अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 6
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
उ॒ग्रं व॑नि॒षदा॑ततम् ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒ग्रम् । व॑नि॒षत् । आ॑ततम् ॥१३२.६॥
स्वर रहित मन्त्र
उग्रं वनिषदाततम् ॥
स्वर रहित पद पाठउग्रम् । वनिषत् । आततम् ॥१३२.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(उग्रम्) कर्मव्यवस्था के नियन्त्रण में उग्ररूप, (आततम्) सर्वव्यापक ब्रह्म की (वनिषत्) सम्यक् भक्ति उपासक किया करे।
टिप्पणी -
[वनिषत्=वन् संभक्तौ। सम्यक्-भक्ति=श्रद्धापूर्वक भक्ति।]