अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 2
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - साम्नी बृहती
सूक्तम् - विराट् सूक्त
तस्या॑ वि॒रोच॑नः॒ प्राह्रा॑दिर्व॒त्स आसी॑दयस्पा॒त्रं पात्र॑म्।
स्वर सहित पद पाठतस्या॑: । वि॒ऽरोच॑न: । प्राह्रा॑दि: । व॒त्स: । आसी॑त् । अ॒य॒:ऽपा॒त्रम् । पात्र॑म् ॥१३.२॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्या विरोचनः प्राह्रादिर्वत्स आसीदयस्पात्रं पात्रम्।
स्वर रहित पद पाठतस्या: । विऽरोचन: । प्राह्रादि: । वत्स: । आसीत् । अय:ऽपात्रम् । पात्रम् ॥१३.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10;
पर्यायः » 4;
मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(तस्याः) [असुरों में प्राप्त हुई उस] विराट-रूपी गौ का (वत्सः) बछड़ा (आसीत्) था (प्राह्लादिः) प्रह्लाद का पुत्र (विरोचनः) विरोचन और (अयस्पात्रम्) उन का रक्षक और पालक लोहा था, (पात्रम्) यही था रक्षक और पालक।
टिप्पणी -
[मन्त्र में आसुर-राज्य का वर्णन हुआ है। "प्रह्लाद" है ऐन्द्रियिकसुख "ह्लादी सुखे च" (भ्वादिः)। “सुख" का अर्थ है "सुप्रसन्न ख" (इन्द्रियां)। इन इन्द्रियों को "खानि" कहते हैं, यथा "पराञ्चि खानि व्यतृणत् स्वयम्भूः (कठ० २।४।१)। प्राह्लादि अर्थात् ऐन्द्रियिक सुख का पुत्र है विरोचन चमकते-दमकते कपड़े पहनने वाला और इस प्रकार विविध-रुचियों वाला व्यक्ति [छान्दो० उप० अध्याय ८ । खण्ड ७] विरोचन को असुरों का प्रतिनिधि कहा है। इसे मन्त्र में ऐन्द्रियिक-सुख का पुत्र कहा है। असुरों का राज्य सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिये है। इस राज्य में रक्षक और पालक है "अयः" अर्थात् लोहा। लोहा तमोगुण है, प्रकृति का तामसिक-रूप। लोहा भी काला होता है, और तमस् भी काला। मन्त्र में विराट् गौ के दोहने के लिये "विरोचन" को वत्स कहा है। वत्स के बिना गौ दुही नहीं जा सकती। इसी प्रकार विरोचन स्वभाव वाले नेता के बिना आसुरी-सम्पत्ति, विराट् गौ से दोही नहीं जा सकती।] तथा "अयस्पात्रम्" का अभिप्राय यह भी है "लोहनिर्मित रक्षा और पालन के साधनभूत शस्त्रास्त्र, असुरों के रक्षक और पालक हैं। आसुर-स्वभाव वाले राज्य, युद्धों के लिये, शस्त्रास्त्रों का संग्रह करते हैं]।