Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 64
    ऋषिः - विदर्भिर्ऋषिः देवता - अश्विसरस्वतीन्द्रा देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    2

    अ॒श्विना॑ भेष॒जं मधु॑ भेष॒जं नः॒ सर॑स्वती।इन्द्रे॒ त्वष्टा॒ यशः श्रिय॑ꣳ रू॒पꣳरू॑पमधुः सु॒ते॥६४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्विना॑। भे॒ष॒जम्। मधु॑। भे॒ष॒जम्। नः॒। सर॑स्वती। इन्द्रेः॑। त्वष्टा॑। यशः॑। श्रिय॑म्। रू॒पꣳरूप॒मिति॑ रू॒पम्ऽरू॑पम्। अ॒धुः॒। सु॒ते ॥६४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्विना भेषजम्मधु भेषजन्नः सरस्वती । इन्द्रे त्वष्टा यशः श्रियँ रूपँरूपमधुः सुते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अश्विना। भेषजम्। मधु। भेषजम्। नः। सरस्वती। इन्द्रेः। त्वष्टा। यशः। श्रियम्। रूपꣳरूपमिति रूपम्ऽरूपम्। अधुः। सुते॥६४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 64
    Acknowledgment

    Translation -
    When the cure-juice is pressed out, the twin healers serve it to us as a sweet medicine; the divine Doctress offers it as a medicine; and the cosmic Moulder serves it to the aspirant in the form of fame, fortune and varying appearances. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top