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यजुर्वेद अध्याय - 39
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  • यजुर्वेद - अध्याय 39/ मन्त्र 7
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - मरुतो देवताः छन्दः - भुरिग्गायत्री स्वरः - षड्जः
    175

    उ॒ग्रश्च॑ भी॒मश्च॒ ध्वान्तश्च॒ धुनि॑श्च।सा॒स॒ह्वाँश्चा॑भियु॒ग्वा च॑ वि॒क्षिपः॒ स्वाहा॑॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒ग्रः। च॒। भी॒मः। च॒। ध्वा᳖न्त॒ इति॒ धुऽआ॑न्तः। च॒। धुनिः॑। च॒ ॥ सा॒स॒ह्वान्। स॒स॒ह्वानिति॑ सस॒ह्वान्। च॒। अ॒भि॒यु॒ग्वेत्य॑भिऽयु॒ग्वा। च॒। वि॒क्षिप॒ इति॑ वि॒क्षिपः॑। स्वाहा॑ ॥७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उग्रश्च भीमश्च ध्वान्तश्च धुनिश्च । सासह्वाँश्चाभियुग्वा च विक्षिपः स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उग्रः। च। भीमः। च। ध्वान्त इति धुऽआन्तः। च। धुनिः। च॥ सासह्वान्। ससह्वानिति ससह्वान्। च। अभियुग्वेत्यभिऽयुग्वा। च। विक्षिप इति विक्षिपः। स्वाहा॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 39; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः के जीवाः किं गुणाः सन्तीत्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! मरणं प्राप्तो जीवः स्वाहोग्रश्च ध्वान्तश्चधुनिश्च सासह्वांश्चाभियुग्वा च विक्षिपो जायते॥७॥

    पदार्थः

    (उग्रः) तीव्रस्वभावः (च) शान्तः (भीमः) बिभेति यस्मात् स भयंकरः (च) निर्भयः (ध्वान्तः) ध्वान्तमन्धकारं प्राप्तः (च) प्रकाशं गतः (धुनिः) कम्पमानः (च) निष्कम्पः (सासह्वान्) भृशं सहमानः (च) असहमानो वा (अभियुग्वा) योऽभितो युङ्क्ते सः (च) वियुक्त (विक्षिपः) यो विक्षिपति विक्षेपं प्राप्नोति सः (स्वाहा) स्वकीयया क्रियया॥७॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः! ये जीवाः पापाचरणास्त उग्रा, ये धर्माचरणास्ते शान्ता, ये भयप्रदास्ते भीमा, ये भयं प्राप्तास्ते भीता, येऽजितेन्द्रियास्ते चञ्चला, ये जितेन्द्रियास्तेऽचञ्चलाः स्वस्वकर्मफलानि सहमानाः संयुक्ता विक्षेपं प्राप्ताः सन्तोऽत्र जगति नित्यं भ्रमन्तीति विजानीत॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर कौन जीव किस गुण वाले हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! मरण को प्राप्त हुआ जीव (स्वाहा) अपने कर्म से (उग्रः) तीव्र स्वभाववाला (च) शान्त (भीमः) भयकारी (च) निर्भय (ध्वान्तः) अन्धकार को प्राप्त (च) प्रकाश को प्राप्त (धुनिः) कांपता (च) निष्कम्प (सासह्वान्) शीघ्र सहनशील (च) न सहनेवाला (अभियुग्वा) सब ओर से नियमधारी (च) सबसे अलग और (विक्षिपः) विक्षेप को प्राप्त होता है॥७॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो! जो जीव पापाचरणी हैं वे कठोर, जो धर्मात्मा हैं वे शान्त, जो भय देनेवाले वे भीम शब्द वाच्य, जो भय को प्राप्त हैं वे भीत शब्द वाच्य, जो अभय देनेवाले हैं वे निर्भय, जो अविद्यायुक्त हैं वे अन्धकार से झंपे, जो विद्वान् योगी हैं वे प्रकाशयुक्त, जो जितेन्द्रिय नहीं हैं वे चञ्चल, जो जितेन्द्रिय हैं वे चञ्चलतारहित अपने-अपने कर्मफलों को सहते-भोगते संयुक्त विक्षेप को प्राप्त हुए इस जगत् में नित्य भ्रमण करते हैं, ऐसा जानो॥७॥

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    विषय

    प्रजापति प्रभु और परमेश्वर के नाना गुण कर्म स्वभावानुसार नाना नाम ।

    भावार्थ

    वह राजा (उग्रः च) भयंकर और सदा वायु के समान प्रचण्ड वेग से शत्रु पर आक्रमण करने से 'उग्र' है । (भीमः च) उनको भयप्रद होने से 'भीम' है । (ध्वान्तः च) अन्धकार के समान मूढ़ कर देने वाला होने से 'ध्वान्त' है । (धुनिः च) कंपा देने वाला होने से 'धुनि' है । (सासद्दान् च) बराबर पराजित करने में समर्थ होने से 'सासह्नान् ' है । ( अभियुग्वा ) उन पर आक्रमण करने से 'अभियुग्वा' है और उनको तितर बितर कर देने से 'विक्षिप' है । (स्वाहा) वह अपने ही उत्तम कर्मों के कारण उन नामों से मान पाने योग्य है । ( २ ) जीवपक्ष में- जीव, तीव्र स्वभाव, भयंकर तामस, कम्पमान, सहनशील, आसक्त विक्षिप्त और [चकारसे] शान्त, निर्भय, प्रकाशमान, स्थिर, असहनशील, विक्षिप्त आदि अपने कर्मफलों से हो जाता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मरुतः । भुरिंग गायत्रा । षड्जः ॥

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    विषय

    'आसुरी संपद्' वाला जन्म

    पदार्थ

    दैवी सम्पत्तिवालों का जन्म गतमन्त्र का विषय था। जो उस दैवी सम्पत्ति को प्राप्त नहीं कर पाये और उसके स्थान में आसुरी संपत्ति को लेकर जिनका जन्म होता है वे १. (उग्रः च) = बड़े उग्र स्वभाववाले होते हैं। ये निर्दयी व कठोर होते हैं। बड़े क्रोधी स्वभाव के होते है । २. (भीम: च) = समाज के लिए ये बड़े भय का कारण होते हैं। इनकी दुर्जनता सज्जनों के निवास को भयपूर्ण बना देती है। इनके कारण सज्जनों के लिए प्रतिक्षण संकट की आशंका बनी रहती है। ३. (ध्वान्तः च) = इनका जीवन अन्धकारमय होता है। अथवा 'ध्वन शब्दे' ये सदा शोर-शराबा मचाये रखते हैं। ये पति-पत्नी भी सदा लड़ाई-झगड़े का जीवन बिताते हैं lead a cat and dog life. ४. (धुनिः च) = ये औरों को अपनी दुष्टता से कम्पित करनेवाले होते हैं। ५. (सासह्वाँन् च) = ये निरन्तर औरों का पराभव करनेवाले-औरों को कुचलनेवाले होते हैं । घात - पात में प्रवृत्त रहते हैं । ६. (अभियुग्वा च) = ये अपने दायें-बायें सभी ओर आक्रमण करनेवाले चारों ओर आतंक फैलानेवाले होते हैं। ७. (विक्षिप:) = [वि- क्षिप] ये विक्षिप्त-सी मनोवृत्तिवाले होते हैं। इनमें केन्द्रित बुद्धि का प्रश्न ही नहीं होता। सैकड़ों आशाजालों से बद्ध ये पुरुष होते हैं। 'यह मिल गया और यह मिल जाएगा' इसी प्रकार ये विक्षिप्त वृत्तिवाले बने रहते हैं। अन्ततः ये आधे पागल से हो जाते हैं। (स्वाहा) = यह यथार्थ वर्णन है।

    भावार्थ

    भावार्थ- आसुरी सम्पत्तिवाले 'उग्रस्वभाव के, लोक-भयंकर, अज्ञानी, औरों को कम्पित करनेवाले, दूसरों को कुचलनेवाले, उनपर आक्रमण करनेवाले व विक्षिप्त से' होते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जे जीव पापाचरणी असतात ते उग्र व कठोर असतात व जे धर्मात्मा असतात ते शांत असतात. काही भयभीत करणारे तर काही निर्भय असतात. काही अविद्यायुक्त अंधःकारात असतात तर काही योगी व विद्वान वगैरे ज्ञान प्रकाशात असतात. जितेंद्रिय नसलेले चंचल व जितेंद्रिय असलेले चंचलतारहित असतात. याप्रमाणे आपापल्या कर्मफलांना भोगत, सहन करत अस्थिरपणे (इकडे-तिकडे भटकत) या जगात जीव भ्रमण करत असतात हे जाणा.

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    विषय

    कोणते जीवात्मा कोणत्या गुणांचे असतात, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, मृत्यूनंतर जीवात्मा (स्वाहा) आपापल्या कर्माप्रमाणे (वेगवेगळ्या स्वभावाचा असतो) पैकी कोणी (उग्रः) उग्र स्वभावाचा (च) तर कोणी शान्त असतो. कोणी (भीमः) भयदायक (च) कोणी निर्भय असतो. कोणी (ध्वान्तः) अंधकारमय (च) तर कोणी प्रकाशमय असतो. कोणी (धुनिः) कम्पमान (च) तर कोणी निष्कम्प असतो. कोणी (सासह्वान्) सहनशील (च) तर कोणी असहिष्णु असतो. कोणी (अभियुग्वा) सर्वदा नियमाप्रमाणे वागणारा (च) तर कोणी सर्वाहून वेगळा असतो तर कोणी कोणी (विक्षिपः) विक्षेपवान (विशिष्टपणे आचरण करणारा) असतो ॥7॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे मनुष्यांनो, जे जीव पापाचारी असतात ते कठोर स्वभावाचे तर धर्मात्मा जीव शांत स्वभावाचे असतात, जे भीती घालणारे असतात ते भीम तर जे स्वतः भयग्रस्त आहेत, ते भीतात्मा असतात. जे अभय देणारे असतात ते निर्भय तर जे अविद्यावान असतात, ते अंधकारात चाचपडणारे असतात, पण जे विद्यावान योगी असतात, ते प्रकाशवान असतात. जे जीवात्मा जितेंद्रिय नसतात, ते चंचल स्वभावाचे, तर ते चंचल नसतात, ते स्थिर व शांत आपापल्या कर्मांची फळें सहन करत-भोगत विशिष्ट स्वभाव प्राप्त करून या जगात नित्य भ्रमण करतात, असे तुम्ही स्पष्टपणे जाणून घ्या. ॥7॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    The soul after death, according to its actions becomes fierce and calm ; terrible and fearless ; ignorant and enlightened ; trembling and steadfast ; forbearing and unforbearing ; passionate and ascetic ; and a prey to bewilderment.

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    Meaning

    According to its nature and action, the soul after death is violent or peaceful, fearful or fearless, dark or bright, roaring or quiet, patient or impatient, cooperative or non-cooperative, disruptive or concentrative, (and is reborn in an appropriate form).

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    Translation

    Fierce, (1) Terrible, (2) Roarer (3) Shaker. (4) Humbler, (5) Assailant, (6) And Scatterer Svaha. (7)

    Notes

    This formula (passage; as this is not a verse) is called अरण्येऽनूच्यं (aranye'núcyam), something to be recited in the forest. This formula contains seven adjectives, which in legend are the names of seven of the fiercest Maruts. This formula is a part of the verse Yv. XVII. 85. 86.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ কে জীবাঃ কিং গুণাঃ সন্তীত্যাহ ॥
    পুনঃ কোন্ জীব কোন্ গুণ সম্পন্ন, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! মৃত্যু প্রাপ্ত জীব (স্বাহা) স্বীয় কর্ম্ম দ্বারা (উগ্রঃ) তীব্র স্বভাবযুক্ত (চ) শান্ত (ভীমঃ) ভয়কারী (চ) নির্ভয় (ধ্বান্তঃ) অন্ধকারকে প্রাপ্ত (চ) প্রকাশকে প্রাপ্ত (ধুনিঃ) কম্পমান (চ) নিষ্কম্প (সাসহ্বান) শীঘ্র সহ্যশীল (চ) না সহ্যশীল (অভিয়ুগ্বা) সব দিক দিয়া নিয়মধারী (চ) সকলের হইতে পৃথক্ এবং (বিক্ষিপঃ) বিক্ষেপকে প্রাপ্ত হয় ॥ ৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যে জীব পাপাচারী তাহারা উগ্র যাহারা ধর্মাত্মা তাহারা শান্ত, যাহারা ভয় প্রদানকারী তাহারা ভীম শব্দ বাচ্য, যাহারা ভয় প্রাপ্ত তাহারা ভীত, যাহারা অভয়দানকারী, তাহারা নির্ভয়, যাহারা অবিদ্যাযুক্ত তাহারা অন্ধকার দ্বারা আচ্ছাদিত, যাহারা বিদ্বান্ যোগী, তাহারা প্রকাশযুক্ত, যাহারা জিতেন্দ্রিয় নহে, তাহারা চঞ্চল, যাহারা জিতেন্দ্রিয় তাহারা চঞ্চলতারহিত নিজ নিজ কর্মফলকে ভোগ করিয়া সহ্য করিয়া সংযুক্ত বিক্ষেপ প্রাপ্ত এই জগতে নিত্য ভ্রমণ করে, এইরকম জানিবে ॥ ৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    উ॒গ্রশ্চ॑ ভী॒মশ্চ॒ ধ্বা᳖ন্তশ্চ॒ ধুনি॑শ্চ ।
    সা॒স॒হ্বাঁশ্চা॑ভিয়ু॒গ্বা চ॑ বি॒ক্ষিপঃ॒ স্বাহা॑ ॥ ৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    উগ্রশ্চেত্যস্য দীর্ঘতমা ঋষিঃ । মরুতো দেবতাঃ । ভুরিগ্গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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