Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 65
    ऋषिः - विदर्भिर्ऋषिः देवता - अश्विसरस्वतीन्द्रा देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    2

    ऋ॒तु॒थेन्द्रो॒ वन॒स्पतिः॑ शशमा॒नः प॑रि॒स्रुता॑।की॒लाल॑म॒श्विम्यां॒ मधु॑ दु॒हे धे॒नुः सर॑स्वती॥६५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒तु॒थेत्यृ॑तु॒ऽथा। इन्द्रः॑। वन॒स्पतिः॑। श॒श॒मा॒नः। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। की॒लाल॑म्। अ॒श्विभ्या॒मित्य॒श्विऽभ्या॑म्। मधु॑। दु॒हे। धे॒नुः। सर॑स्वती ॥६५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतुथेन्द्रो वनस्पतिः शशमानः परिस्रुता । कीलालमश्विभ्याम्मधु दुहे धेनुः सरस्वती ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतुथेत्यृतुऽथा। इन्द्रः। वनस्पतिः। शशमानः। परिस्रुतेति परिऽस्रुता। कीलालम्। अश्विभ्यामित्यश्विऽभ्याम्। मधु। दुहे। धेनुः। सरस्वती॥६५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 65
    Acknowledgment

    Translation -
    In due seasons, the Lord of vegetation, being praised, presses out the sweet beverage for the aspirant. The divine Doctress milks the cow for the twin healers. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top