अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - साम्नी बृहती
सूक्तम् - विराट् सूक्त
तस्या॑ य॒मो राजा॑ व॒त्स आसी॑द्रजतपा॒त्रं पात्र॑म्।
स्वर सहित पद पाठतस्या॑: । य॒म । राजा॑ । व॒त्स: । आसी॑त् । र॒ज॒त॒ऽपा॒त्रम् । पात्र॑म् ॥१३.६॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्या यमो राजा वत्स आसीद्रजतपात्रं पात्रम्।
स्वर रहित पद पाठतस्या: । यम । राजा । वत्स: । आसीत् । रजतऽपात्रम् । पात्रम् ॥१३.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10;
पर्यायः » 4;
मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(तस्या) उस विराट् गौ का (वत्सः) वत्स (आसीत्) था (यमः) नियमन करने वाला (राजा) राजा, (रजतपात्रम्) रक्षक और पालक रजत अर्थात् चान्दी१-सुवर्ण आदि थे (पात्रम्१) ये ही रक्षक और पालक थे।
टिप्पणी -
[पितरों अर्थात् सभासदों और समिति के सदस्यों को विराट्-गौ के रूप में प्राप्त हुई विराट् संस्था का राजा था यम; अर्थात् इन दोनों का नियन्ता प्रजापति (अथर्व० ७।१२।१)। पात्रम्= पा (रक्षणे) - त्रम् (त्रैङ् पालने)।] [१. रजत उपलक्षक है आर्थिक सम्पत्ति का। विना आर्थिक सम्पत्ति के राज्यशासन तथा राज्यरक्षा नहीं हो सकती।]