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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 34

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 34/ मन्त्र 4
    सूक्त - गृत्समदः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३४

    येने॒मा विश्वा॒ च्यव॑ना कृ॒तानि॒ यो दासं॒ वर्ण॒मध॑रं॒ गुहाकः॑। श्व॒घ्नीव॒ यो जि॑गी॒वां ल॒क्षमाद॑द॒र्यः पु॒ष्टानि॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । इ॒मा । विश्वा॑ । च्यव॑ना । कृ॒तानि॑ । य: । दास॑म् । वर्ण॑म् । अध॑रम् । गुहा॑ । अक॒रित्यक॑: ॥ श्व॒घ्नीऽइ॑व । य: । जि॒गी॒वान् । ल॒क्षम् । आद॑त् । अ॒र्य: । पु॒ष्टानि॑ । स: । ज॒ना॒स॒: । इन्द्र॑: ॥३३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येनेमा विश्वा च्यवना कृतानि यो दासं वर्णमधरं गुहाकः। श्वघ्नीव यो जिगीवां लक्षमाददर्यः पुष्टानि स जनास इन्द्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । इमा । विश्वा । च्यवना । कृतानि । य: । दासम् । वर्णम् । अधरम् । गुहा । अकरित्यक: ॥ श्वघ्नीऽइव । य: । जिगीवान् । लक्षम् । आदत् । अर्य: । पुष्टानि । स: । जनास: । इन्द्र: ॥३३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 34; मन्त्र » 4

    भाषार्थ -
    (येन) जिसने (इमा) इन (विश्वा) सब भुवनों को (च्यवना) गतिमान् तथा विनाशी (कृतानि) किया है, (यः) जिसने (वर्णम्) अन्तरिक्ष में आवरण डाले हुए (दासम्) उपक्षयकारी अर्थात् न बरसनेवाले मेघ को (अधरम्) नीचे की ओर बरसाकर (गुहा अकः) पृथिवी की गुफा में लीन कर दिया है, (श्वघ्नी इव) धन प्राप्ति की इच्छावाले व्यक्ति के समान (यः) जिसने (लक्षम्) लाखों प्रकार की सम्पत्तियों पर (जिगीवान्) विजय पाई है। (अर्यः) और जो स्वामी (पुष्टानि) धन से परिपुष्ट व्यक्तियों को भी (आदत्) अपने में लीन कर लेता है, उनका संहार कर देता है, (जनासः) हे सज्जनो! (सः) वह (इन्द्रः) परमेश्वर है।

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