अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 12
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
पर्या॑गारं॒ पुनः॑पुनः ॥
स्वर सहित पद पाठपरिऽआ॑गारम् । पुन॑:ऽपुन: ॥१३२.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
पर्यागारं पुनःपुनः ॥
स्वर रहित पद पाठपरिऽआगारम् । पुन:ऽपुन: ॥१३२.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 12
भाषार्थ -
वह दिव्यशक्ति (पर्यागारम्) घर-घर में डौंडी पीटती है, (पुनः पुनः) और बार-बार पीटती है।
टिप्पणी -
[वह दैवीशक्ति है परमेश्वरीय शक्ति ही, जो कि प्रत्येक जीवात्मा के मानुष-घर में, अर्थात् शरीर में, उसके कर्त्तव्याकर्त्तव्य कर्मों की डौंडी पीटती रहती है, और बार-बार पीटती रहती है। वह डौंडी है—भय शंका और लज्जारूपी डौंडी; या सुखदुःख के तारतम्य की डौंडी।]