अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 4
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
तद्वात॒ उन्म॑थायति ॥
स्वर सहित पद पाठतत् । वात॒: । उन्म॑थायति ॥१३२.४॥
स्वर रहित मन्त्र
तद्वात उन्मथायति ॥
स्वर रहित पद पाठतत् । वात: । उन्मथायति ॥१३२.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(तद्) वह ब्रह्म (वातः) मानो झंझावात के सदृश होकर (उन्मथायति) प्रलयकाल के उपस्थित होने पर जगत् को मथ डालता है।