अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 14
हि॑र॒ण्य इत्येके॑ अब्रवीत् ॥
स्वर सहित पद पाठहि॒र॒ण्य: । इति॑ । एके॑ । अब्रवीत् ॥१३२.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
हिरण्य इत्येके अब्रवीत् ॥
स्वर रहित पद पाठहिरण्य: । इति । एके । अब्रवीत् ॥१३२.१४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 14
भाषार्थ -
(एके) कई एक अर्थात् सात्त्विक-प्रकृति के उपासक कहते हैं कि वह (हिरण्य) “हिरण्य” नामवाला है, (अब्रवीत्) ऐसा ही वेद ने भी कहा है।
टिप्पणी -
[हिरण्यम्=हितं रमणीयं च, हृदयरमणं भवति (निरु০ २.३.१०)। अर्थात् परमेश्वर सबका “हित” करता है, “रमणीय” है, और “हृदयों में रमता है”। वेद में भी कहा है कि “हिरण्यरूपः स हिरण्यसंदृक्” (ऋ০ २.३५.१०), अर्थात् वह परमेश्वर हिरण्य के रूपवाला है, और हिरण्य के सदृश है।]