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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 5/ मन्त्र 8
    सूक्त - सिन्धुद्वीपः देवता - आपः, चन्द्रमाः छन्दः - त्र्यवसाना पञ्चपदा विपरीतपादलक्ष्मा बृहती सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त

    इन्द्र॑स्य भा॒ग स्थ॑। अ॒पां शु॒क्रमा॑पो देवी॒र्वर्चो॑ अ॒स्मासु॑ धत्त। प्र॒जाप॑तेर्वो॒ धाम्ना॒स्मै लो॒काय॑ सादये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑स्य । भा॒ग: । स्थ॒ । अ॒पाम् । शु॒क्रम् । आ॒प॒: । दे॒वी॒: । वर्च॑: । अ॒स्मासु॑ । ध॒त्त॒ । प्र॒जाऽप॑ते: । व॒: । धाम्ना॑ । अ॒स्मै । लो॒काय॑ । सा॒द॒ये॒ ॥५.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रस्य भाग स्थ। अपां शुक्रमापो देवीर्वर्चो अस्मासु धत्त। प्रजापतेर्वो धाम्नास्मै लोकाय सादये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रस्य । भाग: । स्थ । अपाम् । शुक्रम् । आप: । देवी: । वर्च: । अस्मासु । धत्त । प्रजाऽपते: । व: । धाम्ना । अस्मै । लोकाय । सादये ॥५.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 8

    Word Meaning -
    अपनी सब इंद्रियों (शौच, ब्रह्मचर्य) की शक्ति द्वारा सब जीव जंतुओं और मनुष्यों के स्वाथ्य और उत्तम मानसिकता द्वारा जलों-तरल पदार्थों- भौतिक जल वनस्पतिओं के रस और मानव शरीर का संचारण करने वाले रक्त रेतस वीर्यादि रस मे संसारिक सम्पन्नता,दीप्ति और वर्चस्व देने वाले प्रजा के पालन करने वाले ईश्वर के दैवीय गुण-राजा,अग्रज और प्रजा सब जन जितेंद्रिय बन कर जीवन में विजय प्राप्त करें

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