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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 69

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 69/ मन्त्र 4
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६९

    त्वं सु॒तस्य॑ पी॒तये॑ स॒द्यो वृ॒द्धो अ॑जायथाः। इन्द्र॒ ज्यैष्ठ्या॑य सुक्रतो ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । सु॒तस्य॑ । पी॒तये॑ । स॒द्य: । वृ॒द्ध: । अ॒जा॒य॒था॒: ॥ इन्द्र॑ । ज्यैष्ठ्या॑य । सु॒क्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो ॥६९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं सुतस्य पीतये सद्यो वृद्धो अजायथाः। इन्द्र ज्यैष्ठ्याय सुक्रतो ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । सुतस्य । पीतये । सद्य: । वृद्ध: । अजायथा: ॥ इन्द्र । ज्यैष्ठ्याय । सुक्रतो इति सुऽक्रतो ॥६९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 4

    भाषार्थ -
    (सुक्रतो इन्द्र) हमारे उपासना-कर्म को सुफल करनेवाले हे परमेश्वर! (त्वम्) आप (वृद्धः) श्रेष्ठ गुणों में सबसे बढे़ हुए पुराण पुरुष हैं। आप (सुतस्य) निष्पन्न भक्तिरस की (पीतये) स्वीकृति के लिए तथा (ज्यैष्ठ्याय) सर्वश्रेष्ठ मोक्ष के प्रदान के निमित्त, (सद्यः) शीघ्र ही (अजायथाः) प्रकट हो जाते हैं।

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