अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 69/ मन्त्र 1
स घा॑ नो॒ योग॒ आ भु॑व॒त्स रा॒ये स पुरं॑ध्याम्। गम॒द्वाजे॑भि॒रा स नः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस: । घ॒ । न॒: । योगे॑ । आ । भु॒व॒त् । स: । रा॒ये । स: । पुर॑म्ऽध्याम् ॥ गम॑त् । वाजे॑भि: । आ । स: । न॒: ॥६९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
स घा नो योग आ भुवत्स राये स पुरंध्याम्। गमद्वाजेभिरा स नः ॥
स्वर रहित पद पाठस: । घ । न: । योगे । आ । भुवत् । स: । राये । स: । पुरम्ऽध्याम् ॥ गमत् । वाजेभि: । आ । स: । न: ॥६९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(सः) वह परमेश्वर, (घ) निश्चय से, (नः) हमारी (योगे) योगसाधना में, (आ भुवत्) आ प्रकट होता है। (सः) वह (राये) योगविभूतियों की प्राप्ति में, (सः) वह (पुरन्ध्याम्) दीर्घकाल के ध्यान में आ प्रकट होता है। (सः) वह (वाजेभिः) शक्तियों बलों तथा आध्यात्मिक-अन्नों के प्रदान के साथ, (नः) हमें (आ गमत्) आ प्रकट होता है।