यजुर्वेद - अध्याय 39/ मन्त्र 10
ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः
देवता - प्राणादयो लिङ्गोक्ता देवताः
छन्दः - आकृतिः
स्वरः - पञ्चमः
228
लोम॑भ्यः॒ स्वाहा॒ लोम॑भ्यः॒ स्वाहा॑ त्व॒चे स्वाहा॑ त्व॒चे स्वाहा॒ लोहि॑ताय॒ स्वाहा॒ लोहि॑ताय॒ स्वाहा॒ मेदो॑भ्यः॒ स्वाहा॒ मेदो॑भ्यः॒ स्वाहा॑। मा॒सेभ्यः॒ स्वाहा॑ मा॒सेभ्यः॒ स्वाहा॒ स्नाव॑भ्यः॒ स्वाहा॒ स्नाव॑भ्यः॒ स्वाहा॒ऽस्थभ्यः॒ स्वाहाऽ॒स्थभ्यः॒ स्वाहा॑ म॒ज्जभ्यः॒ स्वाहा॑ म॒ज्जभ्यः॒ स्वाहा॑। रेत॑से॒ स्वाहा॑ पा॒यवे॒ स्वाहा॑॥१०॥
स्वर सहित पद पाठलोम॑भ्य॒ इति॒ लोम॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। लोम॑भ्य॒ इति॒ लोम॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। त्व॒चे। स्वाहा॑। त्व॒चे। स्वाहा॑। लोहि॑ताय। स्वाहा॑। लोहि॑ताय। स्वाहा॑। मेदो॑भ्य॒ इति॒ मेदः॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। मेदो॑भ्य॒ इति॒ मेदः॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। मा॒सेभ्यः॑। स्वाहा॑। मा॒सेभ्यः॑। स्वाहा॑। स्नाव॑भ्य॒ इति॒ स्नाव॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। स्नाव॑भ्य॒ इति॒ स्नाव॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। अ॒स्थभ्य॒ इत्य॒स्थऽभ्यः॑। स्वाहा॑। अ॒स्थभ्य॒ इत्य॒स्थऽभ्यः॑। स्वाहा॑। म॒ज्जभ्य॒ इति॑ म॒ज्जऽभ्यः॑। स्वाहा॑। म॒ज्जभ्य॒ इति॑ म॒ज्जऽभ्यः॑। स्वाहा॑। रेत॑से॑। स्वाहा॑। पा॒यवे॑। स्वाहा॑ ॥१० ॥
स्वर रहित मन्त्र
लोमभ्यः स्वाहा लोमभ्यः स्वाहा त्वचे स्वाहा त्वचे स्वाहा लोहिताय स्वाहा लोहिताय स्वाहा मेदोभ्यः स्वाहा मेदोभ्यः स्वाहा । माँसेभ्यः स्वाहा माँसेभ्यः स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहास्थभ्यः स्वाहास्थभ्यः स्वाहा मज्जभ्यः स्वाहा मज्जभ्यः स्वाहा । रेतसे स्वाहा पायवे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
लोमभ्य इति लोमऽभ्यः। स्वाहा। लोमभ्य इति लोमऽभ्यः। स्वाहा। त्वचे। स्वाहा। त्वचे। स्वाहा। लोहिताय। स्वाहा। लोहिताय। स्वाहा। मेदोभ्य इति मेदःऽभ्यः। स्वाहा। मेदोभ्य इति मेदःऽभ्यः। स्वाहा। मासेभ्यः। स्वाहा। मासेभ्यः। स्वाहा। स्नावभ्य इति स्नावऽभ्यः। स्वाहा। स्नावभ्य इति स्नावऽभ्यः। स्वाहा। अस्थभ्य इत्यस्थऽभ्यः। स्वाहा। अस्थभ्य इत्यस्थऽभ्यः। स्वाहा। मज्जभ्य इति मज्जऽभ्यः। स्वाहा। मज्जभ्य इति मज्जऽभ्यः। स्वाहा। रेतसे। स्वाहा। पायवे। स्वाहा॥१०॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
मनुष्यैर्भस्मान्तं शरीरं मन्त्रैर्दाह्यमित्याह॥
अन्वयः
मनुष्यैः प्रेतक्रियायां घृतादेर्लोमभ्यः स्वाहा लोमभ्यः स्वाहा त्वचे स्वाहा त्वचे स्वाहा लोहिताय स्वाहा लोहिताय स्वाहा मेदोभ्यः स्वाहा मेदोभ्यः स्वाहा मांसेभ्यः स्वाहा मांसेभ्यः स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहाऽस्थभ्यः स्वाहाऽस्थभ्यः स्वाहा मज्जभ्यः स्वाहा मज्जभ्यः स्वाहा रेतसे स्वाहा पायवे स्वाहा सततं प्रयोज्या॥१०॥
पदार्थः
(लोमभ्यः) त्वगुपरिस्थेभ्यो बालेभ्यः (स्वाहा) (लोमभ्यः) नखादिभ्यः (स्वाहा) (त्वचे) शरीरावरणदाहाय (स्वाहा) (त्वचे) तदन्तरावरणदाहाय (स्वाहा) (लोहिताय) रक्ताय (स्वाहा) (लोहिताय) हृदयस्थाय लोहितपिण्डाय (स्वाहा) (मेदोभ्यः) स्निग्धेभ्यो धातुविशेषेभ्यः (स्वाहा) (मेदोभ्यः) सर्वशरीरावयवार्द्रीकरेभ्यः (स्वाहा) (मांसेभ्यः) बहिःस्थेभ्यः (स्वाहा) (मांसेभ्यः) शरीरान्तर्गतेभ्यः (स्वाहा) (स्नावभ्यः) स्थूलनाडीभ्यः (स्वाहा) (स्नावभ्यः) सूक्ष्माभ्यः सिराभ्यः (स्वाहा) (अस्थभ्यः) शरीरस्थकठिनावयवेभ्यः (स्वाहा) (अस्थभ्यः) सूक्ष्मावयवाऽस्थिरूपेभ्यः (स्वाहा) (मज्जभ्यः) अस्थ्यन्तर्गतेभ्यो धातुभ्यः (स्वाहा) (मज्जभ्यः) तदन्तर्गतेभ्यः (स्वाहा) (रेतसे) वीर्य्याय (स्वाहा) (पायवे) गुह्यावयवदाहाय (स्वाहा)॥१०॥
भावार्थः
हे मनुष्याः! यावल्लोमान्यारभ्य वीर्यपर्यन्तस्य तच्छरीरस्य भस्म न स्यात् तावद् घृतेन्धनानि प्रक्षिपत॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्यों को भस्म होने तक शरीर का मन्त्रों से दाह करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि दाहकर्म में घी आदि से (लोमभ्यः) त्वचा के ऊपरले वालों के लिये (स्वाहा) इस शब्द का (लोमभ्यः) नख आदि के लिये (स्वाहा) (त्वचे) शरीर की त्वचा जलाने को (स्वाहा) (त्वचे) भीतरली त्वचा जलाने के लिये (स्वाहा) (लोहिताय) रुधिर जलाने को (स्वाहा) (लोहिताय) हृदयस्थ रुधिर पिण्ड जलाने को (स्वाहा) (मेदोभ्यः) चिकने धातुओं के जलाने को (स्वाहा) (मेदोभ्यः) सब शरीर के अवयवों को आर्द्र करनेवाले भागों के जलाने को (स्वाहा) (मांसेभ्यः) बाहरले मांसों के जलाने को (स्वाहा) (मांसेभ्यः) भीतरले मांसों के जलाने के लिये (स्वाहा) (स्नावभ्यः) स्थूल नाडि़यो के जलाने को (स्वाहा) (स्नावभ्यः) सूक्ष्म नाडि़यों के जलाने को (स्वाहा) (अस्थभ्यः) शरीरस्थ कठिन अवयवों के जलाने के लिये (स्वाहा) (अस्थभ्यः) सूक्ष्म अस्थिरूप अवयवों के जलाने को (स्वाहा) (मज्जभ्यः) हाड़ों के भीतर के धातुओं के लिये (स्वाहा) (मज्जभ्यः) उसके अन्तर्गत भाग के जलाने को (स्वाहा) (रेतसे) वीर्य के जलाने को (स्वाहा) और (पायवे) गुदारूप अवयव के दाह के लिये (स्वाहा) इस शब्द का निरन्तर प्रयोग करें॥१०॥
भावार्थ
हे मनुष्यो! जब तक लोम से लेकर वीर्य्य पर्यन्त उस मृत शरीर का भस्म न हो, तब तक घी और र्इंधन डाला करो॥१०॥
विषय
देवमय राजा । लोम त्वचादि देह धातुओं को स्वच्छ रोग रहित रखने का उपदेश ।
भावार्थ
( लोमभ्यः स्वाहा लोमभ्यः स्वाहा ) रोमों को उत्तम अन्न बल प्राप्त हो । वे स्वच्छ रोगरांहत रहें । (त्वचे स्वाहा) त्वचा के प्रत्येक भाग को उत्तम रीति से रक्खो । ( लोहिताय स्वाहा ) रक्त के प्रत्येक भाग को स्वच्छ रक्खो । (मेदोभ्यः स्वाहा मेदोभ्यः स्वाहा ) मेद, धातु के प्रत्येक अंश को स्वच्छ और रोगरहित करो । ( मांसेभ्यः स्वाहा मांसेभ्यः स्वाहा ) देह में मांसों के प्रत्येक अंश को विकाररहित, नीरोग रक्खो । (स्नावभ्यः स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहा ) प्रत्येक स्नायु को बलवान्, अविकृत रक्खो । (अस्थभ्यः स्वाहा अस्थभ्यः स्वाहा ) प्रत्येक हड्डी को बलवान् और दोष रहित रक्खो । (मज्जभ्यः स्वाहा मज्जभ्यः स्वाहा ) मज्जा के प्रत्येक भाग को उत्तम तथा भविकृत, स्वच्छ रक्खो । (रेतसे स्वाहा ) वीर्य की वृद्धि के लिये भी उत्तम प्रयत्न करो और (पायवे स्वाहा ) गुदा इन्द्रिय के मल शोधक अंग को स्वच्छ रक्खो । शरीर में विद्यमान उक्त धातुओं के समान राष्ट्र में भी घटक अवयवों को अच्छी प्रकार यत्नपूर्वक रक्खो, उनको उत्तम अन्न आदि प्रदान करो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्निः । आकृतिः । पंचमः ॥
विषय
स्वास्थ्य के लिए उत्तम अदनीय [ भक्ष्य ] अन्न का सेवन
पदार्थ
'जीवन का आनन्द स्वास्थ्य पर निर्भर करता है, इस विषय में मतभेद नहीं है। यह स्वास्थ्य भोजन पर निर्भर है। भोजन ऐसा होना चाहिए जो रस से लेकर अन्तिम धातु 'रेतस्' तक सभी के लिए हितकर हो। इस प्रकरण में 'स्वाहा' शब्द का अर्थ है ('सु हविः जुहोति') [हविः= अत्तव्यम् अन्नम् - द० ] = उत्तम अदनीय अन्न को यज्ञों में विनियुक्त करके यज्ञशेष अमृत को उदर की जाठराग्नि में डालता है। १. लोमभ्यः स्वाहा, लोमभ्यः स्वाहा-एक- एक लोम के हित के लिए यह भोजन खाया जाए। भोजन के विकार के कारण ही गञ्जापन आदि रोग हो जाते हैं। दो बार कहने का अभिप्राय यही है कि 'एक-एक लोम के लिए, अर्थात् प्रत्येक लोम के लिए' भोजन ऐसा हो जो लोम-सम्बधी किसी रोग का कारण न बन जाए। २. (त्वचे स्वाहा त्वचे स्वाहा) = त्वचा त्वचा के लिए, अर्थात् सारी त्वचा के लिए हितकर भोजन किया जाए। त्वचा के भिन्न-भिन्न रोग जो कुष्ठ नाम से कहे जाते हैं हमारा भोजन उनका कारण न बन जाए। ३. (लोहिताय स्वाहा लोहिताय स्वाहा) = सम्पूर्ण रुधिर के हित के लिए हमारा भोजन हो । भोजन ऐसा न हो जिससे कि रुधिर विकार उत्पन्न हो जाएँ। ४. (मेदोभ्यः स्वाहा मेदोभ्यः स्वाहा) = चरबी [Fat] के उचितरूप में होने के लिए भोजन किया जाए। भोजन में स्नेह का नितान्त अभाव हमारे शरीर को अतिदुर्बल बनाएगा, तो स्नेह का आधिक्य उसे बहुत भारी - सा बनाएगा, अतः 'मेदस्' के हित के दृष्टिकोण से ही भोजन किया जाए। ५. (मांसेभ्यः स्वाहा मांसेभ्यः स्वाहा) = शरीर के सम्पूर्ण मांस के हित के लिए ही भोजन का सेवन किया जाए। मांस- भोजन से मांस मर्यादा से अधिक बढ़ जाता है, वह कभी हितकर नहीं हो सकता । ६. (स्नावभ्यः स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहा) = सारे स्नायु संस्थान के हित के लिए भोजन हो। यदि इस बात का ध्यान रक्खा जाए तो रक्तचाप के आधिक्य आदि के रोग हों ही नहीं । ७. (अस्थभ्यः स्वाहा अस्थभ्यः स्वाहा) = भोजन ऐसा हो जो एक-एक अस्थि के लिए हितकर हो । भोजन में केल्शियम की मात्रा उचित रूप में हो ताकि अस्थियों का विकास ठीक से हो पाये ८. (मज्जभ्यः स्वाहा मज्जभ्यः स्वाहा) = भोजन मज्जा के लिए भी हितकर हो। ऐसा न होने पर दिमाग की कमी आदि की आशंका रहती है। पागलपन का भी यह कारण हो सकता है। ९. (रेतसे स्वाहा) = अन्तिम धातु रेतस् वीर्य है। इसके लिए हितकर सौम्य भोजन ही हमें खाने चाहिएँ । आग्नेय भोजनों का सेवन रेतस् के लिए हितकर नहीं होता । १०. (पायवे स्वाहा) = सबसे अन्तिम, पर सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भोजन पायु-मलशोधक इन्द्रिय के लिए हितकर हो। हम कोष्ठबद्धता को पैदा करनेवाले भोजनों से सदा बचें।
भावार्थ
भावार्थ - भोजन के विषय में यह ध्यान रखा जाए कि वह लोमों से लेकर वीर्य तक शरीर की सब धातुओं के लिए हितकर हो तथा कोष्ठबद्धता को पैदा करनेवाला न हो।
मराठी (2)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जोपर्यंत केसांपासून वीर्यापर्यंतचे मृत शरीराचे भस्म होत नाही तोपर्यंत तूप व इंधन घालीत राहावे.
विषय
मृतदेह अग्नीत भस्म होईपर्यंत या (व पुढील 3 मंत्राद्वारे) दाहकर्म केले पाहिजे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (अंत्येष्टि कर्म प्रसंगी उपस्थित मनुष्यांनी वा पुरोहिताने या मंत्राद्वारे तुपाची आहुती देत विधी करावा) (लोमभ्यः) त्वचेवरील रोम (केश) साठी (स्वाहा) या शब्दाचे उच्चारण करावे (लोमभ्यः) नख आदी भागासाठी (स्वाहा) (त्वचे) शरीराची त्वचा जाळण्यासाठी (स्वाहा) हा शब्द म्हणावा. (त्वचे) त्वचेच्या आतील भागासाठी (स्वाहा) (लोहिताय) रूधिर जाळण्यासाठी (स्वाहा) (लोहिताय) हृदयातील रक्त दहनासाठी (स्वाहा) (मेदोभ्यः) शरीरातील मेद वा स्निग्ध धातू जाळण्यासाठी (स्वाहा) (मेदोभ्यः) शरीरातील सर्व अवयवांना आर्द्र करणारे भागांचे दहन करणासाठी (स्वाहा) (हा शब्द म्हणावा व योग्य विधी करावा) (मांसेभ्यः) बाहेरील मांस दहन करण्यासाठी (स्वाहा) आणि (मांसेभ्यः) आतील मांस दहन करण्यासाठी (स्वाहा) (स्नावभ्यः) स्थूळ नाडीसाठी (स्वाहा) (स्नावभ्यः) सूक्ष्म शिरा व नाड्यांचे हदन होण्यासाठी (स्वाहा) (अस्थभ्यः) सूक्ष्म अस्थिरूप अवयव दहन होण्यासाठी (स्वाहा) आणि (अस्थभ्यः) कठोर वा मोठ्या हाडांचे दहन होण्यासाठी (स्वाहा) (मज्जभ्यः) अस्थींच्या मधील धातूंसाठी (स्वाहा) आणि (मज्जभ्यः) त्यांच्या आतील भाग दहन हाण्यासाठी (स्वाहा) (रेतसे) वीर्याचे दहन होण्यासाठी (स्वाहा) आणि (पायवे) गुदानाम अवयव दहन होण्याासठी (स्वाहा) या शब्दाचा प्रत्येकवेळी उच्चारण करावे ॥10॥
भावार्थ
भावार्थ - हे मनुष्यानो, जोपर्यंत रोमापासून वीर्यापर्यंत असे सर्व अवयव वा भागांचे पूर्ण दहन होऊन त्याचे भस्म होत नाही तोपर्यंत उपस्थित लोकांनी घृत व इंधन घालत रहावे. ॥10॥
इंग्लिश (3)
Meaning
To the hair Swaha ! To the nails Swaha ! Swaha for burning the external skin ! Swaha for burning the internal skin ! Swaha for burning the blood ! Swaha for burning the hearts blood ! Swaha for burning the fats ! Swaha for burning ail the wet parts of the body ! Swaha for burning the external fleshy parts ! Swaha for burning the internal fleshy parts ! Swaha for burning the gross sinews ! Swaha for burning the subtle sinews ! Swaha for burning the tough bones ! Swaha for burning the soft bones ! Swaha for burning the marrows ! Swaha for burning the internal part of the marrows ! Swaha for burning the semen ! Swaha for burning the anus !
Meaning
This oblation is for the hair in parts of the body, this is for the hair of the whole body. This is for the skin in parts, this for the whole. This is for blood in the parts, this for the whole. This is for the fat in the parts, this for the whole. This is for the flesh in parts, this for the whole. This is for the tendons, this for the nerves. This is for single bones, this for all. This is for the marrow in the parts, this is for the whole marrow in the body. This is for the semen. This is for the anus.
Translation
Dedication to hair (1) dedication to hair; (2) dedication to skin (3) dedication-to skin; (4) dedication to blood (5) dedication to blood; (6) dedication to fat; (7) dedication to fat. (8) Dedication to flesh; (9) dedication to flesh; (10) dedication to sinaews. (11) dedication to sinews; (12) dedication to bones; (13) dedication to bones; (14) dedication to marrow; (15) dedication to marrow; (16) dedication to semen (17) dedication to anus. (18)
Notes
In this and the following three formulas forty-two ob lations are to be offered. According to Dayananda, these obla tions are to be offered at the funeral pyre. Mahidhara suggests that these oblations are meant for expiation ( प्रायश्चित्ताहुति ) | Wording of these mantras makes them more suitable for Antyesti.
बंगाली (1)
विषय
মনুষ্যৈর্ভস্মান্তং শরীরং মন্ত্রৈর্দাহ্যমিত্যাহ ॥
মনুষ্যদিগকে ভস্ম হওয়া পর্য্যন্ত শরীরের মন্ত্র দ্বারা দাহ করা উচিত । এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- মনুষ্যদিগের উচিত যে, দাহকর্মে ঘৃতাদি দ্বারা (লোমভ্যঃ) ত্বকের উপর রোমের জন্য (স্বাহা) এই শব্দের (লোমভ্যঃ) নখাদির জন্য (স্বাহা) (ত্বচে) শরীরের ত্বক দাহ করিবার জন্য (স্বাহা)(ত্বচে) ভিতরের ত্বক্ জ্বালাইবার জন্য (স্বাহা) হৃদয়স্থ রুধির পিন্ড দাহ করিতে (স্বাহা) (মেদোভ্যঃ) মেদ দাহ করিতে (স্বাহা) (মেদোভ্যঃ) সকল শরীরের অবয়ব সকলকে আর্দ্রকারী ভাগকে দাহ করিতে (স্বাহা) (মাংসেভ্যঃ) বাহিরের মাংসদাহ করিতে (স্বাহা) (মাংসেভ্যঃ) ভিতরের মাংস দাহ করিবার জন্য (স্বাহা) (স্রাবভ্যঃ) স্থূল নাড়িসমূহ দাহ করিতে (স্বাহা) (স্নাবভ্যঃ) সূক্ষ্ম নাড়িসমূহ দাহ করিতে (স্বাহা অস্থভ্যঃ) শরীরস্থ কঠিন অবয়বসমূহকে দাহ করিবার জন্য (স্বাহা) (অস্থভ্যঃ) সূক্ষ্ম অস্থিরূপ অবয়ব সকলকে দাহ করিতে (স্বাহা) (মজ্জব্যঃ) অস্থির ভিতরের ধাতুর জন্য (স্বাহা) (মজ্জভ্যঃ) তাহার অন্তর্গত ভাগ দাহ করিতে (স্বাহা) (রেতসে) বীর্য্য দহন করিতে (স্বাহা) এবং (পায়বে) পায়ুরূপ অবয়বের দাহ করিবার জন্য (স্বাহা) এই শব্দের নিরন্তর প্রয়োগ করিবে ॥ ১০ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যতক্ষণ লোম হইতে লইয়া বীর্য্য পর্য্যন্ত সেই মৃত শরীরের ভস্ম না হয় ততক্ষণ ঘৃত ও ইন্ধন দিতে থাক ॥ ১০ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
লোম॑ভ্যঃ॒ স্বাহা॒ লোম॑ভ্যঃ॒ স্বাহা॑ ত্ব॒চে স্বাহা॑ ত্ব॒চে স্বাহা॒ লোহি॑তায়॒ স্বাহা॒ লোহি॑তায়॒ স্বাহা॒ মেদো॑ভ্যঃ॒ স্বাহা॒ মেদো॑ভ্যঃ॒ স্বাহা॑ । মা॒ᳬंসেভ্যঃ॒ স্বাহা॑ মা॒ᳬंসেভ্যঃ॒ স্বাহা॒ স্নাব॑ভ্যঃ॒ স্বাহা॒ স্নাব॑ভ্যঃ॒ স্বাহা॒ऽস্থভ্যঃ॒ স্বাহাऽ॒স্থভ্যঃ॒ স্বাহা॑ ম॒জ্জভ্যঃ॒ স্বাহা॑ ম॒জ্জভ্যঃ॒ স্বাহা॑ । রেত॑সে॒ স্বাহা॑ পা॒য়বে॒ স্বাহা॑ ॥ ১০ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
লোমভ্য ইত্যস্য দীর্ঘতমা ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । আকৃতিশ্ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal