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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 5/ मन्त्र 50
    सूक्त - सिन्धुद्वीपः देवता - प्रजापतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त

    अ॒पाम॑स्मै॒ वज्रं॒ प्र ह॑रामि॒ चतु॑र्भृष्टिं शीर्षभिद्याय वि॒द्वान्। सो अ॒स्याङ्गा॑नि॒ प्र शृ॑णातु॒ सर्वा॒ तन्मे॑ दे॒वा अनु॑ जानन्तु॒ विश्वे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पाम् । अ॒स्मै॒ । वज्र॑म् । प्र । ह॒रा॒मि॒ । चतु॑:ऽभृष्टिम् । शी॒र्ष॒ऽभिद्या॑य । वि॒द्वान् । स: । अ॒स्य॒ । अङ्गा॑नि । प्र । शृ॒णा॒तु॒ । सर्वा॑ । तत् । मे॒ । दे॒वा: । अनु॑ । जा॒न॒न्तु॒ । विश्वे॑ ॥५.५०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपामस्मै वज्रं प्र हरामि चतुर्भृष्टिं शीर्षभिद्याय विद्वान्। सो अस्याङ्गानि प्र शृणातु सर्वा तन्मे देवा अनु जानन्तु विश्वे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपाम् । अस्मै । वज्रम् । प्र । हरामि । चतु:ऽभृष्टिम् । शीर्षऽभिद्याय । विद्वान् । स: । अस्य । अङ्गानि । प्र । शृणातु । सर्वा । तत् । मे । देवा: । अनु । जानन्तु । विश्वे ॥५.५०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 50

    Word Meaning -
    इस मंत्र के दो अर्थ ध्यान में आत हैं | एक दार्शनिक और दूसरा अर्वाचीन 1. मानव शरीर में चारों ओर संचार करने वालें जल तत्व रेतस रक्त इत्यादि वज्र के समान हमारी बुद्धि को झकोर कर सब अङ्गों को शांत कर दें (उद्विग्नता दूर हो हमारा जीवन शांति प्रिय हो | 2. असंतुष्ट जनों की भीड़ पर चारों ओर से जल के वज्र समान प्रहार water cannon द्वारा उन के सब अङ्ग ढीले कर दो |

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