अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 2
अ॒पां यो अग्ने॑ प्रति॒मा ब॒भूव॑ प्र॒भूः सर्व॑स्मै पृथि॒वीव॑ दे॒वी। पि॒ता व॒त्सानां॒ पति॑र॒घ्न्यानां॑ साह॒स्रे पोषे॒ अपि॑ नः कृणोतु ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒पाम् । य: । अग्ने॑ । प्र॒ति॒ऽमा । ब॒भूव॑ । प्र॒ऽभू: । सर्व॑स्मै । पृ॒थि॒वीऽइ॑व । दे॒वी । पि॒ता । व॒त्साना॑म् । पति॑: । अ॒घ्न्याना॑म् । सा॒ह॒स्रे । पोषे॑ । अपि॑ । न॒: । कृ॒णो॒तु॒ ॥४.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अपां यो अग्ने प्रतिमा बभूव प्रभूः सर्वस्मै पृथिवीव देवी। पिता वत्सानां पतिरघ्न्यानां साहस्रे पोषे अपि नः कृणोतु ॥
स्वर रहित पद पाठअपाम् । य: । अग्ने । प्रतिऽमा । बभूव । प्रऽभू: । सर्वस्मै । पृथिवीऽइव । देवी । पिता । वत्सानाम् । पति: । अघ्न्यानाम् । साहस्रे । पोषे । अपि । न: । कृणोतु ॥४.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आत्मा की उन्नति का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो [ईश्वर] (अग्रे) पहिले ही पहिले (अपाम्) व्याप्त प्रजाओं की (प्रतिमा) प्रत्यक्ष मान करनेवाली [सब जाननेवाली] शक्ति और (सर्वस्मै) सब [जगत्] के लिये (देवी) दिव्य गुणवाली (पृथिवी इव) पृथिवी के समान (प्रभूः) समर्थ (बभूव) हुआ है, वह (वत्सानाम्) निवास करनेवालों का (पिता) पालनकर्ता और (अघ्न्यानाम्) अहिंसकों [प्रजापतियों] का (पतिः) स्वामी [परमेश्वर] (साहस्रे) सहस्रों पराक्रमयुक्त (पोषे) पोषण में (नः) हमें (अपि) अवश्य (कणोतु) करे ॥२॥
भावार्थ
अनादि, अनन्त, सर्वपालक परमात्मा के उपासक पुरुष पुरुषार्थपूर्वक सब प्रकार वृद्धि करते हैं ॥२॥
टिप्पणी
२−(अपाम्) आपः, आप्ताः प्रजाः-दयानन्दभाष्ये यजु० ६।२७। व्याप्तानां प्रजानाम् (यः) ऋषभः परमेश्वरः (अग्रे) सृष्टेः प्राक् (प्रतिमा) प्रतिमीयतेऽनया, प्रति+माङ् माने-अ। प्रत्यक्षं मानकर्त्री सर्वज्ञात्री शक्तिः। परमेश्वरः (बभूव) (प्रभूः) अन्येभ्योऽपि दृश्यते। पा० ३।२।७८। भू सत्तायाम्-क्विप्। समर्थः। (सर्वस्मै) सर्वजगद्धिताय (पृथिवी) (इव) (देवी) दिव्यगुणयुक्ता (पिता) पालकः (वत्सानाम्) वृतॄवचिवसि०। उ० ३।६२। वस निवासे-स। निवासशीलानाम् (पतिः) स्वामी (अघ्न्यानाम्) अ० ३।३०।१। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। नञ्+हन हिंसागत्योः-यक्। अहन्तॄणां प्रजापतीनाम् (साहस्रे) म० १। महापराक्रमयुक्ते (पोषे) पोषणे। अभ्युदये (अपि) अवधारणे (नः) अस्मान् (कृणोतु) करोतु ॥
विषय
अपां प्रतिमा
पदार्थ
१. (य:) = जो (अग्रे) = सृष्टि के आरम्भ में (अपाम्) = प्रजाओं का [आपो नारा इति प्रोक्ता:] (प्रतिमा बभूव) = निर्माता [Maker, Creator] हुआ [महर्षयः सप्त, पूर्वे चत्वारे, मनवस्तथा। मभावा मनसा जाता येषां लोक इमा: प्रजाः ॥] वह (देवी पृथिवी इव) = इस दिव्य गुणोंवाली, सब पदार्थों को देनेवाली पृथिवी के समान (सर्वस्मै प्रभू:) = सबके लिए-सबको आधार देने के लिए समर्थ है। २. वह (वत्सानाम्) = [वदति] स्तवन करनेवालों का अथवा वेदवचनों का उच्चारण करनेवालों का (पिता) = रक्षक है। (अन्यानाम्) = अहन्तव्य वेदवाणियों के (पति:) = वे प्रभु स्वामी हैं। सब वेदवाणी प्रभु में ही निवास करती हैं। ये प्रभु साहले (पोषे-सहस्रों) = पराक्रमों से युक्त पोषण में (नः कृणोतु) = हमें करें, अर्थात् सब प्रकार से हमें पुष्ट करें।
भावार्थ
प्रभु सर्गारम्भ में अमैथुनी सृष्टि को जन्म देते हैं, सबका धारण करते हैं, स्तोताओं के रक्षक हैं, वेदवाणियों के पति हैं। वे हमें सहस्रों प्रकार से पुष्ट करें।
भाषार्थ
(यः) जो परमेश्वर (अग्रे) सृष्टि के सर्जन काल में (अपाम्) अप्-तत्त्व का (प्रतिमा) निर्माता (बभूव) हुआ, जो (देवी पृथिवी इव) दिव्य गुणों वाली पृथिवी के सदृश (सर्वस्मै) सब के लिये (प्रभूः) पालन करने में सामर्थ्यवान् है । जो (वत्सानाम्) प्रजारूप बच्चों का (पिता) पिता है, (अघ्न्यानाम्) अनश्वर वेदवाणियों का (पतिः) पति है, वह (नः) हमें (साहस्र पोषे) सहस्रविध पुष्टियों में (अपि) भी (कृणोतु) स्थापित करे।
टिप्पणी
[अघ्न्यानाम्; "अघ्न्या पदनाम" (निघं० ५।२) प्रभूः= प्रभवतीति। वत्सानाम्= "शृण्वन्तु विश्वेऽमृतस्य पुत्राः” (यजु० ११।५)। इस मन्त्र भाग में प्रजा को अमृत=परमेश्वर के पुत्र कहा है। बलीवर्द में,— "अपाम्" उत्पत्ति काल से ही जो जलों के सदृश शान्त प्रकृति का है। वत्सानाम्= बछड़े बछड़ियों का पिता अघ्न्यानाम्= गौओं का (निघं० २।११)]
विषय
ऋषभ के दृष्टान्त से परमात्मा का वर्णन।
भावार्थ
(यः) जो (अग्रे) पूर्वकाल में (अपां) जगत् के कारणभूत आपः= सूक्ष्म प्रकृति के परमाणुओं पर भी (प्रतिमा) ‘प्रतिमान’ मापने और उन में भी व्यापने वाला (बभूव) रहा, और (सर्वस्मै प्रभूः) सब संसार का उत्पादक और अधिष्ठाता, (देवी पृथिवी इव) देवी पृथिवी के समान सबका आश्रय था और है। और जो (वत्सानाम्) प्रकृति के आगे उत्पन्न होने वाले पञ्चभूत आदि विकृति रूपों के या प्राणियों के आवास हेतु लोकों या मुक्त जीवों का (पिता) जनक और पालक है, और (अघ्न्यानाम् पतिः) कभी नाश न होने वाली पञ्चभूतों की सूक्ष्म तन्मात्राओं का भी पालक है वह परमात्मा (नः) हमें (साहस्त्रे पोषे) सहस्रों प्रकार के पोषण कार्यों में (अपि कृणोतु) समर्थ करे अर्थात् जिस प्रकार वह सहस्रों विश्वों को पुष्ट करता और पालता है उसी प्रकार वह हमें भी समर्थ करे। ‘वत्सानां पिता, अघ्न्यानां पतिः’ इत्यादि विशेषणों से साधारण सांड भी उपमान रूप से ज्ञात होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। ऋषभो देवता। १-५, ७, ९, २२ त्रिष्टुभः। ८ भुरिक। ६, १०,२४ जगत्यौ। ११-१७, १९, २०, २३ अनुष्टुभः। १२ उपरिष्टाद् बृहती। २१ आस्तारपंक्तिः। चतुर्विंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Rshabha, the ‘Bull’
Meaning
The one that became the first and original manifestive cause of the flow of existence in the beginning, that became the master creator and sustainer, like the divine mother earth, of all creatures, master generator of the inviolable mother forces of nature and father of the evolving forms of creation, the same lord, we pray, may advance us into a thousand lines of growth and further progress.
Translation
May he, who in the béginning, used to be a resemblance of waters, multiplier for all like the earth divine, father of calves, husband of the inviolable cows, place us also in a thousand-fold prosperity.
Translation
May He who at the beginning of the creation becomes the modeling power over the atoms of tenacious matter, who is the controlling authority of the whole universe and the support thereof like the vast mighty earth, who is the creator of the created objects and the master of the non-manifested casual atoms, secure us thousand fold wealthy abundance,
Translation
May God, Who in the beginning of Creation pervaded the atoms of subtle matter, is the Creator and Lord of the universe, the Afforder of shelter to all like Earth the goddess, the Guardian of emancipated souls, the sovereign of immortal elements of Matter, secure us thousandfold, abundance.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(अपाम्) आपः, आप्ताः प्रजाः-दयानन्दभाष्ये यजु० ६।२७। व्याप्तानां प्रजानाम् (यः) ऋषभः परमेश्वरः (अग्रे) सृष्टेः प्राक् (प्रतिमा) प्रतिमीयतेऽनया, प्रति+माङ् माने-अ। प्रत्यक्षं मानकर्त्री सर्वज्ञात्री शक्तिः। परमेश्वरः (बभूव) (प्रभूः) अन्येभ्योऽपि दृश्यते। पा० ३।२।७८। भू सत्तायाम्-क्विप्। समर्थः। (सर्वस्मै) सर्वजगद्धिताय (पृथिवी) (इव) (देवी) दिव्यगुणयुक्ता (पिता) पालकः (वत्सानाम्) वृतॄवचिवसि०। उ० ३।६२। वस निवासे-स। निवासशीलानाम् (पतिः) स्वामी (अघ्न्यानाम्) अ० ३।३०।१। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। नञ्+हन हिंसागत्योः-यक्। अहन्तॄणां प्रजापतीनाम् (साहस्रे) म० १। महापराक्रमयुक्ते (पोषे) पोषणे। अभ्युदये (अपि) अवधारणे (नः) अस्मान् (कृणोतु) करोतु ॥
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