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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 10
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - पुरउष्णिक् सूक्तम् - गौ सूक्त
    55

    धा॒ता च॑ सवि॒ता चा॑ष्ठी॒वन्तौ॒ जङ्घा॑ गन्ध॒र्वा अ॑प्स॒रसः॒ कुष्ठि॑का॒ अदि॑तिः श॒फा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒ता । च॒ । स॒वि॒ता । च॒ । अ॒ष्ठी॒वन्तौ॑ । जङ्घा॑: । ग॒न्ध॒र्वा: ।अ॒प्स॒रस॑: । कुष्ठि॑का: । अदि॑ति: । श॒फा: ॥१२.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धाता च सविता चाष्ठीवन्तौ जङ्घा गन्धर्वा अप्सरसः कुष्ठिका अदितिः शफा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धाता । च । सविता । च । अष्ठीवन्तौ । जङ्घा: । गन्धर्वा: ।अप्सरस: । कुष्ठिका: । अदिति: । शफा: ॥१२.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    [सृष्टि में] (धाता) धारण करनेवाला गुण (च) और (सविता) ऐश्वर्य करनेवाला गुण (च) ही (अष्ठीवन्तौ) दोनों घुटने, (गन्धर्वाः) पृथिवी धारण करनेवाले गुण (जङ्घाः) जङ्घाएँ (अप्सरसः) प्राणियों में व्यापक गुण (कुष्ठिकाः) [नख अङ्गुली आदि] बाहिरी अङ्गों [के समान] और (अदितिः) [अदीन वा अखण्डित] वेदवाणी (शफाः) शान्तिव्यवहार [हैं] ॥१०॥

    भावार्थ

    मन्त्र ७ के समान है ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(धाता) धारको गुणः (च) (सविता) ऐश्वर्यप्रापको गुणः (अष्ठीवन्तौ) अ० २।३३।५। जानुनी (जङ्घाः) गत्यर्थकस्य हन्तेः−कौटिल्ये यङ्, अ, टाप्। गुल्फजान्वोरन्तराले अवयवाः (गन्धर्वाः) अ० ४।३७।१२। पृथिवीधारका गुणाः (अप्सरसः) अ० ४।३७।२। अप्सु प्राणेषु व्यापका गुणाः (कुष्ठिकाः) अ० ६।४।१६। बहिर्भूता अवयवाः (अदितिः) अ० २।२८।४। अदीना अखण्डिता वा वेदवाणी (शफाः) शम शान्तौ-अच्, मस्य फः पृषोदरादित्वात्। इति शब्दस्तोममहानिधिः। शान्तिव्यवहाराः ॥

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    विषय

    मित्र से प्रजा तक

    पदार्थ

    १.(मित्र: च वरुणः च) = मित्र और वरुण (अंसौ) = कन्धे हैं, (त्वष्टा च अर्यमा च) = त्वष्टा और अर्यमा (दोषणी) = भुजाओं के ऊपर के भाग हैं, (महादेवः बाहः) = महादेव बाहु हैं [अगली टाँगों का पिछला भाग], (इन्द्राणी) = विद्युत्-शक्ति (भसत्) = गुह्यभाग है, (वायुः पुच्छम्) = वायु पूंछ है, (पवमानः बाला:) = बहता हुआ वायु उसके बाल हैं। २. (ब्रह्म च क्षत्रं च) = ब्रह्म और क्षत्र [ब्राह्मण और क्षत्रिय] (श्रोणी) = उसके श्रोणीप्रदेश [कुल्हे] हैं, (बलम्) = बल [सेना] (ऊरू) = जाँचे हैं। (धाता च सविता च) = धाता और सविता उसके (अष्ठीवन्तौ) = टखने हैं, (गन्धर्वाः जंघा:) = गन्धर्व जंघाएँ हैं (अप्सरस:) = रूपवती स्त्रियाँ [अप्सराएँ] (कुष्ठिका:) = खुरों के ऊपर-पीछे की ओर लगी अंगुलियाँ हैं, (अदितिः) = पृथिवी (शफा:) = खुर हैं। ३. (चेत:) = चेतना (हृदयम्) = हृदय है, (मेधा) = बुद्धि (यकृत्) = जिगर है, (व्रत पुरीतत्) = व्रत उसकी अति है, (क्षुत् कुक्षि:) = भूख कोख है, (इरा) = अन्न व जल (वनिष्टुः) = गुदा व बड़ी आँतें हैं, (पर्वता:) = पर्वत व मेघ (प्लाशय:) = छोटी आंत हैं, (क्रोध:) = क्रोध वृक्को -गुर्दे हैं, (मन्यु:) = शोक व दीप्ति (आण्डौ) = अण्डकोश हैं, (प्रजा शेप:) = प्रजाएँ उसका लिंगभाग हैं [वृक्की पुष्टिकरी प्रोक्तौ जठरस्थस्य मेदसः । वीर्यवाहिशिराधारौ वृषणौ पौरुषावहौ। गर्भाधानकर लिङ्गमयन वीर्यमूत्रयोः-शार्ङ्गधर]।

    भावार्थ

    वेद में मित्र, वरुण से लेकर क्रोध, मन्यु, प्रजा आदि का सुचारुरूपेण प्रतिपादन है।

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    भाषार्थ

    धाता और सविता हैं दो घुटने [अष्ठीवन्तौ=अस्थियों वाले], गन्धर्व हैं जङ्घाएं [लातें], अप्सराएं हैं,-जङ्घाओं और खुरों के जोड़ों की अस्थियां [कुष्ठिकाः = कु + अस्थिकाः] प्रकृति [अदितिः] है ख़ूर [शफा]।

    टिप्पणी

    [जङ्घा = 'जङ्घयोर्जवः' (अथर्व० १९।६०।२)। अदितिः "अदीना देवमाता" (निरुक्त ४।४।२२), सूर्यादि देवों की माता प्रकृति अथवा "अदितिः पृथिवी नाम" (निघं० १।१)। पृथिवी को "प्रमा" कहा है, यथा "यस्य भूमिः प्रमान्तरिक्षमुतोदरम्। दिवं यश्चक्रे मूर्द्धानं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः।। (अथर्व० १०।७।३२)। "प्रमा का अर्थ है "पाद", जिसके द्वारा कि भूमि नापी जाती है" प्रमीयते यया सा प्रमा"। पादों द्वारा भूमि नापी जाती है, "फुटे" को foot (पाद) कहते हैं। इस प्रकार अदिति और शफाः का परस्पर सम्बन्ध भी द्योतित हो जाता है। गन्धर्वो, अप्सराओं के स्वरूप, यथा— (गन्धर्वाः) + (अप्सरसः)। (१) अग्निः + ओषधयः। (२) सूर्यः + मरीचयः (३) चन्द्रमाः + नक्षत्राणि (४) बातः + आपः। (५) यज्ञः + दक्षिणाः (६) मनः + ऋक् सामानि। यजु० १८ (३८-४३)।

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    विषय

    विश्वका गोरूप से वर्णन॥

    भावार्थ

    (धाता च सविता च) धाता और सविता दोनों (अष्ठीवन्तौ) उस महावृषभ के टखने हैं, (गन्धर्वाः जंघाः) गन्धर्व, पुरुषवर्ग जंघाएं है, (अप्सरसः कुष्ठिकाः) अप्सराएं स्त्रियें खुरों के ऊपर पीछे की ओर लगी अंगुलिये हैं, (अदितिः शफाः) अदिति अर्थात् पृथ्वी शफ अर्थात् खुर हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। गोदेवता। १ आर्ची उष्णिक्, ३, ५, अनुष्टुभौ, ४, १४, १५, १६ साम्न्यौ बृहत्या, ६,८ आसुयौं गायत्र्यौ। ७ त्रिपदा पिपीलिकमध्या निचृदगायत्री। ९, १३ साम्न्यौ गायत्रौ। १० पुर उष्णिक्। ११, १२,१७,२५, साम्नयुष्णिहः। १८, २२, एकपदे आसुरीजगत्यौ। १९ आसुरी पंक्तिः। २० याजुषी जगती। २१ आसुरी अनुष्टुप्। २३ आसुरी बृहती, २४ भुरिग् बृहती। २६ साम्नी त्रिष्टुप्। इह अनुक्तपादा द्विपदा। षड्विंशर्चं एक पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cow: the Cosmic Metaphor

    Meaning

    Dhata and Savita, sun and gravitation, are the knees, magnetic forces are the shanks, rays are dew- claws, the earth is the hoofs.

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    Translation

    The sustainer Lord (dhatr) and the impeller Lord (Savitr) are his two knee-bones (asthivantau);gandharvas (sustainers of the earth) are his shanks (jamgha); apsarasas are his cavities of loins (kusthikah) and aditi (the indivisible earth) his hooves (Saphah).

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    Translation

    Dhatar and Savitar are like its two knees, Gandharva is like legs. The apsaras like the bits of its feet and Aditi is like its hooves.

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    Translation

    Retention and prosperity are the two knee-bones, males and the legs, females are bits of the feet, Earth is the hooves.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(धाता) धारको गुणः (च) (सविता) ऐश्वर्यप्रापको गुणः (अष्ठीवन्तौ) अ० २।३३।५। जानुनी (जङ्घाः) गत्यर्थकस्य हन्तेः−कौटिल्ये यङ्, अ, टाप्। गुल्फजान्वोरन्तराले अवयवाः (गन्धर्वाः) अ० ४।३७।१२। पृथिवीधारका गुणाः (अप्सरसः) अ० ४।३७।२। अप्सु प्राणेषु व्यापका गुणाः (कुष्ठिकाः) अ० ६।४।१६। बहिर्भूता अवयवाः (अदितिः) अ० २।२८।४। अदीना अखण्डिता वा वेदवाणी (शफाः) शम शान्तौ-अच्, मस्य फः पृषोदरादित्वात्। इति शब्दस्तोममहानिधिः। शान्तिव्यवहाराः ॥

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