अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 16
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
नील॑शिखण्ड॒वाह॑नः ॥
स्वर सहित पद पाठनील॑शिखण्ड॒वाह॑न:॥१३२.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
नीलशिखण्डवाहनः ॥
स्वर रहित पद पाठनीलशिखण्डवाहन:॥१३२.१६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 16
भाषार्थ -
(नीलशिखण्डवाहनः) दो नाम हैं—नीलवाहन, और शिखण्डवाहन।
टिप्पणी -
[“नील” पद तमोगुण का द्योतक है, और “शिखण्ड” पद रजोगुण का। “अजामेकां लोहित-शुक्लकृष्णाम्” (श्वेता০ उप০ ४.५) में “अजा” का अर्थ है—“न उत्पन्न होनेवाली प्रकृति”। लोहित=रजोगुण। शुक्ल=सत्त्वगुण। कृष्ण=तमोगुण। तमोगुण को मन्त्र में “नील” कहा है, और रजोगुण का निर्देश “शिखण्ड” पद द्वारा किया गया है। शिखण्ड का अर्थ है—मोर की पूंछ, जो कि रंगबिरंगी होती है। रजोगुणी व्यक्ति संसार के नानाविध रंग-बिरंगों को चाहता है। शिशुबुद्धिवाले लोग कहते हैं कि परमेश्वर “नीलवाहन” है, तमोगुणवाले जगत् का वहन करता है; और वह “शिखण्डवाहन” है, रजोगुणी जगत् का वहन करता है। तमोगुणी व्यक्ति को जगत् तमोमय दीखता है, रजोगुणी को रजोमय, तथा सत्त्वगुणी को जगत् में सत्त्वगुण दीखता है।]