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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 91

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 91/ मन्त्र 6
    सूक्त - अयास्यः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९१

    इन्द्रो॑ व॒लं र॑क्षि॒तारं॒ दुघा॑नां क॒रेणे॑व॒ वि च॑कर्ता॒ रवे॑ण। स्वेदा॑ञ्जिभिरा॒शिर॑मि॒च्छमा॒नोऽरो॑दयत्प॒णिमा गा अ॑मुष्णात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । व॒लम् । र॒क्षि॒तार॑म् । दुघा॑नाम् । क॒रेण॑ऽइव । वि । च॒क॒र्त॒ । रवे॑ण ॥ स्वेदा॑ञ्जिऽभि: । आ॒ऽशिर॑म् । इ॒च्छमान: । अरो॑दयत् । प॒णिम् । आ । गा: । अ॒मु॒ष्णा॒त् ॥९१.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो वलं रक्षितारं दुघानां करेणेव वि चकर्ता रवेण। स्वेदाञ्जिभिराशिरमिच्छमानोऽरोदयत्पणिमा गा अमुष्णात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । वलम् । रक्षितारम् । दुघानाम् । करेणऽइव । वि । चकर्त । रवेण ॥ स्वेदाञ्जिऽभि: । आऽशिरम् । इच्छमान: । अरोदयत् । पणिम् । आ । गा: । अमुष्णात् ॥९१.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 91; मन्त्र » 6

    भाषार्थ -
    सृष्टिक्रम में, (दुघानाम्) दुहे जानेवाले तत्त्वों में से, (वलम्) आकाश को घेरे हुए, (रक्षितारम्) और अपने जल की अपने में रक्षा करते हुए मेघ को, (इन्द्रः) परमेश्वर ने, (रवेण) विद्युत् की गर्जना द्वारा (विचकर्त) काट गिराया, (इव) जैसे कोई (करेण) हाथ द्वारा किसी वृक्ष आदि को काट गिराता है। तथा (स्वेदाञ्जिभिः) जल के आर्द्र-कणों द्वारा अभिव्यक्त हुए मेघों द्वारा (आशिरम्) भोजन-सामग्री को (इच्छमानः) चाहते हुए परमेश्वर ने, (पणिम्) व्यवहार के साधनभूत मेघ को (अरोदयत्) विद्युत् द्वारा गर्जवाया, और (गाः) उसके जलों को (अमुष्णात्) मानो चुरा लिया।

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