यजुर्वेद - अध्याय 39/ मन्त्र 11
ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - स्वराड् जगती
स्वरः - निषादः
158
आ॒या॒साय॒ स्वाहा॑ प्राया॒साय॒ स्वाहा॑ संया॒साय॒ स्वाहा॑ विया॒साय॒ स्वाहो॑द्या॒साय॒ स्वाहा॑। शु॒चे स्वाहा॒ शोच॑ते॒ स्वाहा॑ शोच॑मानाय॒ स्वाहा॒ शोका॑य॒ स्वाहा॑॥११॥
स्वर सहित पद पाठआ॒या॒सायेत्या॑ऽया॒साय॑। स्वाहा॑। प्रा॒या॒साय॑। प्र॒या॒सायेति॑ प्रऽया॒साय॑। स्वाहा॑। सं॒या॒सायेति॑ सम्ऽया॒साय॑। स्वाहा॑। वि॒या॒सायेति॑ विऽया॒साय॑। स्वाहा॑। उद्या॒सायेत्यु॑त्ऽया॒साय॑। स्वाहा॑ ॥ शु॒चे। स्वाहा॑। शोच॑ते। स्वाहा॑। शोच॑मानाय। स्वाहा॑। शोका॑य। स्वाहा॑ ॥११ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आयासाय स्वाहा प्रायासाय स्वाहा सँयासाय स्वाहा वियासाय स्वाहोद्यासाय स्वाहा । शुचे स्वाहा शोचते स्वाहा शोचमानाय स्वाहा शोकाय स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
आयासायेत्याऽयासाय। स्वाहा। प्रायासाय। प्रयासायेति प्रऽयासाय। स्वाहा। संयासायेति सम्ऽयासाय। स्वाहा। वियासायेति विऽयासाय। स्वाहा। उद्यासायेत्युत्ऽयासाय। स्वाहा॥ शुचे। स्वाहा। शोचते। स्वाहा। शोचमानाय। स्वाहा। शोकाय। स्वाहा॥११॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैर्जन्मान्तरे सुखार्थं किं कर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यूयमायासाय स्वाहा प्रायासाय स्वाहा संयासाय स्वाहा वियासाय स्वाहोद्यासाय स्वाहा शुचे स्वाहा शोचते स्वाहा शोचमानाय स्वाहा शोकाय स्वाहा प्रयुङ्ग्ध्वम्॥११॥
पदार्थः
(आयासाय) समन्तात् प्रापणाय (स्वाहा) (प्रायासाय) प्रयाणाय (स्वाहा) (संयासाय) सम्यग्गमनाय (स्वाहा) (वियासाय) विविधप्राप्तये (स्वाहा) (उद्यासाय) ऊर्ध्वं गमनाय (स्वाहा) (शुचे) पवित्राय (स्वाहा) (शोचते) शुद्धिकर्त्रे (स्वाहा) (शोचमानाय) विचारप्रकाशाय (स्वाहा) (शोकाय) शोचन्ति यस्मिँस्तस्मै (स्वाहा)॥११॥
भावार्थः
मनुष्यैः पुरुषार्थादिसिद्धये सत्या वाग् मतिः क्रिया चानुष्ठेया, येन देहान्तरे जन्मान्तरे च मङ्गलं स्यात्॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को जन्मान्तर में सुख के लिये क्या कर्त्तव्य है, उस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! तुम लोग (आयासाय) अच्छे प्रकार प्राप्त होने को (स्वाहा) इस शब्द का (प्रायासाय) जाने के लिये (स्वाहा) (संयासाय) सम्यक् चलने के लिये (स्वाहा) (वियासाय) विविध प्रकार वस्तुओं की प्राप्ति को (स्वाहा) (उद्यासाय) ऊपर को जाने के लिये (स्वाहा) (शुचे) पवित्र के लिये (स्वाहा) (शोचते) शुद्धि करनेवाले के लिये (स्वाहा) (शोचमानाय) विचार के प्रकाश के लिये (स्वाहा) और (शोकाय) जिस में शोक करते हैं, उसके लिये (स्वाहा) इस शब्द का प्रयोग करो॥११॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि पुरुषार्थ-सिद्धि के लिये सत्य वाणी, बुद्धि और क्रिया का अनुष्ठान करें, जिससे देहान्तर और जन्मान्तर में मङ्गल हो॥११॥
विषय
आयास आदि देह और आत्मा के धर्मों के लिये उत्तम आहार व्यवहार ।
भावार्थ
( आयासाय स्वाहा ) अंगों के व्यापक श्रम के लिये (स्वाहा ) उत्तम अन्न खाओ | (प्रायासाय स्वाहा ) तत्तम कोटि के परिश्रम के लिये भी उत्तम अन्न खाओ । इसी प्रकार (संयासाय) मिलकर अंगों के एकत्र यत्र करने के लिये, (वियासाय) विविध अंगों के श्रम के लिये, (उद्यासाय) उठाने के परिश्रम के लिये भी । (शुचे) स्वच्छ रहने और शरीर की कान्ति के लिये । (शोचते) शुद्ध विचार करने वाले आत्मा के लिये । ( शोचमानाय स्वाहा ) उत्तम तेजस्वी विचार प्रकाशित करने के लिये और (शोकाय) तेज के प्राप्त करने के लिये (स्वाहा ) उत्तम आहार करो। (२) राष्ट्र में भी आयास, वियास आदि नाना यक्ष और बलसाध्य कार्यों के लिये तेज, बल के बढ़ाने के लिये और तेज, बल बढ़ाने वाले विद्वान् जनों का उत्तम मान, आदर किया जाय ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्निः । स्वराड जगती । निषादः ॥
विषय
प्रयत्न व पवित्रता
पदार्थ
जहाँ भोजन स्वास्थ्य के लिए हितकर हो वहाँ भोजन ऐसा होना चाहिए जो मनुष्य को आलस्यशून्य व पवित्र इच्छाओंवाला बनाने में सहायक हो। ऐसा ही भोजन सात्त्विक भोजन कहलाता है। १. आयासाय = सब आवश्यक कार्यों में श्रम [All round excertion] के लिए मैं उत्तम अदनीय अन्न खाता हूँ। २. प्रायासाय स्वाहा - प्रकृष्ट उद्योग के लिए मैं अदनीय अन्न का सेवन करता हूँ। मुझमें क्रियाशीलता हो, वह क्रियाशीलता उत्तम कार्यों में टपके। ३. संयासाय स्वाहा = मिलकर किये जानेवाले उद्योगों के लिए मैं अदनीय अन्नों का सेवन करता हूँ। मैं ऐसा अन्न खाऊँ जिससे मैं औरों के साथ मिलकर उद्योग कर सकूँ। ४. वियासाय स्वाहा - विविध प्रयत्नों या वैयक्तिक प्रयत्नों के लिए मैं हितकर भोजन करनेवाला बनूँ। ५. उद्यासाय स्वाहा- मैं उत्कृष्ट उद्योगों के लिए हितकर भोजन करूँ। मेरा भोजन ऐसा हो जो निरन्तर मुझे ऐसे उद्योगों में लगाये जो मुझे ऊँचा ले-जानेवाले हों। ६. वैशेषिकदर्शन में भी कर्म पाँच भागों में विभक्त हुआ है। यहाँ भी पाँच भाग हैं। नामों व स्वरूप में कुछ अन्तर हो गया है। इस विचार को चार भागों में बाँटते हैं- [क] पवित्रता की इच्छा [ख] पवित्रता के प्रयत्न में लगना [ग] पवित्रता को स्वभाव बना लेना [घ] और अन्त में पवित्र हो जाना। इसको क्रमश: कहते हैं-शुचे स्वाहा- मैं पवित्रता के लिए भोजन करता हूँ। भोजन ऐसा हो जो मुझमें पवित्रता की भावना जगाए। शोचते स्वाहा- अपने को पवित्र बनाने के लिए मैं भोजन करूँ। भोजन ऐसा हो जो मुझे पवित्रता - सम्पादन की क्रिया में लगाये। शोचमानाय पवित्रता जिसका स्वभाव बन गया है, ऐसा बनने के लिए मैं सात्त्विक भोजन का सेवन करता हूँ। अन्न ऐसा हो जो मेरे स्वभाव में पवित्रता लाये। मेरे लिए पवित्रता स्वाभाविक बन जाए और अन्त में शोकाय स्वाहा- मैं पवित्रता के लिए अन्न खाऊँ। अन्न ऐसा हो कि मैं शरीरबद्ध पवित्रता ही हो जाऊँ।
भावार्थ
भावार्थ- सात्त्विक अन्न का सेवन हमारे जीवन में प्रयत्नशीलता व पवित्रता का संचार करनेवाला हो।
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी पुरुषार्थाच्या सिद्धीसाठी सत्यवाणी, बुद्धी व कार्य (क्रिया) यांचे अनुष्ठान करावे ज्यामुळे देहांतरी व जन्मजन्मांतरी कल्याण व्हावे.
विषय
missing
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, तुम्ही (मृतदेह चितेत भस्म होत असताना ‘स्वाहा’ म्हणा) (आयासाय) उत्तम प्रकारे सर्व पदार्थ प्राप्त होण्यासाठी (स्वाहा) (प्रायासाय) प्रयाण करण्यासाठी (स्वाहा) हा शब्द म्हणा (संयासाय) सम्यक गमनासाठी (स्वाहा) (नियासाय) विविध वस्तूप्राप्तीसाठी (स्वाहा) (उद्यासाय) ऊर्ध्व म्हणजे उन्नती-उत्कर्षासाठी (स्वाहा) (शूचे) पवित्रासाठी (स्वाहा) (शोचते) शुद्धी करण्यासाठी (स्वाहा) आणि (शोकाय) शोकासाठी (शोक नष्ट होण्यासाठी) (स्वाहा) या शब्दाचे उच्चारण करा. ॥11॥
भावार्थ
भावार्थ - मनुष्यांनी पुरुषार्थाचे फळ प्राप्त करावयाचे असल्यास सत्यवाणी, सत्य विचार आणि सत्य-आचार यांचा अवलंब करावा, म्हणजे देहान्तरी व जन्मान्तरी त्यांचे कल्याण होईल. ॥1॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Take nourishing diet for physical exertion, for lofty adventure, for concerted effort, for endeavour by different organs, for enterprise, for physical and mental purity, for contemplative soul, for expounding nice ideas, and for spiritual power.
Meaning
In all truth of word and deed and in all commitment to faith: homage to the spirit of new attainment, to effort for the new attainment, to balance and peace in the effort and attainment, to success in various new attainments, to effort for rising higher and higher, to purify and purification of the body, mind and soul. Homage to the purifier, to the light of purification, and all hail to the body, mind and soul for the intake of purity from the process of purification.
Translation
Dedication to exertion; (1) dedication to efforts; (2) dedication to all-round endeavours; (3) dedication to special effort; (4) dedication to attempt to improve. (5) dedication to grief; (6) dedication to the grieving. (7) dedication to the grieved; (8) dedication to sorrow. (9)
Notes
According to Mahidhara, Ayāsa etc. are certain dei ties (देवविशेषा:); to us these appear to be qualities and circum stances, with which a man lives.
बंगाली (1)
विषय
পুনর্মনুষ্যৈর্জন্মান্তরে সুখার্থং কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
পুনঃ মনুষ্যদিগকে জন্মান্তরে সুখের জন্য কী কর্ত্তব্য এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! তোমরা (আয়াসায়) উত্তম প্রকার প্রাপ্ত হইতে (স্বাহা) এই শব্দের (প্রায়াসায়) প্রয়াণ জন্য (স্বাহা) (সংয়াসায়) সম্যক্ গমন করিবার জন্য (স্বাহা) (বিয়াসায়) বিবিধ প্রকার বস্তুগুলির প্রাপ্তিকে (স্বাহা) (উদ্যাসায়) উপরে যাইবার জন্য (স্বাহা) (শুচে) পবিত্র হেতু (স্বাহা) (শোচতে) শুদ্ধিকারীদের জন্য (স্বাহা) (শোচমানায়) বিচার প্রকাশ হেতু (স্বাহা) এবং (শোকায়) যাহাতে শোক করে তাহার জন্য (স্বাহা) এই শব্দের প্রয়োগ কর ॥ ১১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- মনুষ্যদিগের উচিত যে, পুরুষকারের সিদ্ধি হেতু সত্য বাণী, বুদ্ধি ও ক্রিয়ার অনুষ্ঠান করিবে যাহাতে দেহান্তর ও জন্মান্তরে মঙ্গল হয় ॥ ১১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
আ॒য়া॒সায়॒ স্বাহা॑ প্রায়া॒সায়॒ স্বাহা॑ সংয়া॒সায়॒ স্বাহা॑ বিয়া॒সায়॒ স্বাহো॑দ্যা॒সায়॒ স্বাহা॑ । শু॒চে স্বাহা॒ শোচ॑তে॒ স্বাহা॑ শোচ॑মানায়॒ স্বাহা॒ শোকা॑য়॒ স্বাহা॑ ॥ ১১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
আয়াসাত্যেত্যস্য দীর্ঘতমা ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । স্বরাড্ জগতী ছন্দঃ ।
নিষাদঃ স্বরঃ ॥
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