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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 8
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - जगती सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
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    इन्द्रो॑ मा म॒रुत्वा॑ने॒तस्या॑ दि॒शः पा॑तु॒ तस्मि॑न्क्रमे॒ तस्मि॑ञ्छ्रये॒ तां पुरं॑ प्रैमि। स मा॑ रक्षतु॒ स मा॑ गोपायतु॒ तस्मा॑ आ॒त्मानं॒ परि॑ ददे॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्‍द्रः॑। मा॒। म॒रुत्ऽवा॑न्। ए॒तस्याः॑। दि॒शः। पा॒तु॒। तस्मि॑न्। क्र॒मे॒। तस्मि॑न्। श्र॒ये॒। ताम्। पुर॑म्। प्र। ए॒मि॒। सः। मा॒। र॒क्ष॒तु॒। सः। मा॒। गो॒पा॒य॒तु॒। तस्मै॑। आ॒त्मान॑म्। परि॑। द॒दे॒। स्वाहा॑ ॥१७.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो मा मरुत्वानेतस्या दिशः पातु तस्मिन्क्रमे तस्मिञ्छ्रये तां पुरं प्रैमि। स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्‍द्रः। मा। मरुत्ऽवान्। एतस्याः। दिशः। पातु। तस्मिन्। क्रमे। तस्मिन्। श्रये। ताम्। पुरम्। प्र। एमि। सः। मा। रक्षतु। सः। मा। गोपायतु। तस्मै। आत्मानम्। परि। ददे। स्वाहा ॥१७.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 17; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रक्षा करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (मरुत्वान्) शूरों का अधिष्ठाता (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् परमात्मा] (मा) मुझे (एतस्याः) इस [बीचवाली] (दिशः) दिशा से (पातु) बचावे, (तस्मिन्) उसमें...... [म०१] ॥८॥

    भावार्थ

    मन्त्र १ के समान है ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमात्मा (मा) (मरुत्वान्) अ०१।२०।१। मरुतः शत्रुमारकाः शूराः तैस्तद्वान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    प्राणों के साथ 'इन्द्र' इसी उत्तर-पूर्व के बीच की दिशा में

    पदार्थ

    १. (मरुत्वान) = प्राणोंवाले (इन्द्रः) = सर्वशक्तिमान् प्रभु (मा) = मुझे (एतस्याः दिश:) = इस उत्तर-पूर्व के बीच की दिशा से (पातु) = रक्षित करें। २. इस (सर्वशक्तिमान्) = सब प्राणशक्ति को देनेवाले प्रभु में ही मैं गति करता हूँ। शेष पूर्ववत्।

    भावार्थ

    मैं इस उत्तर-पूर्व के बीच की दिशा में सर्वशक्तिमान् प्रभु को अपने लिए सर्वप्राणशक्ति को लिये हुए अनुभव करूँ। इनमें ही गति कीं।

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    भाषार्थ

    (मरुत्वान्) मनुष्य जाति का स्वामी (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमेश्वर (मा) मेरी (एतस्याः दिशः) इस उत्तर दिशा से (पातु) रक्षा करे। तस्मिन्....पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    [मरुत्=म्रियते इति मरुत्=मनुष्यजातिः (उणा० १.९४), महर्षि दयानन्द। समग्र मनुष्यजाति का स्वामी एक परमेश्वर ही है। इसके द्वारा मनुष्यजाति को पारस्परिक सहानुभूति तथा सहयोग द्वारा रहने का उपदेश दिया गया है।]

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    विषय

    रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (मरुत्वान् इन्द्रः) मरुत्, प्राणों से सम्पन्न इन्द्र, आत्मा (एतस्या दिशः) इसी उदीची दिशा से (मा पातु) मेरी रक्षा करे अथवा वायुओं युक्त इन्द्र मेघ मेरी उत्तर से रक्षा करे। शेष पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः । १-४ जगत्यः। ५, ७, १० अतिजगत्यः, ६ भुरिक्, ९ पञ्चपदा अति शक्वरी। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Protection and Security

    Meaning

    May Indra, lord omnipotent, with his force of Maruts, mighty winds and rays of energy, protect and promote me from that very direction. Therein I advance. Therein I rest and find sustenance. There itself I attain to as my goal. May that guard me. May that save me. To him I surrender life and soul in truth of word and deed.

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    Translation

    May the resplendent Lord, along with Maruts (cloud-bearing winds) guard me from this direction (middle of the north and the east). I step in Him; in Him I take shelter; to that vaste do I go. May He defend; may He protect me. To Him I totally surrender myself. Svaha.

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    Translation

    Indra, the Almighty God guard me with Marutas from this region (Narth) ......... soul to Him......... appreciation.

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    Translation

    May the All-powerful God, with the brave persons, protect me from this mid-quarter i.e., north-east. I.... so on.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमात्मा (मा) (मरुत्वान्) अ०१।२०।१। मरुतः शत्रुमारकाः शूराः तैस्तद्वान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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