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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 89

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 89/ मन्त्र 9
    सूक्त - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८९

    उ॒त प्र॒हामति॑दीवा जयति कृ॒तमि॑व श्व॒घ्नी वि चि॑नोति का॒ले। यो दे॒वका॑मो॒ न धनं॑ रु॒णद्धि॒ समित्तं रा॒यः सृ॑जति स्व॒धाभिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । प्र॒ऽहाम् । अति॑ऽदीवा । ज॒य॒ति॒ । कृ॒तम्ऽइ॑व । श्व॒घ्नी । वि । चि॒नो॒ति॒ । का॒ले ॥ य: । दे॒वऽका॑म: । न । धन॑म् । रु॒णध्दि॑ । सम् । इत् । तम् । रा॒य: । सृ॒ज॒ति॒ । स्व॒धाभि॑: ॥८९.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत प्रहामतिदीवा जयति कृतमिव श्वघ्नी वि चिनोति काले। यो देवकामो न धनं रुणद्धि समित्तं रायः सृजति स्वधाभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । प्रऽहाम् । अतिऽदीवा । जयति । कृतम्ऽइव । श्वघ्नी । वि । चिनोति । काले ॥ य: । देवऽकाम: । न । धनम् । रुणध्दि । सम् । इत् । तम् । राय: । सृजति । स्वधाभि: ॥८९.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 89; मन्त्र » 9

    भाषार्थ -
    (उत) तथा (अतिदीवा) अत्यधिक-स्तुतियाँ करनेवाला उपासक, (प्रहाम्) दुःख-प्रहाण करनेवाले परमेश्वर पर (जयति) विजय पा लेता है, (इव) जैसे कि (श्वघ्नी) वृद्धि के लिए प्रगतिशील मनुष्य, (काले) यथोचित समय में, (कृतम्) नए कर्म-क्षेत्र को (वि चिनोति) निश्चय करके चुन लेता है, और (जयति) उस पर विजय पा लेता है। (देवकामः) परमेश्वरदेव की कामनावाला (यः) जो मनुष्य (धनम्) धन को (रुणद्धि न) रोके नहीं रखता, उसका संग्रह नहीं करता रहता, hoarding नहीं करता रहता, (तम् इत्) उसके साथ ही, परमेश्वर (स्वधाभिः) निज धारकपोषक शक्तियों द्वारा, (रायः) आध्यात्मिक विभूतियों तथा भूसम्पत्तियों का (सं सृजति) संसर्ग करता है।

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