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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 9
    ऋषिः - मयोभूः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
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    ती॒क्ष्णेष॑वो ब्राह्म॒णा हे॑ति॒मन्तो॒ यामस्य॑न्ति शर॒व्यां॒ न सा मृषा॑। अ॑नु॒हाय॒ तप॑सा म॒न्युना॑ चो॒त दु॒रादव॑ भिन्दन्त्येनम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ती॒क्ष्णऽइ॑षव: । ब्रा॒ह्म॒णा: । हे॒ति॒ऽमन्त॑: । याम् । अस्य॑न्ति । श॒र॒व्या᳡म् । न । सा । मृषा॑ । अ॒नु॒ऽहाय॑। तप॑सा । म॒न्युना॑ । च॒ । उ॒त । दू॒रात् । अव॑ । भि॒न्द॒न्ति॒ । ए॒न॒म् ॥१८.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तीक्ष्णेषवो ब्राह्मणा हेतिमन्तो यामस्यन्ति शरव्यां न सा मृषा। अनुहाय तपसा मन्युना चोत दुरादव भिन्दन्त्येनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तीक्ष्णऽइषव: । ब्राह्मणा: । हेतिऽमन्त: । याम् । अस्यन्ति । शरव्याम् । न । सा । मृषा । अनुऽहाय। तपसा । मन्युना । च । उत । दूरात् । अव । भिन्दन्ति । एनम् ॥१८.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 18; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदविद्या की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (तीक्ष्णेषवः) तीक्ष्ण बाणवाले, (हेतिमन्तः) बरछियोंवाले (ब्राह्मणाः) ब्राह्मण लोग (याम्) जिस (शरव्याम्) बाणों की झड़ी को (अस्यन्ति) छोड़ते हैं, (सा) वह (मृषा) मिथ्या (न) नहीं होती। (तपसा) तप से (च) और (मन्युना) क्रोध से (अनुहाय) पीछा करके (दूरात्) दूर से (उत) ही (एनम्) इस [वैरी] को (अव भिन्दन्ति) वे लोग छेद डालते हैं ॥९॥

    भावार्थ

    जब ब्राह्मण क्रुद्ध होते हैं, दुष्टों को जड़मूल से मिटा देते हैं ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(तीक्ष्णेषवः) तीव्रबाणोपेताः (ब्राह्मणाः) वेदज्ञाः (हेतिमन्तः) वज्रोपेताः (याम्) (अस्यन्ति) क्षिपन्ति (शरव्याम्) अ० १।१९।३। शरसंहतिम् (न) निषेधे (सा) (मृषा) मिथ्या (अनुहाय) ओहाङ् गतौ−ल्यप्। अनुगत्य (तपसा) तपनेन (मन्युना) क्रोधेन (च) (उत) एव (दूरात्) विप्रकृष्टस्थानात् (अव) अनादरे (भिन्दन्ति) छिन्दन्ति (एनम्) शत्रुम् ॥

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    विषय

    ब्राह्मण-वाणी+बाण

    पदार्थ

    १. (बाह्मणा:) = ज्ञान का प्रसार करनेवाले ब्राह्मण (तीक्ष्णेषवः) = बड़े तीक्ष्ण बाणोंवाले होते हैं, वे (हेतिमन्त:) = घातक अस्त्रोंवाले-बज्रवाले होते हैं। ये लोग (यां शरव्याम्) = जिस बाणसमूह को ज्ञान की वाणीरूप बाण को (अस्यन्ति) = छोड़ते हैं, (सा न मृषा) = वे झूठे नहीं होते। यह वाणीरूप बाण अवश्य शत्रु का विनाश करता है। २. ये ब्राह्मण (तपसा) = तप के द्वारा (मन्युना च) = और ज्ञानदीति [मन अवबोधे] के द्वारा (अनुहाय) = पीछा करके (दूरात् उत) = दूर से ही (एनम्) = इस अत्याचारी राजा को (अवभिन्दन्ति) = विदीर्ण कर देते हैं।

    भावार्थ

    ब्राह्मणों का वणीरूप बाण शत्रुओं को शीर्ण कर डालता है। तप व ज्ञान से सम्पन्न ये ब्राह्मण प्रजाओं के शत्रुभूत राजा को दूर से ही विनष्ट कर देते हैं।

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    भाषार्थ

    (तोक्ष्णेषवः) तीक्ष्ण बाणोंवाले (हेतिमन्तः) तथा अस्त्रोंवाले (ब्राह्मणाः) ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञ विद्वान्, (याम्, शरव्याम्) जिस शरसमूह को या घातक अस्त्र को (अस्यन्ति) फैकते हैं (सा) वह (मृषा न) व्यर्थ नहीं होते, [ब्राह्मण के] (तपसा, मन्युना च) तप द्वारा और मन्यु द्वारा (अनु हाय) पीछे-पीछे जाकर, (उत) तथा (दूरात्) दूर से ( एनम् ) इस राजा को (अब भिन्दन्ति) ये इषु और अस्त्र छिन्न-भिन्न कर देते हैं।

    टिप्पणी

    [अनुहाय=अनु+ ओहाङ् गतौ (जुहोत्यादि)। शरव्या= शृ हिंसायाम् (क्र्यादिः)। शरव्या शरसंहतीः (सायण), (अथर्व० १।१९।१)। ब्राह्मणाः में बहुवचन ब्राह्मण-संघ का निर्देशक है। केवल एक ब्राह्मण का नहीं।]

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    (ब्राह्मणाः) ब्रह्मवेत्ता, विद्वान्, ब्राह्मण लोग (तीक्ष्ण इषवः) तीक्ष्ण बाणों से युक्त, एवं तीक्ष्ण इच्छा शक्ति से सम्पन्न और (हेति-मन्तः) अस्त्रों से युक्त होकर (यां शरव्याम्) जिस बाणधारा को (अस्यन्ति) फेंकते हैं (सा) वह (न मृषा) असत्य नहीं है। वे (तपसा) तप और (मन्युना) क्रोध या ज्ञान से (अनु-हाय) शत्रु का पीछा कर के (एनं) इसको (दूरात्) दूर से ही (भिन्दन्ति) भेद डालते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मयोभूर्ऋषिः। ब्रह्मगवी देवता। १-३, ६, ७, १०, १२, १४, १५ अनुष्टुभः। ४, ५, ८, ९, १३ त्रिष्टुभः। ४ भुरिक्। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahma Gavi

    Meaning

    Wielding bows and arrows of sharp and tempered mind, poised to strike, when the Brahmanas shoot out a volley of words and ideas, the attack is not ineffectual. With the force of austere discipline and righteous passion, they pursue, strike and fell this target, the reviler of divinity and divine values, even from a far off distance.

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    Translation

    The shower of arrows, which the intellectuals, equipped with sharp arrows and missiles, discharge, never fails. Pursuing with heat and zeal, they pierce him through even on a distance.

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    Translation

    The series of shaft which the Brahmana’s armed with sharp arrows and equipped with deadly weapons, discharge never fails. They pursuing foe man (the man) with austerity and fiery anger pierce him even from a distance.

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    Translation

    The Brahmans equipped with sharp arrows, armed with missiles, discharge the round of shafts, which never faileth. Pursuing the enemy with fiery zeal and righteous indignation, they pierce him even from a distance.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(तीक्ष्णेषवः) तीव्रबाणोपेताः (ब्राह्मणाः) वेदज्ञाः (हेतिमन्तः) वज्रोपेताः (याम्) (अस्यन्ति) क्षिपन्ति (शरव्याम्) अ० १।१९।३। शरसंहतिम् (न) निषेधे (सा) (मृषा) मिथ्या (अनुहाय) ओहाङ् गतौ−ल्यप्। अनुगत्य (तपसा) तपनेन (मन्युना) क्रोधेन (च) (उत) एव (दूरात्) विप्रकृष्टस्थानात् (अव) अनादरे (भिन्दन्ति) छिन्दन्ति (एनम्) शत्रुम् ॥

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