ज्योतिः) प्रकाश को (स्वाहा) सत्यक्रिया से युक्त (ज्योतिषा) सत्य विद्या के उपदेशरूप प्रकाश के साथ (सुज्योतिः) सुन्दर विद्यादि सद्गुणों के प्रकाश तथा (अहः) दिन को (स्वाहा) सत्यक्रिया से (सम्, जुषताम्) सम्यक् सेवन करो (केतुना) संकेतरूप चिह्न और (ज्योतिषा) मननादि रूप प्रकाश के साथ (ज्योतिः) धर्मादिरूप सद्गुणों के प्रकाश और (रात्रिः) रात्रि को (स्वाहा) सत्यक्रिया) से (जुषताम्) सेवन करो। हे (घर्म) प्रकाशमान (देव) विद्वान् जन जिससे (ते) आपके लिये (इन्द्रतमे) अतिशय ऐश्वर्य्य के हेतु विद्युत्रूप (अग्नौ) अग्नि में (हुतम्) होम किये (मधु) मधुरादि गुणयुक्त घृतादि पदार्थ को घ्राण द्वारा (अश्याम) प्राप्त होवें (ते) आपके लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) प्राप्त हो आप (मा) मुझको (मा) मत (हिंसीः) मारिये॥१६॥

    भावार्थ

    मनुष्यों की योग्य है कि प्राण, जीवन और समाज की रक्षा के लिये विज्ञान के साथ कर्म और दिन-रात्रि का युक्ति से सेवन करें और प्रतिदिन प्रातः—सायंकाल में कस्तूरी आदि सुगन्धित द्रव्ययुक्त घृत को अग्नि में होम कर वायु आदि की शुद्धि द्वारा नित्य आनन्दित होवें॥१६॥

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    विषय

    सार पदार्थ ग्रहण करने का उपदेश ।

    भावार्थ

    ( रुद्रहुतये) दुष्टों को रुलाने, वीर पुरुषों को आह्वान करने वाले, उनके आज्ञापक, ( रुद्राय ) रुद्ररूप सेनापति को (स्वाहा ) उत्तम आदर प्राप्त हो । ( स्वाहा ) सत्य वाणी से (ज्योतिः) ज्योति, प्रकाश (जयोतिषा) अपने से अधिक बल प्रकाश से मिल कर एक हो जाता है उसी प्रकार वीर पुरुष वीर सेनापति से मिलकर एक हो जायें । (अहः केतुना) दिन उसके व्यापक प्रवर्त्तक सूर्य से युक्त होता है उसी प्रकार (सुज्योतिः) उत्तम, तेज वाला सेनापति (स्वाहा ) उत्तम सत्य वचन द्वारा (ज्योतिषा) तेजस्वी पुरुष से ( संजुषताम् ) सुसंगत हो, (केतुना ) रात्रि के ज्ञापक चन्द्र से (रात्रिः) सब प्राणियों को सुख देने वाली रात्रि युक्त होती है उसी प्रकार ( ज्योतिषा ) ज्योतिर्मय तेजस्वी, ज्ञानवान् पुरुष से (सुज्योतिः) उत्तम ज्योति वाली (रात्रिः) सब प्रजा को सुखदायी राज्य व्यवस्था ( स्वाहा ) उत्तम, सत्यक्रिया द्वारा ( जुषताम् ) संयुक्त रहे । (इन्द्रतमे) अति वीर्यवान् तेजस्वी (अग्नौ ) भाग में (हुतम् मधु आहुति किये हुए मधुर सुगन्धयुक्त अन्नादि पदार्थ को हम उपभोग करते हैं उसी प्रकार तुझ (चन्द्रतमे) सबसे अधिक बलवान्, ऐश्वर्यवान् (अग्नौ ) शत्रु को भाग के समान जला डालने वाले तेजस्वी राजा के अधीन (हुतम्) प्रदान किये (मधु) पृथिवीरूप राष्ट्र का हम प्रजाजन ( अश्याम) भोग करें । हे (देव) विजिगीषो ! हे (घर्मं) तेजस्विन्! राजन् ! (ते नमः अस्तु) तुझे अन्न, आदर, बल, वीर्यं प्राप्त हो । (मा) मुझ प्रजावर्ग को तू (मा हिंसी:) मत मार, पीड़ित मत कर । (२) सामान्य जीवों के पक्ष में - ( रुद्रहुतये रुद्राय) प्राणों की आहुति से जीने वाले जीव के लिये (ज्योतिषा ज्योति: सम् जुषताम् ) प्रकाश के साथ प्रकाश संगत करे । (केतुना) बुद्धिपूर्वक (अहः रात्रिः) दिन और रात्रि को भी (ज्योतिषा ज्योति:) ज्ञान से सद्- गुणों को और मनन चिन्तन से धर्मादि तत्वों को संगत कर सेवन करो । अति तीव्र अग्नि में आहुति किये घृतादि मधुर पदार्थों को हम प्राप्त हों । हे परमेश्वर ! आपको नमस्कार है । आप हमें पीड़ित न कर पालन करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    रुद्रादयः । भूरिगतिधृतिः । षड्जः ॥

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    विषय

    प्रभु - स्तोताओं का सङ्ग व प्रभु-प्राप्ति

    पदार्थ

    १. (रुद्राय) = [ रुद्र इति स्तोतृनाम- नि० ३।१६] स्तोता के लिए हम (स्वाहा) = अपना अर्पण करते हैं, (रुद्रहूतये) = [ रुद्रस्य हूतिर्यस्य] प्रभु को पुकारनेवाले के लिए (स्वाहा) = हम अपने को सौंपते हैं। प्रभु के उपासकों के संग बैठने से हमारा जीवन भी भौतिक वासनाओं से ऊपर उठकर प्रभु प्रवण बनता है। (ज्योतिषा सम्) [गत्य] (ज्योतिः) = उन ज्योतिर्मय जीवनवालों के साथ मिलकर हमारा जीवन भी ज्योतिर्मय बनता है। ('अग्निनाग्निः समिध्यते') = जैसे अग्नि से दूसरी अग्नि समिद्ध की जाती है उसी प्रकार उन ज्योतिर्मय जीवनवालों के सम्पर्क में हमारा जीवन भी ज्योतिर्मय बनता है। इस प्रकार प्रभु कृपा करें कि (अहः केतुना जुषताम्) = हमारा सारा दिन प्रकाश से सेवित हो। (सुज्योतिः) = हम उत्तम ज्योतिवाले हों। (ज्योतिषा) = इस ज्योति के हेतु ही (स्वाहा) = हम स्वार्थ त्याग करें - सब आराम व मौज को समाप्त कर दें। इसी प्रकार (रात्रिः) = रात भी (केतुना जुषताम्) = प्रकाश से सेवित हो। (सुज्योतिः) = हम उत्तम ज्योतिवाले हों, (ज्योतिषा) = इस ज्योति के दृष्टिकोण से (स्वाहा) = हम स्वार्थ त्याग करते हैं। २. ज्ञान प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि हम इस शरीर में उत्पन्न सोमशक्ति की रक्षा करनेवाले बनें। इसी सोम को 'मधु' कहते हैं। यह सब ओषधियों का सारभूत होता है। यह (मधु) = सोम (हुतम्) = आहुत होता है- समर्पित होता है। किसमें? [क] (इन्द्रतमे) = अधिक-से-अधिक जितेन्द्रिय पुरुष में और [ख] (अग्नौ) = आगे बढ़ने की वृत्तिवाले पुरुष में। जो व्यक्ति इन्द्रियों का अधिष्ठाता बनता है, वही सोम की रक्षा कर पाता है। इन्द्रिय-विषयों में फँसते ही सोम की रक्षा सम्भव नहीं रहती। साथ ही जो जीवन-यात्रा में निरन्तर आगे बढ़ने की भावना रखता है, वही व्यक्ति इन्द्रिय-विषयों में फँसने से बच सकता है, अतः हम 'इन्द्रतम व अग्नि' बनकर हे देव! सब दिव्यता के पुञ्ज प्रभो! (ते) = आपके (घर्म) = तेज को (अश्याम) = प्राप्त करें। नतमस्तक हों। आपकी विनय ही हमें इस ३. हे प्रभो! (ते नमः अस्तु) = आपके प्रति हम योग्य बनाएगी कि हम इन्द्रियों के दास बनने से बचे रहेंगे, और हममें निरन्तर आगे बढ़ने की भावना बनी रहेगी। इस प्रकार हे प्रभो ! (मा मा हिंसी:) = आप मेरी हिंसा मत होने दीजिए। प्रभु - विनय ही हमें जितेन्द्रिय बनने की क्षमता प्रदान करती है और विनाश से बचाती है।

    भावार्थ

    भावार्थ-प्रभु-स्तोताओं के सङ्ग में रहकर मैं अपने ज्ञान को बढ़ाऊँ और अन्ततः का सङ्गी बनकर सब प्रकार के प्रभु विनाश से ऊपर उठ जाऊँ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    माणसांनी प्राण, जीवन व समाजाच्या रक्षणासाठी विज्ञानयुक्त कर्म करावे आणि दिवस व रात्र यांचा युक्तीपूर्वक वापर करावा. दररोज सकाळी व संध्याकाळी कस्तुरी वगैरे सुगंधित द्रव्ययुक्त तुपाची अग्नीमध्ये आहुती देऊन वायू इत्यादींना शुद्ध करून नित्य आनंद भोगावा.

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    विषय

    मनुष्यानी काय केले पाहिजे, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे स्त्रियांनो आणि हे पुरुषांनो, तुम्ही (केतुना) बुद्धीद्वारे (रुद्रहूतये) प्राणांची वा जीवांची स्तुती करणार्‍या (रुद्राय) जीवासाठी (जीवात्म्यासाठी (स्वाहा) सत्य वारीचा उपयोग करा. तुम्ही (ज्योतिषा) प्रकाशाने (ज्योतिः) प्रकाशाला (स्वाहा) अधिक तेजस्वी करा. (ज्योतिषा) सत्यविद्या आणि उपदेशरूप प्रकाशाने (सुज्योतिः) शुभ विद्या आदीचा प्रकाश वाढवा. (अहः) दिवसा (स्वाहा) सत्यकर्म करा (सम्, जुषताम्) असे करून सर्व सुखाचे सेवन करा. (केतुना) प्रज्ञा आणि (ज्योतिषा) मनन रूप प्रकाशासह) (सुज्योतिः) सद्गुणरूप धर्माचा प्रकाश करा (रात्रिः) रात्रीला (स्वाहा) सत्य क्रियेद्वारे (जुषताम्) सेवन करा. हे (घर्म) प्रकाशमान (कीर्तीवंत) (देव) विद्वान महोदय, (ते) आपणासाठी (इन्द्रतमे) अतिशय ऐश्‍वर्यप्राप्तीची हेतु विद्युत तसेच (अग्नौ) अग्नीत (हुतम्) होम केलेले मधुर (स्वास्थ्यकर, वनस्पती आदी) पदार्थ घ्राणशक्तीच्या माध्यमातून तुमच्यापर्यंत (अश्याम) पोहचाववेत. (यज्ञाचा सुवास आपल्या घर परिसरापर्यंत येऊ दे) (ते) आणण्याकरिता (नमः) माझे नमस्कार (अस्तु) असोत आपण (मा) मला (मा) (हिंसी) मारू नका (म्हणजे आपल्या आश्रयात आल्यानंतर मला भय, विघ्न वा मृत्यू येऊ नये. आपण त्या दुःखांना माझ्यापासून दूर ठेऊन मला निर्भय करा) ॥16॥

    भावार्थ

    भावार्थ – मनुष्यांसाठी हे हितकर आहे की त्यानी प्राण, जीवन आणि समाजाच्या रक्षणासाठी विज्ञानासह कर्म, पुरूषार्थ करावा. रात्र आणि दिवस यांचा युक्तिपूर्वक उपयोग घ्यावा तसेच प्रतिदिनी सकाळी-संध्याकाळी कस्तूरी व इतर सुवासिक द्रव्य आणि घृत यांद्वारे अग्नीत होम करावा. अशा प्रकारे वायू आदीची शुद्धी करून नित्य आनंदित असवो. ॥16॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O husband or wife, for the soul that wisely extols the life breaths, let light combine with light in a righteous manner. Spend the day rightly combining the light of knowledge with the light of noble qualities. Wisely spend the night, rightly combining the light of contemplation with the light of noble religious qualities. May we enjoy through smell the sweet butter oblations put in the highly blazing fire. O Supreme God, I bow unto Thee. Let not Thou injure me.

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    Meaning

    Homage to Rudra who rallies and calls up the Rudra prana energy (for the destruction of evil). The light of the world joins with the light of the universe. May the day with its lustre, beautiful light, join with the light divine. Homage to this communion. May the night with its beauty, soothing grace, join with the grace divine. Salutations to this communion. Lord of the universe, cosmic yajna, grant us a taste of the celestial honey sweets offered into the mightiest fire of cosmic yajna. Salutations to you! Mighty Rudra, lord of pranic energy, lord of justice and reckoning, pray injure us not.

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    Translation

    Dedication to the punisher, invoked by the punishers. (1) May the light mingle with light. Svaha. (2) May the day, full of good light, pass in the light of good actions. Svaha. (3) May the night, full of good lights, pass in the light of good thoughts. Svaha. (4) Whatever sweet we have in us, that we have offered to the most resplendent adorable Lord; O brilliant sacrifice, may we enjoy (your gifts). Our obeisance be to you. May you never harm me. (5)

    Notes

    Rudra, the terrible punisher. Rudrahūti, one who is invoked by punishers, रुद्रैः आहूयते इति रुद्रहुतिः । light. Jyotisā jyotiḥ sam,संगच्छताम्, may the light mingle with Ketună, with actions; also, with thoughts. Indratame agnau, to the most resplendent adorable Lord. Indra = resplendent. Gharma, sacrifice. Also, the cauldron.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনর্মনুষ্যৈঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
    পুনঃ মনুষ্যদিগের কী কর্ত্তব্য এই বিষয়ে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে স্ত্রী বা পুরুষ ! আপনি (কেতুনা) বুদ্ধিপূর্বক (রুদ্রহূতয়ে) প্রাণ বা জীবদের স্তুতিকারীগণ (রুদ্রায়) জীবের জন্য (স্বাহা) সত্যবাণী দ্বারা (জ্যোতিষা) প্রকাশ সহ (জ্যোতি) প্রকাশকে (স্বাহা) সত্যক্রিয়া দ্বারা যুক্ত (জ্যোতিষা) সত্য বিদ্যার উপদেশরূপ প্রকাশ সহ (সুজ্যোতিঃ) সুন্দর বিদ্যাদি সদ্গুণ সকলের প্রকাশ তথা (অহঃ) দিনকে (স্বাহা) সত্যক্রিয়া দ্বারা (সম্, জুষতাম্) সম্যক্ সেবন কর (কেতুনা) সংকেতরূপ চিহ্ন এবং (জ্যোতিষা) মননাদি রূপ প্রকাশ সহ (জ্যোতিঃ) ধর্মাদিরূপ সদ্গুণগুলির প্রকাশ এবং (রাত্রিঃ) রাত্রিকে (স্বাহা) সত্যক্রিয়া দ্বারা (জূষতাম্) সেবন কর । হে (ঘর্ম) প্রকাশমান (দেব) বিদ্বান্ ব্যক্তি যাহার দ্বারা (তে) আপনার জন্য (ইন্দ্রতমে) অতিশয় ঐশ্বর্য্য হেতু বিদুৎরূপ (অগ্নৌ) অগ্নিতে (হুতম্) হোম কৃত (মধু) মধুরাদি গুণযুক্ত ঘৃতাদি পদার্থকে ঘ্রাণ দ্বারা (অশ্যাম) প্রাপ্ত হইব । (তে) আপনার জন্য (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) প্রাপ্ত হউক, আপনি (মা) আমাকে (মা) না (হিংসীঃ) মারিবেন ॥ ১৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- মনুষ্যদিগের উচিত যে, প্রাণ, জীবন ও সমাজের রক্ষার জন্য বিজ্ঞান সহ কর্ম ও দিন-রাত্রির যুক্তি পূর্বক সেবন করিবে এবং প্রতিদিন প্রাতঃ সায়ংকালে কস্তুরী আদি সুগন্ধিত দ্রব্যযুক্ত ঘৃতকে অগ্নিতে হোম করিয়া বায়ু আদির শুদ্ধি দ্বারা নিত্য আনন্দিত হইবে ॥ ১৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    স্বাহা॑ রু॒দ্রায়॑ রু॒দ্রহূ॑তয়ে॒ স্বাহা॒ সং জ্যোতি॑ষা॒ জ্যোতিঃ॑ ।
    অহঃ॑ কে॒তুনা॑ জুষতাᳬं সু॒জ্যোতি॒র্জ্যোতি॑ষা॒ স্বাহা॑ ।
    রাত্রিঃ॑ কে॒তুনা জুষতাᳬं সু॒জ্যোতি॒র্জ্যোতি॑ষা॒ স্বাহা॑ ।
    মধু॑ হু॒তমিন্দ্র॑তমেऽঅ॒গ্নাব॒শ্যাম॑ তে দেব ঘর্ম॒ নম॑স্তেऽঅস্তু॒ মা মা॑ হিꣳসীঃ ॥ ১৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    স্বাহা রুদ্রায়েত্যস্য দীর্ঘতমা ঋষিঃ । রুদ্রাদয়ো দেবতাঃ । ভুরিগতিধৃতিশ্ছন্দঃ । ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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