यजुर्वेद - अध्याय 39/ मन्त्र 4
ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः
देवता - श्रीर्देवता
छन्दः - निचृद्बृहती
स्वरः - मध्यमः
174
मन॑सः॒ काम॒माकू॑तिं वा॒चः स॒त्यम॑शीय।प॒शू॒ना रू॒पमन्न॑स्य॒ रसो॒ यशः॒ श्रीः श्र॑यतां॒ मयि॒ स्वाहा॑॥४॥
स्वर सहित पद पाठमन॑सः। काम॑म्। आकू॑ति॒मित्याऽकू॑तिम्। वाचः। स॒त्यम्। अ॒शी॒य॒ ॥ प॒शू॒नाम्। रू॒पम्। अन्न॑स्य। रसः॑। यशः॑। श्रीः। श्र॒य॒ता॒म्। मयि॑। स्वाहा॑ ॥४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मनसः काममाकूतिञ्वाचः सत्यमशीय । पशूनाँ रूपमन्नस्य रसो यशः श्रीः श्रयताम्मयि स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
मनसः। कामम्। आकूतिमित्याऽकूतिम्। वाचः। सत्यम्। अशीय॥ पशूनाम्। रूपम्। अन्नस्य। रसः। यशः। श्रीः। श्रयताम्। मयि। स्वाहा॥४॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यथाहं स्वाहैवं पूर्वपरोक्तप्रकारेण मृतानि शरीराणि दग्ध्वा मनसो वाचश्च सत्यं काममाकूतिं पशूनां रूपमशीय। यथा मय्यन्नस्य रसो यशः श्रीः श्रयतां तथैवं कृत्वा यूयमेनं प्राप्नुत, एता युष्मासु श्रयन्ताम्॥४॥
पदार्थः
(मनसः) अन्तःकरणस्य (कामम्) इच्छापूर्तिम् (आकूतिम्) उत्साहम् (वाचः) वाण्याः (सत्यम्) सत्सु साधु वचः (अशीय) प्राप्नुयाम् (पशूनाम्) गवादीनाम् (रूपम्) सुन्दरं स्वरूपम् (अन्नस्य) अत्तुमर्हस्यौदनादेः (रसः) मधुरादिः (यशः) कीर्तिः (श्रीः) शोभनैश्वर्यं च (श्रयताम्) सेवताम् (मयि) जीवात्मनि (स्वाहा) सत्यया क्रियया॥४॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः सुविज्ञानोत्साहसत्यवचनैर्मृतानि शरीराणि विधिना दाहयन्ति, ते पशून् प्रजाधनधान्यादीनि पुरुषार्थेन लभन्ते॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! जैसे मैं (स्वाहा) सत्यक्रिया से ऐसे आगे-पीछे कहे प्रकार से मरे हुए शरीरों को जला के (मनसः) अन्तःकरण और (वाचः) वाणी के (सत्यम्) विद्यमानों में उत्तम (कामम्) इच्छापूर्त्ति (आकूतिम्) उत्साह (पशूनाम्) गौ आदि के (रूपम्) सुन्दर स्वरूप को (अशीय) प्राप्त होऊं, जैसे (मयि) मुझ जीवात्मा में (अन्नस्य) खाने योग्य अन्नादि के (रसः) मधुरादि रस (यशः) कीर्ति (श्रीः) शोभा वा ऐश्वर्य्य (श्रयताम्) आश्रय करें, वैसे ही तुम इसको प्राप्त होओ और ये तुम में आश्रय करें॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य सुन्दर विज्ञान, उत्साह और सत्यवचनों से मरे शरीरों को विधिपूर्वक जलाते हैं, वे पशु, प्रजा, धनधान्य आदि को पुरुषार्थ से पाते हैं॥४॥
विषय
मन वाणी की शक्ति का उपयोग करने और समृद्धि की प्रार्थना ।
भावार्थ
( मनसः) मन, मननशील अन्तःकरण की (कामम् ) इच्छा और ( आकृतीम् ) अभिप्राय जतलाने की शक्ति और (वाचः) वाणी के (सत्य) यथार्थ, सत्य भाषण को मैं (अशीय) प्राप्त करूं अर्थात् मन से दृढ़ इच्छा और प्रबल अभिप्राय ज्ञापन का अभ्यास करूं और वाणी से सत्य बोलूं । ( पशूनाम् ) पशुओं के ( रूपम् ) नाना प्रकार के (अन्नस्य) अन्न के (रसः) नाना सार रूप रस और (यशः श्रीः) यश और ऐश्वर्य ये सब ( मयि ) मुझ पुरुष में (स्वाहा) उत्तम कर्म और वाणी से ( श्रयताम् ) भावें और स्थिर हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्रीः । निचृद् बृहती । मध्यमः ॥
विषय
यश और श्री
पदार्थ
जाती हुई आत्मा यह चाहती है कि वह मुक्त हो जाए, अतिदीर्घ काल तक अगला जन्म न लेना पड़े, वह परमेश्वर के साथ विचरनेवाली बने, परन्तु यदि जन्म लेना ही पड़े तो इसकी प्रार्थना निम्न शब्दों में होती है- १. मैं (मनसा) = मन से (कामम्) = पर्याप्त (आकूतिम्) = सङ्कल्प को अशीय प्राप्त करूँ। मेरा मन उत्तमोत्तम कार्यों के सङ्कल्पवाला हो। यह तो ठीक है कि मैं काममय न हो जाऊँ, परन्तु जड़ वस्तुओं की भाँति अकाम भी न हो जाऊँ । मेरा मन सदा शुभ सङ्कल्पों से भरा रहे। २. मैं (वाचः) = वाणी की (सत्यम्) = यथार्थता को (अशीय) = प्राप्त करूँ। मेरी वाणी यथार्थ हो। इतना ही नहीं कि मैं अर्थ के अनुसार बोलनेवाला होऊँ, अपितु मेरी वाणी के अनुसार अर्थ हो जाए ३. (पशूनाम् रूपम्) = मैं पशुओं के रूप को प्राप्त करूँ। आचार्य एक जगह 'रूप' शब्द पर लिखते हैं कि 'विषयासक्ति, कुपथ्य और अधर्माचरण को छोड़कर अपने स्वरूप को अच्छा रखना। पशुओं का जीवन सादा है। उनके खानपान में जटिलता नहीं । परिणामतः उनका जीवन स्वस्थ बना रहता है। हम भी उनकी भाँति विषयासक्ति आदि से बचकर स्वस्थ बनने का प्रयत्न करें। 'रूपम् रोचते:' निरुक्त [२.३] के इन शब्दों के अनुसार मैं स्वास्थ्य की दीप्तिवाला बनूँ। 'सादा जीवन' यह मेरा उद्देश्य - वाक्य बने और मैं स्वास्थ्य व दीर्घ जीवन का लाभ करूँ। " के ५. (अन्नस्य रसः) = इस स्वास्थ्य के लिए ही मैं अन्न के रस का सेवन करूँ। व्यर्थ अभक्ष्य मांस आदि के झगड़े में न पड़ जाऊँ। साथ ही अन्न को खूब चबाकर खाऊँ। उसको रसरूप में अन्दर ले जाऊँ। इस सात्त्विक भोजन के परिणामस्वरूप मेरी वृत्ति भी सात्त्विक बनी रहे । ६. (मयि) = मुझमें (यशः) = यश और (श्री:) = शोभा (श्रयताम्) = आश्रय करें। मेरा प्रत्येक कार्य यशस्वी और श्रीसम्पन्न हो। मैं किसी भी कार्य को अनाड़ीपन से न करूँ।
भावार्थ
भावार्थ- मेरा जीवन उत्तम संकल्पोंवाला, सत्यमय, स्वस्थ, सात्त्विक अन्न का सेवन करनेवाला तथा यश और श्री से युक्त हो ।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे विज्ञानयुक्त व उत्साहपूर्वक आणि सत्य वचनांनी मृत शरीरांना विधी पूर्वक जाळतात ती पुरुषार्थ करून पशू, संतान, धन धान्य इत्यादी प्राप्त करतात.
विषय
पुन्हा, त्याच विषयी.
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (देह सोडून गेलेला जीवात्मा आपले मनोगत वा कामना व्यक्त करीत आहे, या मंत्राचा मतितार्थ समजण्यासाठी अशी कवि-कल्पना करणे आवश्यक आहे.) (जीवात्मा म्हणतो) हे मनुष्यानो, ज्याप्रमाणे मी (जीवात्मा) (स्वाहा) सत्य विधीद्वारे पूर्वी सांगितलेल्या रीतीने दाहकर्म झाल्यानंतर (पुढील जन्मी) (मनसः) अंतःकरण आणि (वाचः) उत्तम वाणी (प्राप्त करावी) तसेच (सत्यम्) (कामम्) सत्य आणि उत्तमकामनांची पुर्ती इच्छितो आणि (आकूतिम्) मला (पुढीलजन्मी) उत्साह, (पशूनाम्) गौआदी पशूं (रूपमा्) सुंदर रूप (अशीय) मिळावे (अशी कामना करीत आहे) (मयि) माझ्यात म्हणजे जीवात्म्यात (अन्नस्य) (रसः) अन्न आदीचे मधुर स्वादिष्ट रस तसेच (यशः) कीर्ती (श्रीः) शोभा व ऐश्वर्य (श्रयताम्) आदीनी आश्रय घ्यावा. ज्याप्रमाणे माझी कामना की मला हे सर्व मिळावे, तद्वत हे मनुष्यहो, तुम्हासही हे सर्व मिळो वा हे सर्व तुमच्या आश्रयाखाली असावेत. ॥4॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जे लोक शुभ विज्ञान, उत्साह आणि सत्य वचनाद्वारे मृतदेहाचा दाहकर्म विधिपूर्वक करतात, ते पशू, प्रजा, धनधान्य आदी पदार्थ पुरुषार्थाद्वारे अवश्य प्राप्त करतात. ॥4॥
इंग्लिश (3)
Meaning
The wish and purpose of the mind and truth of speech may I obtain. Bestowed on me be cattles beauty, sweet taste of food, fame and grace, through truthful speech and virtuous conduct.
Meaning
May I get the sanctified will and resolution of the mind. May I get the divine truth of speech. May I beget the beautiful forms of living beings. May I get the sweet vitality and taste of food. May all these and honour, beauty and grace be vested in me in life again and again. This is the voice of the soul in truth of word and deed.
Translation
May I obtain my heart's desire, mental effort, and truthfulness of speech. May the beauty of the animals, deliciousness of food, fame and splendour be granted to me. Svaha. (1)
Notes
Manasaḥ kamam, desire of my heart. Vācaḥ satyam, truthfulness of speech. Rūpam, beauty; form. Annasya rasaḥ, taste or delicious ness of food. Śrīḥ, splendour.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন আমি (স্বাহা) সত্যক্রিয়া দ্বারা এইরকম আগে পিছনে কথিত প্রকারে মৃত শরীরকে পোড়াইয়া (মনসঃ) অন্তঃকরণ ও (বাচঃ) বাণীর (সত্যম্) বিদ্যমানদের মধ্যে উত্তম (কামম্) ইচ্ছাপূর্ত্তি (আকূতিম্) উৎসাহ (পশূনাম্) গাভি আদির (রূপম্) সুন্দর স্বরূপকে (অশীয়) প্রাপ্ত হই যেমন (ময়ি) আমাতে, জীবাত্মায় (অন্নস্য) খাওয়ার যোগ্য অন্নাদির (রসঃ) মধুরাদি রস (য়শঃ) কীর্ত্তি (শ্রীঃ) শোভা বা ঐশ্বর্য্য (শ্রয়তাম্) আশ্রয় করি সেইরূপ তুমি ইহাকে প্রাপ্ত হও এবং ইহারা তোমাকে আশ্রয় করুক ॥ ৪ ।
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে সব মনুষ্য সুন্দর বিজ্ঞান, উৎসাহ ও সত্যবচনের দ্বারা, মৃত শরীরকে বিধিপূর্বক দাহ করে তাহারা পশু, প্রজা ধনধান্যাদিকে পুরুষকারের মাধ্যমে লাভ করে ॥ ৪ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
মন॑সঃ॒ কাম॒মাকূ॑তিং বা॒চঃ স॒ত্যম॑শীয় ।
প॒শূ॒নাᳬं রূ॒পমন্ন॑স্য॒ রসো॒ য়শঃ॒ শ্রীঃ শ্র॑য়তাং॒ ময়ি॒ স্বাহা॑ ॥ ৪ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
মনস ইত্যস্য দীর্ঘতমা ঋষিঃ । শ্রীর্দেবতা । নিচৃদ্বৃহতী ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
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