अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 7
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - आसुरी गायत्री
सूक्तम् - विराट् सूक्त
तामन्त॑को मार्त्य॒वोऽधो॒क्तां स्व॒धामे॒वाधो॑क्।
स्वर सहित पद पाठताम् । अन्त॑क: । मा॒र्त्य॒व: । अ॒धो॒क् । ताम् । स्व॒धाम् । ए॒व । अ॒धो॒क् ॥१३.७॥
स्वर रहित मन्त्र
तामन्तको मार्त्यवोऽधोक्तां स्वधामेवाधोक्।
स्वर रहित पद पाठताम् । अन्तक: । मार्त्यव: । अधोक् । ताम् । स्वधाम् । एव । अधोक् ॥१३.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10;
पर्यायः » 4;
मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(ताम्) उस विराट्-गौ को (अन्तकः) पराधीनता के अन्तकारी, (मार्त्यवः) मृत्यु के पुत्र मर्त्य-सेनापति ने (अधोक्) दोहा (ताम्) उस विराट-गौ से उस ने (स्वधाम्) स्वधा को (एव) ही (अधोक्) दोहा। अन्तकः = अन्तम् [पराधीनतायाः] करोतीति। स्वधा= अपने आप को स्वयं धारण-पोषण करने की शक्ति स्वतन्त्रता, अपराधीनता।
टिप्पणी -
[अभिप्राय यह कि सेनापति अन्तक भी है, और मृत्यु का पुत्र भी, चूंकि सैन्य विभाग है "मरने और मारने के लिये"। अतः यह समग्र विभाग मृत्यु का पुत्र है, और सेनापति भी। अतः सेनापति को मार्तव्य कहा है। परन्तु सैन्य विभाग है "स्वधा" की रक्षा के लिये। स्वधा ही विराट्-गौ का दुग्ध है]।