Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 5 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 25
    ऋषिः - कौशिकः देवता - विष्णुक्रमः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा यथाक्षरं शक्वरी, अतिशक्वरी सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
    37

    विष्णोः॒ क्रमो॑ऽसि सपत्न॒हा पृ॑थि॒वीसं॑शितो॒ऽग्निते॑जाः। पृ॑थि॒वीमनु॒ वि क्र॑मे॒ऽहं पृ॑थि॒व्यास्तं निर्भ॑जामो॒ यो॒स्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः। स मा जी॑वी॒त्तं प्रा॒णो ज॑हातु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विष्णो॑: । क्रम॑: । अ॒सि॒ । स॒प॒त्न॒ऽहा । पृ॒थि॒वीऽसं॑शित: । अ॒ग्निऽते॑जा: । पृ॒थि॒वीम् । अनु॑ । वि । क्र॒मे॒ । अ॒हम् । पृ॒थि॒व्या: । तम् । नि: । भ॒जा॒म॒: । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: । स: । मा । जी॒वी॒त् । तम् । प्रा॒ण: । ज॒हा॒तु॒ ॥५.२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विष्णोः क्रमोऽसि सपत्नहा पृथिवीसंशितोऽग्नितेजाः। पृथिवीमनु वि क्रमेऽहं पृथिव्यास्तं निर्भजामो योस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः। स मा जीवीत्तं प्राणो जहातु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विष्णो: । क्रम: । असि । सपत्नऽहा । पृथिवीऽसंशित: । अग्निऽतेजा: । पृथिवीम् । अनु । वि । क्रमे । अहम् । पृथिव्या: । तम् । नि: । भजाम: । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: । स: । मा । जीवीत् । तम् । प्राण: । जहातु ॥५.२५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 25
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    तू (विष्णोः) विष्णु [सर्वव्यापक परमेश्वर] से (क्रमः) पराक्रमयुक्त, (सपत्नहा) वैरियों का नाश करने हारा, (पृथिवीसंशितः) पृथिवी से तीक्ष्ण किया गया, (अग्नितेजाः) अग्नि से तेज पाया हुआ (असि) है। (पृथिवीम् अनु) पृथिवी के पीछे (अहम्) मैं (वि क्रमे) पराक्रम करता हूँ, (पृथिव्याः) पृथिवी से (तम्) उस [शत्रु] को (निः भजामः) हम भागरहित करते हैं, (यः) जो (अस्मान्) हम से (द्वेष्टि) द्वेष करता है और (यम्) जिससे (वयम्) हम (द्विष्मः) द्वेष करते हैं, (सः) वह (मा जीवीत्) न जीता रहे, (तम्) उसको (प्राणः) प्राण (जहातु) छोड़ देवे ॥२५॥

    भावार्थ

    परमेश्वर की दी हुई अद्भुत शक्तियों से मनुष्य पृथिवी और अग्नि के उपकारों को विचार कर अपने दोषों और शत्रुओं का नाश करके आनन्दित होवे ॥२५॥

    टिप्पणी

    २५−(विष्णोः) सर्वव्यापकात् परमेश्वरात् (क्रमः) क्रम-अर्शआद्यच्। पराक्रमयुक्तः (असि) (सपत्नहा) शत्रुनाशकः (पृथिवीसंशितः) पृथिवीसकाशात् तीक्ष्णीकृतः (अग्नितेजः) अग्नेः प्राप्ततेजाः (पृथिवीम्) (अनु) अनुसृत्य (विक्रमे) पराक्रमं करोमि (अहम्) (पृथिव्याः) भूमिसकाशात् (तम्) शत्रुम् (निर्भजामः) भागहीनं कुर्मः (मा जीवीत्) लुङि रूपम्। न जीवेत्। अन्यद् गतम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पृथिवीसंशित: अग्नितेजा:

    पदार्थ

    १. तू (विष्णो:) = एक पवित्र व्यक्ति [A pious man] के (क्रमः) = पराक्रमवाला असि है [क्रमः अस्यास्तीति क्रमः]।('सीरा युञ्जन्ति कवयो युगा वितन्वते पृथक्') = ज्ञानी लोग कृषि आदि निर्माण के कार्यों में ही प्रवृत्त होते हैं। वेद का आदेश भी तो यही है कि ('अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित् कृषस्व') = पासों से मत खेल, खेती ही कर। इसी से तू (सपत्नहा) = रोग व वासनारूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाला है। (पृथिवीसंशित:) = इस शरीररूप पृथिवी में तू तीव्र किया गया है। (अग्नितेजा:) = अग्नि के समान तेजस्वी है। २. तू निश्चय कर कि (पृथिवीम् अनु) = इस शरीररूप पृथिवी का लक्ष्य करके-इसे उत्तम, स्वस्थ बनाने के उद्देश्य से-(अहम्) = मैं (विक्रमे) = पराक्रम करता हूँ। (पृथिव्याः) = इस शरीररूप पृथिवी से (तं निर्भजामः) = उस रोग आदि को दूर भगाते हैं [put to flight] (य: अस्मान् द्वेष्टि) = जो हमसे अप्रीति करता है, (यं वयं द्विष्मः) = जिससे हम प्रेम नहीं रखते, (सः मा जीवीत्) = वह हमारा शत्रु न जीए। (तं प्राण: जहातु) = उसे प्राण छोड़ जाएँ।

    भावार्थ

    कृषि आदि कर्मों में लगे रहने से शरीर स्वस्थ बनता है। अग्नि के समान तेजस्विता प्राप्त होती है। उससे रोग व वासनारूप शत्रु नष्ट हो जाते हैं।

     

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (विष्णोः) विष्णु के (क्रमः)१ पराक्रम वाला (असि) तू है, (सपत्नहा) सपत्न का हनन करने वाला है, (पृथिवीसंशितः) पृथिवी में तेज अर्थात् उग्र, (अग्नितेजाः) तथा अग्निसदृश तेजस्वी तू है। (अहम्) मैं (पृथिवीम् अनु) पृथिवी में (विक्रमे) विक्रम अर्थात् पराक्रम करता हूं, (पृथिव्याः) पृथिवी से (तम्) उसे (निर्भजामः) हम भागरहित करते हैं (यः) जोकि (अस्मान् द्वेष्टि) हमारे साथ द्वेष करता है, (यम्) जिस के साथ (वयम् दिष्मः) हम द्वेष करते हैं। (सः) वह (मा)(जीवीत्) जीवित रहे, (तम्) उसे (प्राणः) प्राण (जहातु) छोड़ जाय।

    टिप्पणी

    [विष्णु द्वारा व्यापक परमेश्वर का ग्रहण है, सूर्य का नहीं। क्योंकि सूर्य का वर्णन मन्त्र (३७) में हुआ है। मन्त्र में सार्वभौम-शासक स्वयं अपने आप को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि तू विष्णु के पराक्रम वाला है, अर्थात् जैसे परमेश्वर का पराक्रम पृथिवी पर है, वह निज पराक्रम द्वारा समग्र पृथिवी का शासन न्यायपूर्वक करता है, वैसे तू भी समग्रपृथिवी के प्रजाजनों पर न्यायपूर्वक शासन कर और जो सार्वभौम नियमों के प्रतिकूल चलते हैं उन्हें सपत्न अर्थात् शत्रु जान कर उन की हत्या कर। पृथिवी में उग्ररूप हो कर कठोरता पूर्वक उन्हें अग्नि के समान दग्ध कर, जो कि पृथिवी पर मलिनाचरण वाले हैं। इस "आत्मसंबोधन" के पश्चात् सार्वभौमशासक कहता है कि मैं समग्र पृथिवी में निजपराक्रम किये हुआ हूं। मैं और सार्वभौमप्रजा के अन्य शासक मिल कर, पृथिवी के भोगों से उसे भाग रहित कर देते हैं जोकि प्रजा और हम शासकों के साथ द्वेष करता है, और परिणामरूप में जिसके प्रति हम सब का भी द्वेष हो जाता है। उसे हम जीवित नहीं रहने देते, और उसे प्राण-दण्ड देते हैं। इस प्रकार जो व्यक्ति, राज्य के नियमों के विरुद्ध चलता है, जिन नियमों का निर्माण, प्रजा और शासकों को बहु सम्मति या सर्वसम्मति द्वारा हुआ है, उन का पालन, उग्ररूप में, करवाने का निर्देश मन्त्र में हुआ है। संशित = तेज या उग्र। यथा "सत्यं बृहदृतमुग्रम्" (अथर्व० १२।१) में, ऋतम् उग्रम् = उग्र नियम]। [१. क्रमः = कम + अच् (अर्श आदिभ्योऽच्, अष्टा० ५।२।१२७)। अतः क्रम... =पराक्रम वाला। अथवा हे मेरे पराक्रम ! तु विष्णु के पराक्रम के सदृश या तद्रूप है।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Victory

    Meaning

    Part 2 O man, you are Vishnu’s own power and projection, subduer of challenging negativities, nourished, strengthened, honed, perfected, magnetised by the earth and blest with the fire of Agni. I strive and advance over the earth. We strike out that negativity from the earth which hates us and which we hate. That adversary must not survive. Let even life energy forsake that.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject

    Mantroktah

    Translation

    You are the stride (krama) of the all-prevading Lord (visnu), slayer of rivals, sharpened by the earth (prthivi-samsita), full of fire’s might (agni-teja). I swide forth on the earth (prthivyam). From the earth, we drive out him, who hates us and whom we do hate. May he not live. May the vital breath quit him.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O King! you are the representative of Vishnu, the All-pervading God amongst the subjects, you are the slayer of enemies, you are praised on the earth and you possess the refulgence of fire. You should think “I will play my glorious part on the earth”. So that we bar from the earth that man who hates me and whom we abhor. Let him not be alive and let the vital air abondon him.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O King, thou followest the dictate of God, and are the protector of the people like Him. Thou art foe-slayer. Thou rulest over Earth and are vigorous like fire! I, as king consider it my duty to make huge efforts to control the Earth. We, the subjects, banish him from the state, who hates us and whom we dislike. Let him not live, let vital breath desert him.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २५−(विष्णोः) सर्वव्यापकात् परमेश्वरात् (क्रमः) क्रम-अर्शआद्यच्। पराक्रमयुक्तः (असि) (सपत्नहा) शत्रुनाशकः (पृथिवीसंशितः) पृथिवीसकाशात् तीक्ष्णीकृतः (अग्नितेजः) अग्नेः प्राप्ततेजाः (पृथिवीम्) (अनु) अनुसृत्य (विक्रमे) पराक्रमं करोमि (अहम्) (पृथिव्याः) भूमिसकाशात् (तम्) शत्रुम् (निर्भजामः) भागहीनं कुर्मः (मा जीवीत्) लुङि रूपम्। न जीवेत्। अन्यद् गतम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिंगलिश (1)

    Subject

    पृथिवीसंशितो ऽग्नितेजाः । पृथिवीं पृथिवी पर (भौतिक) कर्म प्रधान उग्रता, ऊर्जा और तेजस्विता पूर्ण जीवन शैलि ;

    Word Meaning

    संसार की प्रगति के लिए भौतिक कर्म प्रधान जीवन शैलि की आवश्यकता होता है | विष्णु के संसार के पालन कर्त्ता कार्यक्षेत्र में पराक्रमी बन कर “पृथिवी की उग्रता का ऊर्जा और तेजस्विता कर्म प्रधान जीवन शैलि से पृथिवी पर ” एक क्रम से (योजनाबद्ध ढंग से ) कर्म करने से सब शत्रुरूपि विघ्न बाधाओं रुकावटों पर विजय पानी होती है | और जो हमारे (इस वेदाधारित ) सृष्टि पालन धर्म की अवहेलना करते है हम से द्वेष करते है वे प्रकृति की सब उपलब्धियों समृद्धियों से वंचित रहेंगे और स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे |

    Tika / Tippani

    ऋषि: -कौशिक: - का अर्थ लेते हैं वह जो गुप्त विद्या के कोश को ढूंड पाया ( Apte- one who knows hidden treasures) और उस ने उस विद्या का खूब प्रसार प्रचार किया | अर्थों को बड़े उत्तम ढूंड कर प्रकाश करता है | देवता: - विष्णु इन 12 मन्त्रों का देवता है | विष्णु परमेश्वर का सृष्टि के सर्वव्यापक पालन कर्ता का स्वरूप है | निष्क्रिय जड़ सृष्टि पर जीव के शरीर,मन, और मस्तिष्क के योग से कर्म द्वारा ही समस्त संसार के सातों धाम का पालन होता है | समष्टि रूप से यह सात धाम हैं- पृथिवी,जल, अग्नि, वायु, विराट, परमाणु और प्रकृति पर्यन्त लोक आते हैं, व्यष्टि रूप से शरीर के ‘रस, रुधिर, मांस,अस्थि, मज्जा, मेदस्‌ और वीर्य सात धाम होते हैं | वेद विद्या ,शिक्षा, अनुसंधान के द्वारा मनुष्य को इन सातों धाम के समस्त ज्ञान का प्रकाश होताहै | जिस के आधार पर संसार के पालन के कर्म द्वारा दायित्व निभाना होता है | 12 मंत्रों, अथर्व 10.5.25 से अथर्व 10.5.36 तक की ध्रुव पंक्ति है ; “ विष्णोः क्रमोऽसि विष्णु सपत्नहा “ ............” अनु वि क्रमेऽहं पृथिव्यास्तं निर्भजामो योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः । स मा जीवीत्तं प्रानो जहातु” विष्णु के संसार के पालन कर्त्ता कार्यक्षेत्र में पराक्रमी बन कर “...........” एक क्रम से कर्म करने से सब शत्रुरूपि विघ्न बाधाओं रुकावटों पर विजय पानी होती है | और जो हमारे (इस वेदाधारित ) सृष्टि पालन धर्म की अवहेलना करते है हम से द्वेष करते है वे हमारी सब उपलब्धियों समृद्धियों से वंचित रहेगे और स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे |

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top