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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 50
    ऋषिः - सिन्धुद्वीपः देवता - प्रजापतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
    79

    अ॒पाम॑स्मै॒ वज्रं॒ प्र ह॑रामि॒ चतु॑र्भृष्टिं शीर्षभिद्याय वि॒द्वान्। सो अ॒स्याङ्गा॑नि॒ प्र शृ॑णातु॒ सर्वा॒ तन्मे॑ दे॒वा अनु॑ जानन्तु॒ विश्वे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पाम् । अ॒स्मै॒ । वज्र॑म् । प्र । ह॒रा॒मि॒ । चतु॑:ऽभृष्टिम् । शी॒र्ष॒ऽभिद्या॑य । वि॒द्वान् । स: । अ॒स्य॒ । अङ्गा॑नि । प्र । शृ॒णा॒तु॒ । सर्वा॑ । तत् । मे॒ । दे॒वा: । अनु॑ । जा॒न॒न्तु॒ । विश्वे॑ ॥५.५०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपामस्मै वज्रं प्र हरामि चतुर्भृष्टिं शीर्षभिद्याय विद्वान्। सो अस्याङ्गानि प्र शृणातु सर्वा तन्मे देवा अनु जानन्तु विश्वे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपाम् । अस्मै । वज्रम् । प्र । हरामि । चतु:ऽभृष्टिम् । शीर्षऽभिद्याय । विद्वान् । स: । अस्य । अङ्गानि । प्र । शृणातु । सर्वा । तत् । मे । देवा: । अनु । जानन्तु । विश्वे ॥५.५०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 50
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (विद्वान्) विद्वान् मैं (अस्मै) इस [शत्रु पर] (शीर्षभिद्याय) शिर तोड़ने के लिये (अपाम्) जलों का (चतुर्भृष्टिम्) चौफाले (वज्रम्) वज्र [अस्त्र] को (प्र हरामि) चलाता हूँ। (सः) वह [वज्र] (अस्य) उस के (सर्वा) सब (अङ्गानि) अङ्गों को (प्र शृणातु) चूर-चूर कर डाले, (मे) मेरे (तत्) उस [कर्म] को (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग (अनु जानन्तु) मान लेवें ॥५०॥

    भावार्थ

    राजा चारों ओर चोट करनेवाले वारुणेय [जल में छूटनेवाले] अस्त्र [इसी प्रकार आग्नेय, वायव्य अस्त्र] से शत्रु का नाश करके विद्वानों में कीर्ति पावे ॥५०॥

    टिप्पणी

    ५०−(अपाम्) जलानाम् (अस्मै) शत्रवे (वज्रम्) आयुधम् (प्र हरामि) प्रक्षिपामि (चतुर्भृष्टिम्) भृशु अधःपतने भ्रस्ज पाके वा-क्तिन्। चतस्रो भृष्टयोऽयःफालानि यस्मिन् तं वज्रम् (शीर्षभिद्याय) भिदिर् विदारणे-क्यप्। शिरोभेदनाय (सः) वज्रः (अस्य) शत्रोः (अङ्गानि) (प्र शृणातु) चूर्णीकरोतु (तत्) कर्म (मे) मम (देवाः) विद्वांसः (अनु जानन्तु) स्वीकुर्वन्तु (विश्वे) सर्वे ॥

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    विषय

    चतुर्भुष्टि वज्र

    पदार्थ

    १. (विद्वान्) = ज्ञानी [समझदार] बनता हुआ मैं (अस्मै शीर्षभिद्याय) = इस रोगरूप शत्रु के सिर को फोड़ देने के लिए (चतुर्भृष्टिम्) = [भ्रस्ज पाके] चारों ओर (अय:) = फालोंवाले व चारों ओर से भून डालनेवाले (अपां वज्रम्) = रेत:कणों से बने हुए वन को (प्रहरामि) = प्रहत करता हूँ। (स:) = वह वज्र (अस्य) = इस शत्रु के (सर्वा अङ्गानि) = सब अंगों को (प्रशृणातु) = शीर्ण कर दे। (विश्वेदेवाः) = सब देव मे (सत्) = मेरे उस कार्य का (अनुजानन्तु) = समर्थन करनेवाले हों।

    भावार्थ

    रेत:कणों के रक्षण के द्वारा रोगरूप शत्रु के सिर का हम भेदन कर डालते हैं। दिव्यगुणों को अपनाते हुए हम वीर्यरक्षण कर पाते हैं और रोग-विनाश के कार्य में समर्थ होते हैं।

    छठे सूक्त का ऋषि 'बृहस्पति' है-इसका देवता 'फालमणि' है-वीर्यशक्तिरूप मणि, जोकि सब रोगों व वासनाओं को विशीर्ण करती है [फल विशरणे]। इसके रक्षण से ही जानानि भी दीस होती है और इसप्रकार इसका रक्षक 'बृहस्पति' बनता है-ज्ञानी। अथ त्रयोविंशः प्रपाठकः

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    भाषार्थ

    (अस्मै) इस [रक्षः, मन्त्र ४९] के लिये, (चतुर्भृष्टिम्) चार धाराओं या चार कोनों वाले (अपाम् वज्रम्) जल सम्बन्धी वैद्युत् वज्र का (शीर्षभिद्याय) इस के सिर का भेदन करने के लिये (विद्वान्) मैं [अग्रणी प्रधानमन्त्री] दण्ड विधान के सार्वभौम नियमों को जानता हुआ (प्रहरामि) प्रहार करता हूं। (सः) वह वज्र (अस्य) इस [रक्षः] के (सर्वा = सर्वाणि, अङ्गानि) सब अङ्गों को (प्रशृणातु) पूर्णतया नष्ट कर दे, (विश्वे देवाः) पृथिवी के सब दिव्य-सज्जन (मे) मेरे (तत्) उस शिरोभेदन आदि कार्य की (अनु जानन्तु) अनुज्ञा दें, स्वीकृति दें।

    टिप्पणी

    [ऐसे उग्र दण्ड के लिये पृथिवी के सब दिव्यजनों की अनुज्ञा अर्थात् स्वीकृतिः चाहिये। “अस्मै" सर्वनाम पद एक वचन में है जो कि पूर्व कथित की अपेक्षा करता है। अतः मन्त्र ४९ में कथित "रक्षः" अभिप्रेत प्रतीत होता है। विशेष निर्देश-मन्त्र ४९ में अग्नि द्वारा शवाग्नि जान कर और मन्त्र ५० में शिरोभेदन की व्यवस्था समझ कर हिन्दुओं ने सम्भवतः जलते शव के शिरोभेदन की प्रथा चलाई हो।]

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    विषय

    विजिगीषु राजा के प्रति प्रजा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    मैं (विद्वान्) ज्ञानी इसके अपराध को जानता हुआ (अस्मै) इसके लिये (अपाम्) आप्तजनों के बनाये (चतुर्भृष्टिम्) चारों ओर से संतापकारक (वज्रम्) पाप से निवारक दण्ड को इसके (शीर्ष-भिद्या), शिर तोड़ने के लिये (प्र हरामि) प्रहार करता हूं। (स) वह वज्र (अस्य) इस अपराधी के (अङ्गानि) अंगों को (प्र शृणातु) अच्छी प्रकार नाश करे। (तत्) मेरे इस कार्य की (विश्वे-देवाः) सब विद्वान् पुरुष (अनुजानन्तु) अनुज्ञा दें। राजा इस प्रकार अपराधियों के दण्ड की विद्वान् पुरुषों से अनुमति लेकर दण्ड प्रदान किया करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-२४ सिन्धुद्वीप ऋषिः। २६-३६ कौशिक ऋषिः। ३७-४० ब्रह्मा ऋषिः। ४२-५० विहव्यः प्रजापतिर्देवता। १-१४, २२-२४ आपश्चन्द्रमाश्च देवताः। १५-२१ मन्त्रोक्ताः देवताः। २६-३६ विष्णुक्रमे प्रतिमन्त्रोक्ता वा देवताः। ३७-५० प्रतिमन्त्रोक्ताः देवताः। १-५ त्रिपदाः पुरोऽभिकृतयः ककुम्मतीगर्भा: पंक्तयः, ६ चतुष्पदा जगतीगर्भा जगती, ७-१०, १२, १३ त्र्यवसानाः पञ्चपदा विपरीतपादलक्ष्मा बृहत्यः, ११, १४ पथ्या बृहती, १५-१८, २१ चतुरवसाना दशपदा त्रैष्टुव् गर्भा अतिधृतयः, १९, २० कृती, २४ त्रिपदा विराड् गायत्री, २२, २३ अनुष्टुभौ, २६-३५ त्र्यवसानाः षट्पदा यथाक्ष शकर्योऽतिशक्वर्यश्च, ३६ पञ्चपदा अतिशाक्कर-अतिजागतगर्भा अष्टिः, ३७ विराट् पुरस्ताद् बृहती, ३८ पुरोष्णिक्, ३९, ४१ आर्षी गायत्र्यौ, ४० विराड् विषमा गायत्री, ४२, ४३, ४५-४८ अनुष्टुभः, ४४ त्रिपाद् गायत्री गर्भा अनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्। पञ्चशदर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Victory

    Meaning

    I, Agni, the ruler and enlightened leader, strike the four-edged thunderbolt of lightning upon this ogre to break his head. May this strike break his body and net-work into bits. And let all devas, enlightened people of the land, know, recognise and approve of this act of justice.

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    Translation

    Knowing all this, I throw at this (enemy) the four-edged thunder bolt of water to break his head (into pieces). May this cut through all his limbs. May all the enlightened ones approve this action of mine.

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    Translation

    I, the learned men hurl the deadly weapon wrought by the skilled scientists and causing burnt from four sides against the man to cleave his head asunder. Let it destroy all the limbs of body and may all the men of wisdom approve my intent and purpose.

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    Translation

    Well skilled, I hurl against this foe, the all round destructive bolt designed by the learned, to cleave his head asunder. May it destroy all members of his body. Let all the learned persons sanction my purpose.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५०−(अपाम्) जलानाम् (अस्मै) शत्रवे (वज्रम्) आयुधम् (प्र हरामि) प्रक्षिपामि (चतुर्भृष्टिम्) भृशु अधःपतने भ्रस्ज पाके वा-क्तिन्। चतस्रो भृष्टयोऽयःफालानि यस्मिन् तं वज्रम् (शीर्षभिद्याय) भिदिर् विदारणे-क्यप्। शिरोभेदनाय (सः) वज्रः (अस्य) शत्रोः (अङ्गानि) (प्र शृणातु) चूर्णीकरोतु (तत्) कर्म (मे) मम (देवाः) विद्वांसः (अनु जानन्तु) स्वीकुर्वन्तु (विश्वे) सर्वे ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    सदाचार का प्रसार Like Use of water cannons

    Word Meaning

    इस मंत्र के दो अर्थ ध्यान में आत हैं | एक दार्शनिक और दूसरा अर्वाचीन 1. मानव शरीर में चारों ओर संचार करने वालें जल तत्व रेतस रक्त इत्यादि वज्र के समान हमारी बुद्धि को झकोर कर सब अङ्गों को शांत कर दें (उद्विग्नता दूर हो हमारा जीवन शांति प्रिय हो | 2. असंतुष्ट जनों की भीड़ पर चारों ओर से जल के वज्र समान प्रहार water cannon द्वारा उन के सब अङ्ग ढीले कर दो |

    Tika / Tippani

    AV 10.5 ऋषि: - सिंधुद्वीप:, देवता: Vijaypraapti विजयप्राप्ति अर्थात सिंधु द्वीप – आर्यावर्त Indogangetic plain की समृद्धि सम्पन्नता की ख्याति से आर्यावर्त के विस्तार से विश्व विजय का मूल मंत्र । वेद ज्ञान- इस भूखंड के निवासिओं की जीवन शैलि वेदाधारित थी। हिंदु -सिंधु और गङ्गा के मध्य के प्रदेश Indogangetic Plain को सिंधु द्वीप के नाम से जाना जाता था जो समृद्धि से भरपूर होने पर भारतवर्ष कहलाने के बाद विस्तार होने पर आर्यवर्त के नाम से प्रख्यात हुआ | उच्चारण में स का ह बन जाना आज भी देखा जाता है , जैसे असमिया में स का उच्चारण ह से होता है इसी प्रकार सिंधु का हिंदु बन गया |

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