अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 37/ मन्त्र 1
ऋषि: - बादरायणि
देवता - अजशृङ्ग्योषधिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कृमिनाशक सूक्त
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त्वया॒ पूर्व॒मथ॑र्वाणो ज॒घ्नू रक्षां॑स्योषधे। त्वया॑ जघान क॒श्यप॒स्त्वया॒ कण्वो॑ अ॒गस्त्यः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्वया॑ । पूर्व॑म् । अथ॑र्वाण: । ज॒घ्नु: । रक्षां॑सि । ओ॒ष॒धे॒ । त्वया॑ । ज॒घा॒न॒ । क॒श्यप॑: । त्वया॑ । कण्व॑: । अ॒गस्त्य॑: ॥३७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वया पूर्वमथर्वाणो जघ्नू रक्षांस्योषधे। त्वया जघान कश्यपस्त्वया कण्वो अगस्त्यः ॥
स्वर रहित पद पाठत्वया । पूर्वम् । अथर्वाण: । जघ्नु: । रक्षांसि । ओषधे । त्वया । जघान । कश्यप: । त्वया । कण्व: । अगस्त्य: ॥३७.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
गन्धर्व और अप्सराओं के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(ओषधे) हे तापनाशक परमेश्वर ! (त्वया) तेरे सहारे से (पूर्वम्) पहिले (अथर्वाणः) निश्चल स्वभाववाले अथवा मङ्गल के लिये व्यापक महात्माओं ने (रक्षांसि) राक्षसों को (जघ्नुः) मारा था। (त्वया) तेरे साथ ही (कश्यपः) तत्त्वदर्शी पुरुष ने, और (त्वया) तेरे साथ ही (कण्वः) मेधावी, तथा (अगस्त्यः) कुटिलगति, पाप के फेंकने में समर्थ जीव ने (जघान) मारा था ॥१॥
भावार्थ
जैसे पूर्वज ऐतिहासिक जितेन्द्रिय पुरुषों ने जगत् का उपकार किया है, वैसे ही सब मनुष्य ज्ञानपूर्वक दोषों का नाश करके परस्पर उपकार करें ॥१॥
टिप्पणी
१−(त्वया) (पूर्वम्) अग्रे (अथर्वाणः) अ० ४।१।७। निश्चलस्वभावाः। मङ्गलाय व्यापका महात्मानः (जघ्नुः) हतवन्तः (रक्षांसि) राक्षसान् (ओषधे) अ० १।२३।१। हे तापनाशक परमेश्वर (जघान) हतवान् (कश्यपः) अ० २।३३।७। पश्यकः, तत्त्वदर्शकः पुरुषः (कण्वः) अ० २।३२।३। मेधावी-निघ० ३।१५। (अगस्त्यः) अ० २।३२।३। अगस्य कुटिलगतेः पापस्य असने उत्पाटने समर्थः पुरुषः ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Destroying Insects, Germs and Bacteria
Meaning
O all-cleansing herb, by you the veteran scholars of Atharvani science of fire and soma destroy life threatening germs. By you the microbiologist, Kashyapa, destroys germs of disease. By you Kanva, the technologist, and Agastya, specialist of water pollution, destroys germs of disease.
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