Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 15
    ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    1

    सोम॑स्य रू॒पं क्री॒तस्य॑ परि॒स्रुत्परि॑षिच्यते। अ॒श्विभ्यां॑ दु॒ग्धं भे॑ष॒जमिन्द्रा॑यै॒न्द्रꣳ सर॑स्वत्या॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑स्य। रू॒पम्। क्री॒तस्य॑। प॒रि॒स्रुदिति॑ परि॒ऽस्रुत्। परि॑। सि॒च्य॒ते॒। अ॒श्विभ्या॒मित्य॒श्विऽभ्या॑म्। दु॒ग्धम्। भे॒ष॒जम्। इन्द्रा॑य। ऐ॒न्द्रम्। सर॑स्वत्या ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमस्य रूपङ्क्रीतस्य परिस्रुत्परि षिच्यते । अश्विभ्यां दुद्ग्धं भेषजमिन्द्रायैन्द्रँ सरस्वत्या ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सोमस्य। रूपम्। क्रीतस्य। परिस्रुदिति परिऽस्रुत्। परि। सिच्यते। अश्विभ्यामित्यश्विऽभ्याम्। दुग्धम्। भेषजम्। इन्द्राय। ऐन्द्रम्। सरस्वत्या॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    Translation -
    The symbol of acquired mental happiness is milk, which is offered in abundance by the twin-healers and the Doctress as a superb tonic to an aspirant. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top