यजुर्वेद - अध्याय 39/ मन्त्र 2
ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः
देवता - दिगादयो लिङ्गोक्ता देवताः
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
203
दि॒ग्भ्यः स्वाहा॑ च॒न्द्राय॒ स्वाहा॒ नक्ष॑त्रेभ्यः॒ स्वाहा॒ऽद्भ्यः स्वाहा॒ वरु॑णाय॒ स्वाहा॑। नाभ्यै॒ स्वाहा॑ पू॒ताय॒ स्वाहा॑॥२॥
स्वर सहित पद पाठदि॒ग्भ्य इति॑ दि॒क्ऽभ्यः। स्वाहा॑। च॒न्द्राय॑। स्वाहा॑। नक्ष॑त्रेभ्यः। स्वाहा॑। अ॒द्भ्य इत्य॒त्ऽभ्यः। स्वाहा॑। वरु॑णाय। स्वाहा॑ ॥ नाभ्यै॑। स्वाहा॑। पू॒ताय॑। स्वाहा॑ ॥२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
दिग्भ्यः स्वाहा चन्द्राय स्वाहा नक्षत्रेभ्यः स्वाहा अद्भ्यः स्वाहा वरुणाय स्वाहा । नाभ्यै स्वाहा पूताय स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
दिग्भ्य इति दिक्ऽभ्यः। स्वाहा। चन्द्राय। स्वाहा। नक्षत्रेभ्यः। स्वाहा। अद्भ्य इत्यत्ऽभ्यः। स्वाहा। वरुणाय। स्वाहा॥ नाभ्यै। स्वाहा। पूताय। स्वाहा॥२॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यूयं शरीरस्य दाहे दिग्भ्यः स्वाहा चन्द्राय स्वाहा नक्षत्रेभ्यः स्वाहाऽद्भ्यः स्वाहा वरुणाय स्वाहा नाभ्यै स्वाहा पूताय स्वाहा सत्यां क्रियां सम्प्रयुङ्ध्वम्॥२॥
पदार्थः
(दिग्भ्यः) दिक्षु हुतद्रव्यस्य गमनाय (स्वाहा) (चन्द्राय) चन्द्रलोकस्य प्राप्तये (स्वाहा) (नक्षत्रेभ्यः) नक्षत्रप्रकाशप्राप्तये (स्वाहा) (अद्भ्यः) अप्सु गमनाय (स्वाहा) (वरुणाय) समुद्रादिषु गमनाय (स्वाहा) (नाभ्यै) नाभेर्दहनाय (स्वाहा) (पूताय) पवित्रकरणाय (स्वाहा)॥२॥
भावार्थः
मनुष्याः पूर्वोक्तविधिना शरीरं दग्ध्वा सर्वासु दिक्षु शरीरावयवानग्निद्वारा गमयेयुः॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! तुम लोग शरीर के जलाने में (दिग्भ्यः) दिशाओं में हुतद्रव्य के पहुंचाने को (स्वाहा) सत्यक्रिया (चन्द्राय) चन्द्रलोक की प्राप्ति के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (नक्षत्रेभ्यः) नक्षत्रलोकों के प्रकाश की प्राप्ति के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (अद्भ्यः) जलों में चलाने के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (वरुणाय) समुद्रादि में जाने के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (नाभ्यै) नाभि के जलने के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया और (पूताय) पवित्र करने के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया को सम्यक् प्रयुक्त करो॥२॥
भावार्थ
मनुष्य लोग पूर्वोक्त विधि से शरीर जलाकर सब दिशाओं में शरीर के अवयवों को अग्निद्वारा पहुंचावें॥२॥
विषय
दिशा, चन्द्र आदि के समान व्यक्तियों काउत्तम आदर हो ।
भावार्थ
(दिग्भ्यः) दिशाओं और उनके वासी प्रजाओं को (चन्द्राय ) चन्द्र के समान आह्लादक राजा को (नक्षत्रेभ्यः स्वाहा ) नक्षत्रों के समान अपने स्थान से विचलित न होने वाले वीर पुरुषों को (भदुद्भ्यः) जलों के समान शीतल स्वभाव, मल, पाप के दूर करने वाले आप्त पुरुषों को अपने में (वरुणस्य) मेघ और समुद्र के समान सर्वश्रेष्ठ राजा को (नाभ्यै) सबको बांध लेने वाले, नाभि के समान केन्द्रस्थ पुरुष को ( पूताय) पवित्र करने वाले स्वयं पवित्र पुरुष को (स्वाहा ) मान, आदर, अन्न, यश प्राप्त हो । (२) अथवा - ( १ ) मन सहित समस्त प्राणों को बलवान् करने के लिये उत्तम साधन करो । पृथिवी, अग्नि, अन्तरिक्ष, वायु, आकाश और सूर्य इनको सुखकारी बनाने के लिये उत्तम साधन करो। (२) दिशाएं, चन्द्र, नक्षत्र, जल, समुद्र, नाभि और शरीर की पवित्रता के लिये भी उत्तम साधनों का प्रयोग करो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दिगादयः । भुरिग् अनुष्टुप् । गान्धारः ॥
विषय
देवताओं से विदाई
पदार्थ
१. (दिग्भ्यः स्वाहा) = इन दिशाओं के लिए मैं धन्यवाद करता हूँ। इस 'प्राची' ने मुझे [प्र+अञ्च] आगे बढ़ने का पाठ पढ़ाया था तो 'दक्षिण' ने दाक्षिण्य का उपदेश दिया, 'प्रतीची' ने प्रत्याहार का पाठ पढ़ाया और 'उदीची' से मैंने ऊपर उठना सीखा। इन सब दिशाओं का धन्यवाद करता हुआ आज मैं इनसे विदा लेता हूँ। २. (चन्द्राय स्वाहा) = चन्द्रमा के लिए भी धन्यवाद करता हूँ। इस चन्द्रमा ने तो मेरे जीवन को आह्लाद से ओत-प्रोत सा किया हुआ था। इस चन्द्रमा से भी आज मैं विदाई लेता हूँ। ३. (नक्षत्रेभ्यः स्वाहा) = चन्द्रमा की प्रजाभूत इन नक्षत्रों के लिए भी मैं धन्यवाद करता हूँ। चन्द्रमा 'नक्षत्रेश' हैं, अतः चन्द्र से विदा लेकर अब इन नक्षत्रों से भी विदा लेनी है। इनसे भी आज मैं विदा होता हूँ। [४] (अद्भ्यः स्वाहा) = जलों के लिए भी धन्यवाद है। ये जन्म से लेकर लय तक मेरे लिए महत्त्वपूर्ण बने रहे। 'आप' अर्थात् मेरे जीवन में सदा व्याप्त से रहे । 'वारि नामवाले होकर इन्होंने मेरे रोगों का निवारण किया। इनसे भी मैं विदा लेता हूँ। ५. वरुणाय स्वाहा-जलों के अधिष्ठातृदेव 'अप्पति' वरुण के लिए भी धन्यवाद करता हूँ। इसी वरुण के प्रशासन में विविध दिशाओं में नदियों का प्रवाह इस संसार में चलता था और मुझे जल की विविध रूपों में प्राप्ति होती थी। यह वरुण ही मुझे विविध कर्मों के बन्धन में बाँधता था। इससे भी आज मैं विदा चाहता हूँ। ६. (नाभ्यै स्वाहा) = इस शरीर की केन्द्रभूत नाभि के लिए भी धन्यवाद करता हूँ। 'नह् बन्धने' शरीर का सारा नाड़ी संस्थान इस नाभिरूप केन्द्र में ही बद्ध था, इस नाभि का भी मैं कृतज्ञ हूँ और इससे भी आज विदा चाहता हूँ। ७. पूताय स्वाहा - शरीर में शोधनकार्य में लगी हुई इन 'पायु व उपस्थ' इन्द्रियों के लिए, शरीर के अन्य रोमकूपों के लिए मैं धन्यवाद करता हूँ और इनसे विदाई लेता हूँ। बड़े-बड़े अफसरों से जहाँ विदाई ली जाती है वहाँ चपरासी से भी तो विदा लेनी चाहिए। इसी प्रकार मैं जहाँ चक्षु आदि से व पृथिवी आदि देवों से विदा लेता हूँ, उसी प्रकार इन मलशोधक इन्द्रियों से भी विदा लेता हूँ। इन्होंने शोधनकार्य को मेरे स्वास्थ्य के लिए कितनी सुन्दरता से निभाया !
भावार्थ
भावार्थ- आज जीवन के इस अन्तिम दिन मैं सब देवों से व शरीर की नाभि व शोधक अंगों से विदाई लेता हूँ।
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी पूर्वोक्त विधीनुसार दाहसंस्कार करून सर्व दिशांना अग्नीद्वारे शरीराचे अवयव (सूक्ष्मरूपाने) पोहोचवावे.
विषय
पुनश्च, त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, तुम्ही मृतदेहाचा दाहकर्म करताना (दिग्भ्यः) आहुत द्रव्य (तूप, सामग्री आदी) दिशांपर्यंत पोहचविण्यासाठी (स्वाहा) सत्य क्रिया (नक्षत्रेभ्यः) नक्षत्रलोकापासून प्रकाश प्रात्यर्थ (स्वाहा) सत्य क्रिया (अद्भ्य) जलामधे वावर प्रवास करण्यासाठी (स्वाहा) सत्य क्रिया (वरुणाय) समुद्र आदी स्थानात यात्रा करण्यासाठी (स्वाहा) सत्य क्रिया (नाभ्यै) मृताची नाभी दग्ध होण्यासाठी (स्वाहा) सत्य क्रिया आणि (पूताय) पवित्र करण्यासाठी (स्वाहा) सत्य क्रिया म्हणजे योग्य त्या दाहपद्धतीचा सम्यक उपयोग करा. (चितेत आहुत द्रव्य चंद्र, नक्षत्र समुद्र आदी स्थानापर्यंत जाऊन ते स्थान पवित्र करतात. प्रदूषण होत नाही) ॥2॥
भावार्थ
भावार्थ - मनुष्यानी मृताचा देह पूर्वोक्त विधीप्रमाणे जाळावा आणि त्याच्या अवयवांना सर्व दिशांपर्यंत पोहचवावे. ॥2॥
इंग्लिश (3)
Meaning
To the Quarters Swaha ! To the Moon Swaha ! To the Stars Swaha ! To the Waters Swaha ! To the Ocean Swaha ! To the Navel Swaha ! To the Purifying light Swaha !
Meaning
This oblation is for the quarters of space, this is for the moon, this is for the nakshatra stars, this is for the waters, this is for the seas, this is for the navel, thesis for purification through the fire.
Translation
Dedication to the quarters. (1) Dedication to the moon. (2) Dedication to the stars. (3) Dedication to the waters. (4) Dedication to the ocean. (5) Dedication to the navel. (6) Dedication to the purifier. (7)
Notes
Dik, the quarters, East, West, North and South. snows. Adbhyaḥ, to the waters of the rivers and of clouds and the Varuna, Ocean. In legend, Varuņa is the presiding deity of oceans, Nabhyai, to the navel; the central point. Pūtāya, शोधनाय, शोधकाय वा, for purification; or to the purifier.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! তোমরা শরীরকে পোড়াইতে (দিগ্ভ্যঃ) দিকসকলে হুতদ্রব্যর গমনকে (স্বাহা) সত্যক্রিয়া (চন্দ্রায়) চন্দ্রলোকের প্রাপ্তির জন্য (স্বাহা) সত্যক্রিয়া (অদ্ভ্যঃ) জলে চলিবার জন্য (স্বাহা) সত্যক্রিয়া (বরুণায়) সমুদ্রাদিতে যাইবার জন্য (স্বাহা) সত্যক্রিয়া (নাভ্যৈ) নাভির পুড়িবার জন্য (স্বাহা) সত্যক্রিয়া এবং (পুতায়) পবিত্র করিবার জন্য (স্বাহা) সত্যক্রিয়াকে সম্যক্ প্রযুক্ত কর ॥ ২ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- মনুষ্যগণ পূর্বোক্ত বিধিপূর্বক শরীর পোড়াইয়া সব দিকগুলিতে শরীরের অবয়বসমূহকে অগ্নি দ্বারা পৌঁছাইবে ॥ ২ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
দি॒গ্ভ্যঃ স্বাহা॑ চ॒ন্দ্রায়॒ স্বাহা॒ নক্ষ॑ত্রেভ্যঃ॒ স্বাহা॒ऽদ্ভ্যঃ স্বাহা॒ বর॑ুণায়॒ স্বাহা॑ । নাভ্যৈ॒ স্বাহা॑ পূ॒তায়॒ স্বাহা॑ ॥ ২ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
দিগ্ভ্য ইত্যস্য দীর্ঘতমা ঋষিঃ । দিগাদয়ো লিঙ্গোক্তা দেবতাঃ ।
ভুরিগনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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